Bihar के कैमूर जिले में मां मुंडेश्वरी का मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। माना तो यह भी जाता है कि यह ऐसा सबसे पुराना मंदिर है, जिसमें अब तक पूजा-अर्चना होती चली आ रही है।
जानकारी के अनुसार यह मंदिर शक्ति और शिव को समर्पित है। यह मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में कैमूर पर्वतश्रेणी की पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से प्राप्त शिलालेख के अनुसार माना जाता है कि उदय सेन नामक क्षत्रप के शासन काल में इसका निर्माण हुआ।
108 ईस्वी में हुआ था निर्माण: जानकारों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण दूसरी शताब्दी (108 ईस्वी) में हुआ था। हालांकि इसके निर्माण को लेकर कई मत हैं। मंदिर में लगे भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) के एक सूचनापट्ट से यह पता चलता है कि यह मंदिर 635 ईसवी से पूर्व अस्तित्व में था।
एक बात तो तय है कि यह मंदिर करीब डेढ़ हजार साल पुराना तो है ही। मंदिर परिसर में मौजूद शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। यह मंदिर अष्टकोणीय है। मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह निर्माण से अब तक कायम है। यह मंदिर ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ द्वारा संरक्षित है। मंदिर को 2007 में बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद ने अधिगृहित कर लिया था।
कनिंघम पुस्तक ने भी है इस मंदिर उल्लेख: आस-पास के लोग बताते हैं कि इस मंदिर का उल्लेख प्रसिद्ध पुरातत्वविद कनिंघम ने भी अपनी पुस्तक में किया है। इस मंदिर का पता तब चला, जब कुछ गड़रिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा।
यहां से प्राप्त शिलालेख में वर्णित तथ्यों के आधार पर कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाया कि यह आरंभ में वैष्णव मंदिर रहा होगा, जो बाद में शैव मंदिर हो गया। फिर शाक्त विचारधारा के प्रभाव से शक्तिपीठ में बदल गया। मंदिर में स्थापित शिवलिंग दुर्लभ है। दुर्गा का वैष्णवी रूप ही मां मुंडेश्वरी के रूप में यहां प्रतिष्ठित है