ब्रिटेन के एक नीलामी घर ने बुधवार को लाइव ऑनलाइन बिक्री के लिए रखी गई 2.30 लाख रुपये कीमत वाली ‘नगा इंसानी खोपड़ी’ को वापस ले लिया है। यह कदम भारत में उठे आक्रोश और विरोध प्रदर्शन के बाद उठाया गया है।
नीलामी के लिए रखी गई थी इंसानी खोपड़ी
ऑक्सफोर्डशायर के टेट्सवर्थ में स्वान नीलामी घर में ‘द क्यूरियस कलेक्टर सेल, एंटिक्वेरियन बुक्स, पांडुलिपियों और पेंटिंग्स’ के हिस्से के रूप में दुनियाभर से प्राप्त खोपड़ियों और अन्य अवशेषों की एक श्रृंखला उपलब्ध कराई गई थी। इसमें लॉट नंबर 64 के रूप में नगा जनजाति की 19वीं सदी की सींग वाली नगा इंसानी खोपड़ी को नीलामी के रखा गया था।
नेफ्यू रियो ने किया विरोध प्रदर्शन
इसके परिणामस्वरूप नगालैंड में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया गया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने इस बिक्री को रोकने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर से मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की। उन्होंने विदेश मंत्री से आग्रह किया कि इस मामले को लंदन में भारतीय उच्चायोग के समक्ष उठाएं ताकि यह सुनिश्चित हो कि फोरम फार नागा रिकंसिलिएशन (एफएनआर) द्वारा इस मामले पर चिंता जताए जाने के बाद खोपड़ी की नीलामी रोकी जा सके।
क्या है एफएनआर का दावा?
एफएनआर ने दावा किया था कि मानव अवशेषों की नीलामी, संयुक्त राष्ट्र के स्वदेशी लोगों के अधिकारों की घोषणा (यूएनडीआरआईपी) के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। इसके बाद एफएनआर ने बिक्री की निंदा करने और इसे नगालैंड भेजने के लिए सीधे नीलामी घर से संपर्क किया। यह संगठन दुनियाभर के कई स्वदेशी समूहों में से एक है जो वर्तमान में संग्रहालय में रखी कलाकृतियों के बारे में आक्सफोर्ड में पिट रिवर संग्रहालय के साथ बातचीत कर रहा है।
नीलामी घर को 4.30 लाख रुपये मिलने की थी उम्मीद
वहीं, इस खोपड़ी के विवरण में लिखा गया था कि यह टुकड़ा मानव विज्ञान और जनजातीय संस्कृतियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले संग्राहकों के लिए विशेष रूप से दिलचस्पी भरा होगा। इस नगा खोपड़ी की कीमत 2.30 लाख रुपये रखी गई थी और नीलामी घर को इससे 4.30 लाख रुपये मिलने की उम्मीद थी। इसकी उत्पत्ति का पता 19वीं सदी के बेल्जियम वास्तुकार फ्रेंकोइस कोपेन्स के संग्रह से लगाया गया है।
नीलामी से हटी खोपड़ी
नीलामी घर के मालिक टॉम कीन ने कहा कि इससे जुड़े सभी लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए नगा खोपड़ी को नीलामी से हटा दिया गया है। हम किसी को परेशान नहीं करना चाहते थे। यह हमारे लिए एक अत्यधिक भावनात्मक और पवित्र मुद्दा है। मृतकों के अवशेषों को सर्वोच्च सम्मान और आदर देना हमारा पारंपरिक रिवाज रहा है।
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