हालांकि, पंजाब में मुख्य मुकाबला उक्त तीन दलों के बीच ही माना जा रहा है, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा), अकाली दल अमृतसर के नेतृत्व में पंथक फ्रंट, पूर्व कांग्रेसी जगमीत बराड़ के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस, आप के निलंबित सांसद डॉ. धर्मवीर गांधी के नेतृत्व में विभिन्न क्षेत्रीय दलों का पंजाब फ्रंट और वामपंथी भी चुनाव मैदान में उतर रहे हैं।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की कुल 117 सीटों में 68 सीटें (शिअद 56+भाजपा 12) जीती थीं, वहीं कांग्रेस 46 सीटों के साथ विपक्ष में रही। निर्दलीय व अन्य के हिस्से में केवल 3 सीटें ही आई थीं, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में तस्वीर बिल्कुल अलग है।
बीते लोकसभा चुनाव में पंजाब से चार सीटें जीतने वाली आप ने दिल्ली से बाद पहली बार किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में कदम रखा है और अब तक 117 में से 103 सीटों पर अपने प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं।
उम्मीदवारों की 8वीं सूची जारी, सिर्फ दो प्रत्याशियों के नाम
पार्टी ने शिअद प्रत्याशी व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की पारंपरिक सीट लंबी के अलावा डिप्टी सीएम सुखबीर बादल की संभावित सीट जलालाबाद से अपने प्रत्याशी तय करने के साथ ही कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ भी प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं।
ऐसे में इन प्रमुख नेताओं की सीटों के परिणाम को लेकर चर्चाओं का दौर भी शुरू हो गया है। दूसरी ओर, सत्ताधारी गठबंधन के तहत शिअद ने तो अपने हिस्से की 94 सीटों में से अब तक 76 सीटों पर अपने प्रत्याशियों का एलान कर दिया है, लेकिन भाजपा अभी तक अपने हिस्से की 23 सीटों के लिए प्रत्याशी तय नहीं कर सकी है।
यहां खास बात यह भी है कि शिअद और कांग्रेस की ओर से अपने प्रत्याशियों का एलान करते ही दोनों दलों में बगावत भी शुरू हो गई। इसमें सबसे ज्यादा खराब स्थिति कांग्रेस की है। बीते दो महीनों के दौरान शिअद और कांग्रेस के बागियों का एक-दूसरे दल में शामिल होने का सिलसिला जारी रहा है। फिर भी, शिअद के खेमे में इस बात को लेकर थोड़ी राहत है कि चुनाव में तीसरे दावेदार के आने से वोट बंट सकते हैं, जिसका सीधा सत्तारूढ़ गठबंधन को होगा।अन्य दलों में बसपा, पंथक फ्रंट और पंजाब फ्रंट ने भी कुछ सीटों पर अपने प्रत्याशियों की पहली सूचियां जारी कर दी हैं। बुधवार को चुनाव आचार संहिता लागू होने के साथ ही अब राजनीतिक दलों के पास एक महीने का समय है। उम्मीद है कि सभी दल सबसे पहले अपने बाकी प्रत्याशियों के नामों का एलान करेंगे ताकि उन्हें चुनाव प्रचार के लिए कम के कम तीन हफ्ते का समय मिल सके।