राज्य बनने के बाद पांचवां लोकसभा चुनाव हो रहा है। इससे पहले लोकसभा हो या विधानसभा हर चुनावी पिच पर राजनीतिक दल गैरसैंण के मुद्दे को कभी बैक तो कभी फ्रंट फुट पर खेलते रहे हैं, लेकिन इस बार ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के बाद पहली बार गैरसैंण का मुद्दा चुनावी पिच से बाहर पवेलियन में है।
चिह्नित राज्य आंदोलनकारी समिति के केंद्रीय अध्यक्ष हरिकृष्ण भट्ट कहते हैं, जिस भावना से राज्य बना उसके केंद्र में गैरसैंण राजधानी रहा। लेकिन, राज्य बनने के बाद कई राजनीतिक दलों ने पहाड़ चढ़ने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई और राजधानी के मसले को आयोगों के कुएं में धकेल दिया।
वर्ष 2012 में तत्कालीन विधायक डाॅ. अनुसूया प्रसाद मैखुरी, तब सांसद रहे सतपाल महाराज, मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में विधानसभा भवन बनाने की बात कह डाली। पूर्व सीएम हरीश रावत ने इसे आगे बढ़ाया, लेकिन राजधानी के लिए हजारों करोड़ की धनराशि की डिमांड तत्कालीन केंद्र सरकार से कर डाली। विधान भवन और विधायक आवास बनने के बाद यहां चंद दिनों के सत्र होते रहे। 2017 के बाद सीएम बने त्रिवेंद्र सिंह ने भी इसमें एक कदम और आगे बढ़ाया और ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दी। राज्य आंदोलनकारी दिनेश जोशी, एमएस नेगी का कहना है कि बदला कुछ नहीं।
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