भारत-पाक के बीच 1965 में हुई लड़ाई में महाराजके पोस्ट पर कब्जा करने वाली टुकड़ी का नेतृत्व करने वाले वीर चक्र विजेता नायब सूबेदार गणेश दत्त जोशी नहीं रहे।नवाज का यह बड़ा बयान परमाणु परीक्षण रोकने के लिए क्लिंटन ने दिया था 5 अरब डॉलर का ऑफर…
77 वर्ष की उम्र में यहां पिथौरागढ़ स्थित अपने निवास पर बृहस्पतिवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। रामेश्वर घाट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। प्रशासन की ओर से एसडीएम एसके पांडे ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र चढ़ाए।
वह अपने पीछे तीन बेटियों और एक बेटे का भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं। कुमाऊं रेजीमेंट की ओर से प्रकाशित हरी कलगी की वीरगाथा में गणेश दत्त जोशी की बहादुरी का भी उल्लेख है।
इसके अनुसार 1965 में गणेश दत्त जोशी की बटालियन 9 कुमाऊं धारचूला में तैनात थी। अगस्त 1965 को इस बटालियन को अंबाला के पास लालरू भेजा गया था, लेकिन वहां से इस बटालियन को 69 माउंटेन ब्रिगेड के साथ तीन सितंबर को माधोपुर भेजा गया।
तत्कालीन राष्ट्रपति ने वीरचक्र से किया था सम्मानित
बटालियन को पहला काम रावी पुल की रक्षा का सौंपा गया। बाद में अन्य बटालियनों के साथ मिलकर महाराजके पर कब्जा करने की जिम्मेदारी भी 9 कुमाऊं को मिल गई।
सात सितंबर 1965 की रात एक बजे तोपों से बमबारी करते हुए 9 कुमाऊं रेजीमेंट महाराजके पर कब्जे के लिए आगे बढ़ी। दुश्मन के 20 सैनिकों को मार कर फौज की टुकड़ी ने तब नायक रहे गणेशदत्त जोशी के नेतृत्व में उसी रात स्यालकोट सेक्टर में महाराजके पर कब्जा कर लिया।
बटालियन के भी दो वीर शहीद और तीन घायल हो गए। इस युद्ध में वीरता के लिए गणेश दत्त जोशी को तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वीरचक्र से सम्मानित किया था।
वह अविभाजित उत्तर प्रदेश के पहले वीरचक्र विजेता थे। बाद में प्रमोशन पाकर वह नायब सूबेदार बने और इसी रैंक से रिटायर होकर अपने गांव मेलडुंगरी आ गए। बाद में वह पिथौरागढ़ में बस गए थे।