मेट्रो नेटवर्क और ई-बसों के मामले में देश में पहले नंबर का होने के बाद भी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था राजधानी की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रही है। चुनावों के दौरान सभी पार्टियां परिवहन व्यवस्था को मुख्य मुद्दा बताती हैं। इसके लिए बेहतर आवाजाही व साफ आबोहवा के नाम में इसे मजबूत करने के चुनावी वायदे भी होते हैं। फिर भी, दिल्ली अभी बेबस है और मेट्रो बड़ी आबादी की पहुंच से दूर है। नतीजतन दिल्ली में अभी भी सार्वजनिक परिवहन में बाइक व कार का शेयर 64 फीसदी है। वहीं, मेट्रो का शेयर 32 फीसदी व बसों का पांच फीसदी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि सरकारों को बस, मेट्रो समेत सार्वजनिक परिवहन के सभी माध्यमों को मजबूत करने के साथ एकीकृत भी करना होगा। दिल्ली की परिवहन व्यवस्था पर विस्तार से नजर डालती धनंजय मिश्रा की रिपोर्ट….
देश का सबसे बड़ा मेट्रो नेटवर्क दिल्ली में है। इससे दिल्ली-एनसीआर की आवाजाही बेहतर हुई है। हर दिन औसत 55-60 लाख लोग यात्रा करते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि मेट्रो नेटवर्क का ऐसा जाल होना चाहिए, ताकि हर इलाके में अधिकतम डेढ़ से ढाई किलोमीटर के दायरे में मेट्रो स्टेशन उपलब्ध हों। फेज चार के मेट्रो कॉरिडोर के बाद दिल्ली के करीब हर इलाके के नजदीक स्टेशन उपलब्ध हो जाएंगे। वहीं, मेट्रो स्टेशनों से गंतव्य तक पहुंचने के लिए मौजूदा समय में बहुत अच्छी सार्वजनिक सुविधा नहीं है, इसलिए लास्टमाइल कनेक्टिविटी की सुविधा बढ़ाने की जरूरत है।
दिल्ली में योजना बनाकर काम करना होगा। मोनो रेल मेट्रो से जुड़ेगी। इससे लोगों को लास्ट माइल कनेक्टिविटी में भी मदद मिलेगी। दूसरा सड़कों पर अच्छी स्पीड होनी चाहिए। वर्तमान में दिल्ली की सड़कों पर वाहनों की रफ्तार औसत 10-20 किमी है। निजी वाहनों की संख्या कम करने के लिए परिवहन सेवा को बेहतर बनाना होगा। इसके लिए सार्वजनिक परिवहन सेवा सस्ती और सुविधाजनक होनी चाहिए। इससे लोग खुद वाहन छोड़कर मेट्रो, बस आदि में सफर करने लगेंगे। यात्रियों की सुविधा को ध्यान रखते हुए ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें उन्हें परिवहन के अलग-अलग मोड की कनेक्टिविटी आसानी से मिल सके। मसलन, यदि कोई अपने घर से निकलता है तो उसे गंतव्य तक पहुंचने में परिवहन सेवा का इंतजार और अधिक दूर तक पैदल नहीं चलना पड़े।
– अनिल चिकारा, डीटीसी के पूर्व उपायुक्त
बस यात्रियों की संख्या कोविड के कारण कम
वर्ष 2022-23 में हर दिन औसत 41.41 लाख मुसाफिरों ने बसों में यात्रा की। वहीं, 2021-22 में यह आंकड़ा 25.49 लाख मुसाफिरों का था। मुसाफिरों की संख्या में एक साल में 16 फीसदी इजाफे के बावजूद अभी तक कोविड से पहले की स्थिति नहीं बन सकी है। वर्ष 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में हर साल औसत 41.51, 42.39 व 51.02 लाख यात्रियों ने सफर किया था।
- विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना काल के बाद बड़ी संख्या में यात्री निजी वाहनों में शिफ्ट हो गए जिन्हें वापस लाना डीटीसी के लिए चुनौती है। उधर, कोविड से पहले मेट्रो में हर दिन औसत 46-53 लाख यात्राएं होती थीं। फरवरी 2022 तक मेट्रो इस आंकड़े से पीछे थी। इसके बाद यात्रियों की संख्या में सुधार हुआ। इस वक्त मेट्रो में हर दिन औसत 55-60 लाख यात्री सफर कर रहे हैं। हालांकि, इस बीच मेट्रो की दो लाइनें शुरू हुई हैं।
1948 में शुरू हुई थी बस सेवा
दिल्ली में लोकल बस सेवा की शुरुआत मई 1948 में हुई थी। 1958 में यह निगम का उपक्रम बन गया। केंद्र सरकार ने 1971 में दिल्ली सड़क परिवहन कानून (संशोधन) अधिनियम पारित करके इसका प्रबंधन अपने हाथ में लिया। इसके बाद 1971 में दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की स्थापना हुई। 1996 में निगम केंद्र सरकार से दिल्ली सरकार के हाथ में आ गया। 1990 के शुरुआती दशक में दिल्ली की सड़कों पर डबल डेकर बसें हुआ करती थीं।
- डीजल से चलने वाली बसों से प्रदूषण होता था। ऐसे में 2002 से दिल्ली में सीएनजी बसों की शुरुआत हुई। सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण और स्वास्थ्य के खतरों को देखते हुए सरकार से डीजल बसों को सीएनजी में बदलने के निर्देश दिए थे। अब सड़कों पर 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक बसें नजर आ रही हैं। दिल्ली फिलहाल देश में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रिक बसें संचालित करने वाला राज्य है।