इस्लामाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आमेर फारूक समेत आठ न्यायाधीशों को संदिग्ध पदार्थ से युक्त धमकी भरे पत्र मिले हैं। मंगलवार को मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। इस घटना ने पाकिस्तानी न्यायपालिका की सुरक्षा के संबंध में चिंता बढ़ा दी है।
न्यायाधीशों को धमकी भरे पत्र मिलने की पुष्टि करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश फारूक ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इस घटना के कारण दिन की सुनवाई में देरी हुई। एक्सप्रेस ट्रिब्यून समाचारपत्र ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि जब दो न्यायाधीशों के कर्मचारियों ने पत्र खोले तो उन्हें अंदर पाउडर मिला और बाद में उन्हें आंखों में जलन का अनुभव हुआ।
उन्होंने तत्काल ही सैनिटाइजर का उपयोग किया और अपने हाथ धोए। पत्र मिलने की जानकारी के बाद इस्लामाबाद पुलिस के विशेषज्ञों की एक टीम तुरंत हाईकोर्ट पहुंची। आगे की जांच के लिए पत्रों को आतंकवाद विरोधी विभाग (सीटीडी) को सौंप दिया गया है।
पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट ‘हस्तक्षेप’ के मुद्दे पर गंभीर
वहीं, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देश की इंटेलीजेंस एजेंसी (आईएसआई) द्वारा न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप के आरोपों को संबोधित करने के लिए हामी भर दी। हाईकोर्ट के छह जजों ने पत्र लिखकर इंटेलीजेंस एजेंसी पर यह आरोप लगाया है, जो कि देश के भीतर नागरिक-सैन्य गतिशीलता के लिहाज से एक महत्वपूर्ण क्षण है।
दरअसल, 26 मार्च को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) के छह न्यायाधीशों ने सर्वोच्च न्यायिक परिषद (एसजेसी) को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी सेना की प्रमुख खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) द्वारा न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप को लेकर चिंता व्यक्त की। उनके इस कदम ने कानूनी कार्यवाही पर सेना के प्रभाव को लेकर न्यायपालिका के भीतर की बेचैनी को उजागर कर दिया है।
इस पत्र पर छह न्यायाधीशों न्यायमूर्ति मोहसिन अख्तर कयानी, न्यायमूर्ति तारिक महमूद जहांगीरी, न्यायमूर्ति बाबर सत्तार, न्यायमूर्ति सरदार इजाज इशाक खान, न्यायमूर्ति अरबाब मुहम्मद ताह ने हस्ताक्षर किए थे।
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