केंद्रीय कृषि सुधार कानूनों के विरोध में पंजाब में किसानों के आंदोलन पर खूब राजनीति हुई। राज्य मे इस दौरान किसानों ने परिवहन सुविधाओं खासकर रेल सेवा को बंधक बनाया तो नजारा कुछ बदलने लगा। इस दौरान पंजाब के किसानों के समर्थन और विरोध के कारण राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस व भाजपा, शहर और गांव में बंटती नजर आ रही हैं।

दरअसल, जब कृषि कानून अध्यादेश के रूप में सामने आए थे तो किसानों के धरनों को शहरों में अच्छा खासा समर्थन मिला। शहर के लोग विरोध में सीधे तौर पर शामिल नहीं हुए लेकिन इंटरनेट मीडिया के जरिए उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और यह मुहिम बन गई।
किसान संघर्ष के कारण समर्थकों को व्यापार में नुकसान के बाद कांग्रेस भी कहने लगी संघर्ष का तरीका बदलें
इसके बााद जैसे ही किसान संगठनों ने रेलवे ट्रैक जाम किए तो उससे लुधियाना, जालंधर और अमृतसर जैसे शहरों में बैठे उद्योगपतियों को भी नुकसान होने लगा। 4000 करोड़ से ज्यादा का माल या तो पंजाब से बाहर जाने से रुक गया, या उद्योगपतियों को ट्रकों के माध्यम से इसे अंबाला तक पहुंचाना शुरू किया है। जिससे यह माल मालगाडिय़ों के जरिए अन्य राज्यों को भेजा जा सके। इससे उन्हें दोहरा नुकसान हो रहा है। इस नुकसान ने उद्योगपतियों को किसानों के प्रदर्शन से पीछे हटने पर मजबूर किया।
राज्य के पूर्व मंत्री ज्याणी के कृषि सुधार कानूनों के विरोध पर उतर आने से बढ़ी भाजपा की परेशानी
व्यापारियों के पीछे हटते ही अब इसका असर राजनीतिक पार्टियों पर पडऩा शुरू हो गया है। केंद्रीय कृषि सुधार कानूनों को लेकर किसानों को जागरूक करने के लिए काम कर रही भाजपा के नेता अब दो हिस्सों में बंटते नजर आ रहे हैं। पार्टी के कई सिख चेहरे पार्टी से अलग हो गए हैं, हालाकि उनका कद बहुत बड़ा नहीं था।
पार्टी के महासचिव मालविंदर कंग और किसान सेल के प्रधान त्रिलोचन सिंह गिल के जाने से भाजपा को ज्यादा तकलीफ महसूस नहीं हुई, लेकिन अब राज्य के पूर्व मंत्री सुरजीत कुमार ज्याणी का विरोध भाजपा पर भारी पडऩे लगा है। सुरजीत कुमार ज्याणी, फाजिल्का सीट से चुनाव लड़ते हैं। कहने को फाजिल्का सीट शहरी है लेकिन इस हलके का ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण है। फाजिल्का के शहरी वोटर की जमीनें भी गांवों में हैैं। ऐसे में ज्याणी के लिए किसानों का विरोध झेलना आसान नहीं है।
दूसरी तरफ, कांग्रेस में अभी इस तरह का खुला विरोध देखने को नहीं मिला है। इसके दो कारण हैं। एक तो कांग्रेस सत्ता में है और सरकार ने स्पष्ट रूप से केंद्रीय कानूनों का विरोध किया। ऐसे में कांग्रेस का कोई विधायक या नेता इन कानूनों का पक्ष लेता है या किसानों के धरनों का विरोध करता है तो उसे यह डर रहेगा कि उसका टिकट कट सकता है। लेकिन, जिस तरह उनके समर्थकों का व्यापार किसान संघर्ष के कारण प्रभावित हो रहा है उसे देखते हुए उन्होंने भी कहना शुरू कर दिया कि किसानों को अब विरोध का तरीका बदलना चाहिए। किसान खुद अपना नुकसान कर रहे हैैं और साथ ही पंजाब का नुकसान भी हो रहा है।
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