पंजाब: कभी कभी कोर्ट के कुछ फैसले ऐसे होते है जो एक नजीर बन जाया करते हैं। हाल ही में एक कोर्ट में ऐसा ही कुछ फैसला सुनाया जिसको कुछ कर रेलवे के पैरो तले जमीन खिसक गयी। जमीन अधिग्रहण के बाद जब रेलवे ने किसान को पूरा मुआवजा नहीं दिया तो मामला कोर्ट पहुंच गया और लंबी लड़ाई के बाद अदालत ने किसान को मुआवजे की बजाय पूरी की पूरी ट्रेन ही दे दी।

मामला लुधियाना के कटाना गांव ने रहने वाले किसान समपुरण सिंह का है। एक अंग्रेजी अखबार की खबर के अनुसार मामला 2007 में लुधियाना.चंडीगढ़ रेल लाइन के लिए हुए जमीन अधिग्रहण से जुड़़ा हुआ है। उस दौरान लाइन के लिए हुए अधिग्रहण में समपुरण सिंह की जमीन भी गई थी जिसका मुआवजा कुल 1.47 करोड़ बनता था लेकिन रेलवे ने इसे केवल 42 लाख रुपए ही दिए।
2012 में यह मामला कोर्ट पहुंचा और तीन साल बाद यानी 2015 में इस पर फैसला आया। जब रेलवे ने मुआवजा नहीं दिया तो अदालत ने मजबूर होकर किसान के नाम अमृतसर से दिल्ली के बीच चलने वाली स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस उसके नाम कर दी और ट्रेन को अपने घर ले जाने की अनुमति भी दे दी।
अदालत के फैसले के बाद किसान ट्रेन पर कब्जा लेने कि लिए अपने वकील के साथ मौके पर भी पहुंच गया।उसके वकील ने कोर्ट का आदेश पत्र ट्रेन के पायलट को सौंपा लेकिन सेक्शन इंजीनियर प्रदीप कुमार ने सुपरदारी के आधार पर ट्रेन को किसान के कब्जे में जाने से रोक लिया और अब यह ट्रेन कोर्ट की संपत्ति है।
मामले को लेकर रेलवे के डिवीजनल मैनेजर अनुज प्रकाश ने कहा कि इस किसान को मुआवजे में दी जाने वाली रकम को लेकर कुछ विवाद था उसे सुलझाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने ये भी कहा कि अदालत के इस आदेश की समीक्षा कानून मंत्रालय कर रहा है।
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