दुनिया भर के संघर्षग्रस्त इलाकों में रहने वाले करीब एक अरब लोग सिर्फ गोलियों और विस्फोटों से ही नहीं बल्कि भूख, बीमारी और गरीबी की धीमी मौत से भी जूझ रहे हैं। विश्व बैंक की नई रिपोर्ट में सामने आया है कि हिंसक संघर्ष से जूझते देशों में न सिर्फ गरीबी चरम पर है बल्कि वहां के नागरिकों की औसत आयु, स्वास्थ्य सुविधाएं और आर्थिक विकास भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। उच्च तीव्रता वाले संघर्षों के करण ऐसे देशों की प्रति व्यक्ति आय में पांच वर्षों के भीतर करीब 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की जाती है।
विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की लगभग एक अरब आबादी उन 39 देशों या क्षेत्रों में रह रही है, जो पिछले कई वर्षों से संघर्ष और अस्थिरता से जूझ रहे हैं। ये देश एफसीएस (फ्रैगिलिटी कनफ्लिक्ट एंड वायलेंस) श्रेणी में आते हैं। इनमें से ज्यादातर उप-सहारा अफ्रीका में हैं, जबकि कुछ पश्चिम एशिया, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में भी हैं। इन देशों में रहने वाले नागरिकों के लिए संघर्ष सिर्फ एक राजनीतिक या सैन्य चुनौती नहीं बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा संकट बन चुका है। इन क्षेत्रों में अगर लोग जीवित बच भी गए तो यह संघर्ष जीवन भर के लिए भारी कठिनाइयों सबब बन जाता है। सामान्य विकासशील देशों में जहां चरम गरीबी की दर मात्र 6 फीसदी है, वहीं संघर्ष-ग्रस्त देशों में यह लगभग 40 फीसदी तक पहुंच गई है।
सिर पर छत नहीं, पेट में खाना नहीं, स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल, शिशु मृत्युदर भी हुई दोगुनी
एफसीएस देशों की लगभग 20 करोड़ आबादी इस समय गंभीर खाद्य असुरक्षा से जूझ रही है। यह संख्या अन्य विकासशील देशों की तुलना में 18 गुना अधिक है। यही नहीं अन्य देशों के मुकाबले यहां शिशु मृत्यु दर भी दो गुनी अधिक और औसत जीवन प्रत्याशा सात वर्ष कम यानी 71 वर्ष के मुकाबले 64 है। स्वास्थ्य ढांचा अक्सर या तो पूरी तरह ध्वस्त होता है या फिर लगातार चल रहे संघर्षों के कारण चरमराया रहता है। कई अस्पताल बंद हो चुके हैं, दवाओं की भारी कमी है और प्रशिक्षित चिकित्सकों का पलायन जारी है।
कहां-कहां पनप रही त्रासदी
सूडान दशकों से गृहयुद्ध, तख्तापलट और जातीय हिंसा से जूझ रहा है। वर्ष 2023-24 में शुरू हुए नए सशस्त्र संघर्ष ने राजधानी खार्तूम सहित कई शहरों को खंडहर बना दिया है। लाखों लोग बेघर हुए हैं और खाद्य संकट ने विकराल रूप ले लिया है।
इथियोपिया के टीगरेय क्षेत्र में सरकार और विद्रोही गुटों के बीच हुए संघर्ष ने 2020 से लेकर अब तक लाखों जानें ली हैं। हजारों लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ली, और व्यापक अकाल जैसी स्थिति बनी।
गाजा और वेस्ट बैंक में इस्राइल-हमास संघर्ष ने पहले से ही संकटग्रस्त इस क्षेत्र को और अधिक तबाही की ओर धकेल दिया है। गाजा में बुनियादी स्वास्थ्य, पानी और बिजली जैसी सुविधाएं लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं।
इसी तरह रूस के साथ चल रहे युद्ध ने यूक्रेनी अर्थव्यवस्था को गहरा आघात दिया है।
2022 के बाद से जीडीपी में जबरदस्त गिरावट आई और लाखों नागरिकों को अन्य देशों में शरण लेनी पड़ी है। इस्राइल से युद्ध के कारण ईरान की भी एक बहुत बड़ी आबादी संकट में आ गई है।