 
कोर्ट ने आदेश में कहा है कि बिना साइंस या मैथ के स्नातक पास नियुक्त अध्यापकों को सुनकर चार माह में निर्णय लिया जाए। प्रशिक्षण प्राप्त या प्रशिक्षण के अंतिम वर्ष के दौरान ही टीईटी में बैठा जा सकता है।
जिन्होंने प्रशिक्षण के प्रथम वर्ष के दौरान ही टीईटी पास कर नियुक्ति पा ली है, ऐसे अध्यापकों को सुनकर छह माह में बीएसए निर्णय लें। कोर्ट ने कहा कि तथ्य के विषय की जांच अथॉरिटी द्वारा की जानी चाहिए। ऐसे में याची अपनी शिकायत संबंधित बीएसए से करें। इस फैसले से सैकड़ों अध्यापकों की नौकरी जा सकती है।
न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने प्रभात कुमार वर्मा व 53 अन्य की याचिका निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया। 11 जुलाई 2013 की 29334 साइंस व गणित सहायक अध्यापकों की भर्ती में मनमानी नियुक्ति के खिलाफ यह याचिकाएं दाखिल की गईं।
उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा सीनियर बेसिक स्कूलों में साइंस गणित या गणित विषय के साथ टीईटी पास होना इसकी अर्हता है। याची का कहना था कि वही टीईटी परीक्षा में बैठ सकते थे, जो सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति की योग्यता रखते हों। लेकिन प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण ले रहे लोगों ने परीक्षा दी और सफल होने पर उन्हें नियुक्ति दी गई।
 
कोर्ट ने कहा कि नियमावली 1981 के तहत टीईटी में प्रशिक्षण के अंतिम वर्ष के छात्र या प्रशिक्षित हो चुके छात्र ही बैठ सकते हैं। ये दोनों प्रश्न तथ्यात्मक हैं। इसलिए पहले इस संबंध में बीएसए निर्णय लें।
याची का कहना था कि जिन्होंने स्नातक में साइंस या गणित विषय नहीं लिया है और जो प्रशिक्षित नहीं हैं या प्रशिक्षण के अंतिम वर्ष में नहीं हैं, उन्हें नियुक्ति दे दी गई। याचिकाओं में बीएसए पर बिना योग्यता व अर्हता के लोगों की नियुक्ति देने का आरोप लगाते हुए चुनौती दी गई थी।
शासनादेश 2013 के विपरीत मनमानी नियुक्तियों को रद्द किए जाने की मांग की गई। कोर्ट ने याचिकाओं का निस्तारण कर शिकायतों को दूर कर करने का निर्देश बीएसए को दिया है। याचिका पर अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और विभू राय ने पक्ष रखा।
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