साउथ एशिया डेमोक्रैटिक फोरम (SADF) के एक वरिष्ठ सदस्य ने पाकिस्तान में मानवाधिकारों के खराब रेकॉर्ड पर यूरोपियन यूनियन की रिपोर्ट पर प्रश्न चिन्ह लगते हुए कहा है कि इस्लामाबाद की ‘मारो और फेंको’ पॉलिसी पहले से भी बदतर स्तर पर पहुंच गई है. ईयू ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पाकिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति सुधर रही है. SADF के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर पाउलो कसाका ने कहा कि वह इस बात से सहमत नहीं हो सकते कि पाकिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार आ रहा है. उन्होंने कहा कि उनके पास इस बात के सबूत हैं जिससे साबित हो सके कि स्थिति वास्तव में पहले से भी बुरी हो गई है.
एक लेख में कसाका ने कहा कि पाकिस्तान में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का अपहरण जारी है. इतना ही नहीं इसके बाद उन्हें मार दिया जाता है और फिर कुछ दिन बाद जब शव मिलते हैं तो उसपर टॉर्चर के निशान मिलते हैं. कसाका कहते हैं कि उन्हें यह देखकर कोई हैरानी नहीं होती कि इस्लाम और मोहम्मद पैगंबर के अपमान का हवाला देकर लोगों की हत्या के बढ़ते मामलों को देखने के बावजूद कोई भी नेता ईशनिंदा कानूनों के खिलाफ चर्चा की हिम्मत नहीं करता. कसाका कहते हैं कि सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि पाकिस्तान में उसके नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है. कसाका अंत में लिखते हैं कि बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन के असंख्य मामलों को देखने के बावजूद यूरोपियन यूनियन ने इस तरफ आंखे मूंद ली है, जो कि अस्वीकार्य है.
कसाका कहते हैं, ‘शवों को क्षत विक्षत करना इस बात का प्रतीक है कि पाकिस्तान का कानून कमजोर लोगों को निशाना बनाता है, जिनमें अल्पसंख्यक, गरीब, मानसिक रोगी और बच्चे शामिल हैं.’ कसाका ने अपने पक्ष को साबित करने के लिए साल 2017-18 की ऐमनेस्टी इंटरनैशनल की रिपोर्ट का हवाला दिया. कसाका ने कहा, ‘बीते साल जून में फेसबुक पर एक कथित ईशनिंदा वाले पोस्ट को लेकर तैमूर रजा को पंजाब प्रांत में आंतकरोधी अदालत ने मौत की सजा सुनाई. सितंबर में एक ईसाई नदीम जेन्म को कोर्ट ने वॉट्सऐप पर ईशनिंदा वाली कविता साझा करने के आरोप में मौत की सजा सुनाई.’ कसाका ने अपने लेख में ईसाई महिला आसिया बीबी उर्फ आसिया नौरीन के मामले का भी जिक्र किया, जिसे नवंबर 2010 में एक जिला कोर्ट ने ईशनिंदा के आरोप में ही मौत की सजा सुनाई थी.
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