लखनऊ। यूं तो पुलिस का नाम दिमाग में आते ही ऐसी छवि बन जाती है कि लोग पुलिस से डरने लगते हैं, पर इसी पुलिस विभाग में ऐसे भी कुछ लोग हैं जो न सिर्फ पुलिस वालों बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल हैं। आपने पुलिस के बुरे कामों के बारे में तो काफी कुछ पढ़ा व देखा होगा पर आइये हम आपको बताते हैं एक ऐसे सिपाही की जिंदगी के बारे में जो है तो पुलिस वाला पर उसने गरीब बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उठा रखी है। यूपी पुलिस के इस सिपाही के लोग मुरीद बन चुके हैं। झाँसी पुलिस के यह तीन साल से लेकर बारह साल तक के लगभग 45 बच्चों क हर रोज ड्यूटी से समय निकाल कर ट्यूशन पढ़ाता है।
डीआईजी कार्यालय में तैनात सिपाही जितेंद्र यादव हैं तो आम पुलिस वालों की ही तरह, पर उन्होंने देश व समाज के लिए कुछ करनेक की ठान रखी है। जितेन्द्र रोज मुख्य आवासीय कालोनियों के बीच खुले मैदान पर जिंदगी काटने वाले लोगों के बच्चों को देखते थे। प्रदर्शनी मैदान पर खुले आकाश के नीचे लोग टेंट या पन्नियों के बने खोखानुमा मकानों में रहते हैं। कई सामाजिक संगठनों के लोग यहाँ रहने वाले लोगों को कैम्प लगाकर समय समय पर जरूरत की चीजें मुहैया कराते रहे हैं। एक दिन उन्होंने मन बना लिया कि वह इन बच्चों को पढऩा और लिखाना सिखायेंगे।
सिपाही की पहल में कई लोगों ने दिया साथ
जितेंद्र ने मैदान पर रहने वाले लोगों को इस बात के लिये राजी किया कि वे अपने बच्चों को पढऩे के लिये उसके पास भेजें। अब तक 45 बच्चे उसके पास पढाई के लिये आने लगे हैं । ढाई घण्टे की नियमित क्लास ली जाती है। जितेंद्र के साथ नितिन साहू, राजेंद्र राय, ईशान, नीरज शर्मा और नितिन वर्मा जैसे उत्साही युवक भी हैं जो समय समय पर इन बच्चों को पढ़ाते हैं। बच्चे जितेंद्र को पुलिसवाला अंकल कहकर बुलाते हैं। जितेंद्र ड्यूटी के लिये घर से ढाई घण्टे पहले तैयार होकर निकलते हैं। बच्चों की क्लास लेने के बाद वे ड्यूटी के लिये रवाना होते हैं।
बच्चों के लिये स्टेशनरी का भी प्रबंध
जितेंद्र बच्चों के लिये स्टेशनरी का प्रबन्ध अपने दोस्तों की मदद से करते हैं। सामाजिक संगठनों के लोग भी इस काम में जितेंद्र की मदद कर रहे हैं। जितेंद्र का मकसद है कि इनके बच्चो में शिक्षा की ललक पैदा कर दी जाये। इन बच्चों को पढऩा लिखना सिखाने के बाद इन्हें विद्यालयों में भर्ती करवाने की जितेंद्र की योजना है।