तीन महीने में अलग-अलग तरीके से करीब 10 करोड़ रुपये की ठगी हो चुकी है. ठगी के शहरभर में साढ़े तीन सौ से ज्यादा मामले दर्ज हैं. यह इत्तेफाक नहीं, बल्कि पुलिस के रिकॉर्ड का सच है. पुलिस केवल इन केसों की विवेचना तक ही सीमित है. वहीं पुलिस शहर के एक मात्र साइबर क्राइम सेल पर ही इन केस की जिम्मेदारी डाल कर मुंह मोड़ लेती है.
रोड पर स्नेचिंग और छोटे अपराध को चैलेंज मानने वाली पुलिस साइबर क्राइम और ठगी के मामलों पर ध्यान नहीं देती है. ऐसे मामलों में थाने की पुलिस महज एक क्राइम नंबर देकर उसे ठंडे बस्ते में डाल देती है जबकि हकीकत यह है कि जिस पब्लिक की सुरक्षा के लिए पुलिस दिन और रात एक करती है, उसी पब्लिक की गाढ़ी कमाई शातिर ठग उड़ा रहे हैं.
अफसर कर रहे चिंता, सॉल्यूशन की फिक्र नहीं
व्हाइट कॉलर क्राइम यानि साइबर अपराध की अचानक कुछ माह में बाढ़ सी आ गई है. लॉ एंड आर्डर वाले क्राइम से कई गुना ठगी की घटनाएं हो रही हैं. सर्वे और आंकड़ें भी इस बात के गवाह हैं. यहीं उच्च अधिकारी इसको लेकर काफी गंभीर हैं, लेकिन, लेकिन हकीकत में सॉल्यूशन के लिए कोई बड़ी पहल नहीं कई गई. इन मामलों के लिए शहर में मात्र एक साइबर सेल और एसटीएफ में साइबर थाना बनाया गया.
थानों में बढ़ रही केस की संख्या
शहर के ज्यादातर थानों में रजिस्टर्ड होने वाले केस में 30 फीसदी मामले ठगी और साइबर क्राइम से जुड़े हैं. जिन्हें आईटी एक्ट, अमानत में खयानत और आईपीसी की 420 की धारा में दर्ज किया जा रहा है. हालांकि उनकी इंवेस्टिगेशन के लिए कोई प्रभावी जांच पड़ताल नहीं की जाती है. थानों में दर्ज होने वाले कई केस में विवेचक फाइनल रिपोर्ट लगा देते हैं. विवेचक का कहना होता है कि इस तरह के अपराध एक जगह नहीं किए जाते हैं बल्कि अपराध का कनेक्शन शहर से दूसरे शहर या दूसरे प्रदेश से होता है, जिसके चलते आरोपियों की धरपकड़ मुश्किल हो जाती है.
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