सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से 65-70 साल के उन आवेदकों का ब्योरा मांगा है जो चार बार आवेदन करने के बावजूद हज यात्रापर नहीं जा पाए हैं। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि यह अंतरिम उपाय है और केंद्र को ऐसे लोगों का ब्योरा देना होगा क्योंकि केरल हज समिति ने उस पर भेदभाव का आरोप लगाया है।
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मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर तथा डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र से 19 फरवरी तक जवाब मांगा है। पीठ ने कहा कि यह अस्थायी उपाय है। पीठ केरल हज कमेटी की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में राज्यों के हज कोटे को भेदभावपूर्ण बताया गया है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि केरल में बिहार के मुकाबले हज यात्रा के अधिक आवेदन आते हैं। बिहार में लगभग सभी आवेदकों को अनुमति मिल जाती है लेकिन केरल के ज्यादातर लोग हज यात्रा से वंचित रह जाते हैं।
केरल में कोटा कम, आवेदक ज्यादा
केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने सरकार की नीति को सही बताया और कहा कि सभी राज्यों के हज कोटे में संतुलन है और हर राज्य के लोगों को बराबर मौका मिलता है। पीठ ने पिंकी आनंद से सवाल कि उन कोटे का क्या होता है जो खाली रह जाती है। जवाब में आनंद ने कहा कि उन कोटे को सामान्य श्रेणी में डालकर सभी राज्यों में प्राप्त आवेदनों के हिसाब से वितरित कर दिए जाते हैं।
याचिका में कहा गया है कि संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने भारत सरकार को हर वर्ष 1.7 लाख हज यात्रियों को भेजने की अनुमति दी है। भारत सरकार ने राज्यों में मुसलमानों की आबादी को देखते हुए हज यात्रियों का कोटा निर्धारित किया है। यह कोटा दोषपूर्ण है। बिहार से 12 हजार हज यात्रियों का कोटा है जबकि वहां आवेदन 6900 ही आते हैं। वहीं केरल के लिए 6000 का कोटा है लेकिन आवेदन 95 हजार लोगों के आते हैं।