नोटबंदी की वजह से परेशान हुए देश के गरीब-गुरबों और बेरोजगारों के जख्म पर मरहम लगाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार बजट में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) योजना को लागू करने की घोषणा कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो इस लक्ष्य समूह के हर व्यक्ति को हर महीने एक तयशुदा राशि मिलेगी। हालांकि पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि खूब सोच-विचार कर यदि इस योजना को लागू नहीं किया गया तो इससे देश की राजकोषीय स्थिति डांवाडोल हो सकती है।
सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इसे लागू करने की योजना मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमणियन के दिमाग की उपज है। उन्होंने पिछले साल ही इस बारे में संकेत दे दिया था और वादा किया था कि इसके बारे में आर्थिक सर्वेक्षण (इकोनोमिक सर्वे) में एक विस्तृत विश्लेषण होगा। उन्होंने जिस गंभीरता से यह संकेत दिया है, उसे देखते हुए ऐसा कहा जा रहा है कि इससे संबंधित प्रस्ताव वर्ष 2017-18 के बजट में शामिल हो सकता है।
यह राशि प्रति महीने एक हजार रुपये या इसके आसपास रह सकती है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस योजना को लागू करने के लिए पहले से चल रही सब्सिडी की कुछ योजनाओं को खत्म की जा सकती है।
उनका कहना है कि इस समय जो आय के साधन हैं तथा स्वास्थ्य, शिक्षा, ढांचागत संरचना तथा रक्षा क्षेत्र में जितना व्यय करना पड़ रहा है, उसे देखते हुए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि इस तरह की योजना के लिए राजकोषीय संसाधन नहीं है।
कहा जा रहा है कि नोटबंदी से पैदा हुई तकलीफों से राहत दिलाने के लिए यूबीआई बहुत जरूरी है। अगर यूबीआई का खाका खूब सोच-समझ कर नहीं बनाया गया और अगर उसके लिए व्यावहारिक वित्तीय आधार तैयार नहीं किया गया, तो वह एक और फील-गुड जुमला ही साबित होगा, जो कि गरीबी दूर करने में भले कोई खास मददगार न साबित हो, पर इससे राजकोषीय स्थिति डांवांडोल हो सकती है।