हिंदू धर्म में पीपल की पूजा का विशेष महत्व है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है, जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:। अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूं। पीपल के मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। इसलिए पीपल को पूज्यनीय पेड़ माना जाता है। वैज्ञानिक कारण सभी वृक्ष दिन के समय में सूर्य की रोशनी में कार्बन डाइ आक्साईड ग्रहण करके अपने लिए भोजन बनाते हैं। वहीं, रात को सभी वृक्ष ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन-डाइआक्साईड छोड़ते हैं। इसी वजह से रात के समय में पेड़ों के नीचे सोने से मना किया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पीपल का पेड़ 24 घंटों में सदा ही आक्सीजन छोड़ता है इसलिए यह मानव उपकारी वृक्ष है। संभवतः इसीलिए पीपल को पूज्य मानकर सदियों से उसकी पूजा होती चली आ रही है। शनि की पीड़ा से मुक्ति माना जाता है कि पीपल के पड़े की पूजा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जिन लोगों को शनि दोष होता है उन्हें इसके कुप्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय स्वर्ग पर असुरों ने कब्जा कर लिया था। कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोड़ने पेड़ के पास जाता, तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषिगण समझ ही नहीं पा रहे थे कि ब्राह्मण कुमार कैसे गायब होते चले जा रहे हैं। तब उन्होंने शनि देव से सहायता मांगी। इस पर शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए। कैटभ ने शनि महाराज को पकड़ने की कोशिश की, तो शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया। तब शनि महाराज ने ऋषियों को कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पड़े की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। जनेऊ धारण करने से पहले जरूर बोलना चाहिए यह मंत्र दूसरी कथा के अनुसार, ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। बड़े होने इन्हें पता चला कि शनि की दशा के कारण ही इनके माता-पिता को मृत्यु का सामना करना पड़ा। इससे क्रोधित होकर पिप्लाद ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया। इससे प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा, तो पिप्लाद ने ब्रह्मदंड मांगा और पीपल के पेड़ में बैठे शनि देव पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैर टूट गए। शनि देव दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे। भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। तभी से शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पड़े की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।

पीपल की पूजा से शनि देव कैसे होते हैं शांत, पढ़ें पौराणिक कहानी

हिंदू धर्म में पीपल की पूजा का विशेष महत्व है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है, जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:। अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूं।हिंदू धर्म में पीपल की पूजा का विशेष महत्व है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है, जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:। अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूं।  पीपल के मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। इसलिए पीपल को पूज्यनीय पेड़ माना जाता है।  वैज्ञानिक कारण  सभी वृक्ष दिन के समय में सूर्य की रोशनी में कार्बन डाइ आक्साईड ग्रहण करके अपने लिए भोजन बनाते हैं। वहीं, रात को सभी वृक्ष ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन-डाइआक्साईड छोड़ते हैं। इसी वजह से रात के समय में पेड़ों के नीचे सोने से मना किया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पीपल का पेड़ 24 घंटों में सदा ही आक्सीजन छोड़ता है इसलिए यह मानव उपकारी वृक्ष है। संभवतः इसीलिए पीपल को पूज्य मानकर सदियों से उसकी पूजा होती चली आ रही है।  शनि की पीड़ा से मुक्ति  माना जाता है कि पीपल के पड़े की पूजा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जिन लोगों को शनि दोष होता है उन्हें इसके कुप्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय स्वर्ग पर असुरों ने कब्जा कर लिया था।  कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोड़ने पेड़ के पास जाता, तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषिगण समझ ही नहीं पा रहे थे कि ब्राह्मण कुमार कैसे गायब होते चले जा रहे हैं।  तब उन्होंने शनि देव से सहायता मांगी। इस पर शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए। कैटभ ने शनि महाराज को पकड़ने की कोशिश की, तो शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया। तब शनि महाराज ने ऋषियों को कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पड़े की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।  जनेऊ धारण करने से पहले जरूर बोलना चाहिए यह मंत्र  दूसरी कथा के अनुसार, ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। बड़े होने इन्हें पता चला कि शनि की दशा के कारण ही इनके माता-पिता को मृत्यु का सामना करना पड़ा। इससे क्रोधित होकर पिप्लाद ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया।  इससे प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा, तो पिप्लाद ने ब्रह्मदंड मांगा और पीपल के पेड़ में बैठे शनि देव पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैर टूट गए। शनि देव दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे।  भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। तभी से शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पड़े की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।

पीपल के मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। इसलिए पीपल को पूज्यनीय पेड़ माना जाता है।

वैज्ञानिक कारण

सभी वृक्ष दिन के समय में सूर्य की रोशनी में कार्बन डाइ आक्साईड ग्रहण करके अपने लिए भोजन बनाते हैं। वहीं, रात को सभी वृक्ष ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन-डाइआक्साईड छोड़ते हैं। इसी वजह से रात के समय में पेड़ों के नीचे सोने से मना किया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पीपल का पेड़ 24 घंटों में सदा ही आक्सीजन छोड़ता है इसलिए यह मानव उपकारी वृक्ष है। संभवतः इसीलिए पीपल को पूज्य मानकर सदियों से उसकी पूजा होती चली आ रही है।

शनि की पीड़ा से मुक्ति

माना जाता है कि पीपल के पड़े की पूजा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जिन लोगों को शनि दोष होता है उन्हें इसके कुप्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय स्वर्ग पर असुरों ने कब्जा कर लिया था।

कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोड़ने पेड़ के पास जाता, तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषिगण समझ ही नहीं पा रहे थे कि ब्राह्मण कुमार कैसे गायब होते चले जा रहे हैं।

तब उन्होंने शनि देव से सहायता मांगी। इस पर शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए। कैटभ ने शनि महाराज को पकड़ने की कोशिश की, तो शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया। तब शनि महाराज ने ऋषियों को कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पड़े की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।

जनेऊ धारण करने से पहले जरूर बोलना चाहिए यह मंत्र

दूसरी कथा के अनुसार, ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। बड़े होने इन्हें पता चला कि शनि की दशा के कारण ही इनके माता-पिता को मृत्यु का सामना करना पड़ा। इससे क्रोधित होकर पिप्लाद ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया।

इससे प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा, तो पिप्लाद ने ब्रह्मदंड मांगा और पीपल के पेड़ में बैठे शनि देव पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैर टूट गए। शनि देव दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे।

भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। तभी से शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पड़े की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।

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