पहले बेमौसम बरसात ने ईंट निर्माताओं को परेशानी में डाला। भठ्ठों पर मौजूद कच्ची ईंटे गल जाने से भारी नुकसान हुआ। इस घाटे से ईंट व्यापारी अभी उबर भी नहीं पाए थे कि कोरोना नए संकट के रूप में सामने आ गया। दो माह के लॉकडाउन के बीच ईंट उद्योग के संचालन की अनुमति तो मिल गई, लेकिन कारोबार को जो घाटा हुआ उससे बाहर आने में लंबा समय लगेगा। दिसंबर, जनवरी में हुई बरसात के कारण जिले में भठ्ठों पर उत्पादन देर से शुरू हुआ। श्रमिक धीरे-धीरे काम पर लौट रहे थे। इसी बीच कोरोना को लेकर लॉकडाउन का ऐलान हो गया। काम ठप हो गया। ईंट व्यापारियों ने भठ्ठे पर मौजूद श्रमिकों से उत्पादन तो शुरू कराया, लेकिन बिक्री न होने की वजह आमदनी प्रभावित थी। ईंट व्यापारियों को हुए नुकसान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले में 24 भठ्ठों पर अभी उत्पादन शुरू ही नहीं हो सका है। जिले में स्थित 180 भठ्ठों में से 156 भठ्ठे ही चल रहे हैं। फिलहाल प्रशासन की ओर से बिक्री के लिए सशर्त मिली अनुमति के बाद यह उद्योग पटरी पर आने के लिए जूझ रहा है। ईंट व्यवसाई सुनील तिवारी का कहते हैं कि 24 हजार ईंट प्रतिदिन उत्पादन का औसत था, जो घटकर हफ्ते में चार से पांच हजार रह गया है। नुकसान को देखते हुए दर्शननगर स्थित जिस भठ्ठे से जुड़ कर वह व्यापार संचालित कर रहे हैं उस पर अभी उत्पादन बंद कर दिया गया है। योगेश केवलानी कहते हैं कि ईंट व्यवसाय का सीजन फरवरी से जून के बीच होता है। जनवरी और फरवरी तक बरसात ने उत्पादन प्रभावित किया उसके बाद लॉकडाउन ने। एक महीने में सात लाख ईंट का निर्माण कर लेने वाली उनकी इकाई अब साढ़े तीन लाख ईंटों का ही उत्पादन कर पा रही है।
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पूंजी निकालने का संकट
-उप्र ईंट निर्माता समिति के प्रदेश महामंत्री अतुल सिंह ने बताया कि ईंट निर्मताओं के सामने वर्तमान में पूंजी निकालने तक का संकट है। मुख्यमंत्री को भी इस समस्या से अवगत कराते हुए ईंट निर्माताओं को प्रति भठ्ठा 25 लाख रुपये की सहायता देने के लिए पत्र लिखा गया है।
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