शहरी सुविधाओं से होने लगा जंगल में मंगल

शहरी सुविधाओं से होने लगा जंगल में मंगल

सांसद से सीएम बनने के अपने सफर में योगी आदित्यनाथ हमेशा रहे वनटांगिया समुदाय के दर्द से बावस्ता

सीएम बनते ही दिया वनटांगिया गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा, विकास के पैमाने पर चमकने लगे
सड़क, बिजली, स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र जैसी सुविधाओं के साथ आरओ वाटर की मशीनें तक हैं घने जंगल मे बसे गांव में
2009 से बतौर सांसद वनटांगियों के साथ दिवाली मनाते हैं योगी, मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जारी है सिलसिला गोरखपुर। बीच जंगल में बसे गांव और वहां शहरी सुविधाओं की पूरी मौजूदगी से मंगल ही मंगल। सुनने में अटपटा लग रहा है ना। पर, यह सौ फीसद जमीनी हकीकत है। यकीन न हो तो चले आइये गोरखपुर जिले के घने कुसम्ही जंगल में। यहां पांच वनटांगिया गांवों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से आज वह हर जरूरी सुविधा मुहैया है जो शहरी बस्तियों में होती है। सांसद के रूप में योगी ने वनटांगिया समुदाय के लोगों के लिए जो संघर्ष किया, मुख्यमंत्री बनने के बाद सौगात में तब्दील कर दिया। वर्ष 2009 से योगी वनटांगिया लोगो के बीच दिवाली मनाते हैं, मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सिलसिला बदस्तूर जारी है।

कौन हैं सौ साल तक उपेक्षित रहे वनटांगिया
अंग्रेजी शासनकाल में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई। इसकी भरपाई के लिए अंग्रेज सरकार ने साखू के पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया। साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की टांगिया विधि का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए। कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं। 1947 में देश भले आजाद हुआ लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा। जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास न तो खेती के लिए जमीन थी और न ही झोपड़ी के अलावा कोई निर्माण करने की इजाजत। पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन भी नहीं। और तो और इनके पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं था जिसके आधार पर वह सबसे बड़े लोकतंत्र में अपने नागरिक होने का दावा कर पाते। समय समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय।

इन अहिल्या के लिए राम की भूमिका में आये योगी
वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर के सांसद बने। उनके संज्ञान में यह बात आई कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं। नक्सली गतिविधियों पर लगाम के लिए उन्होंने सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को इन बस्तियों तक पहुंचाने की ठानी। इस काम में लगाया गया उनके नेतृत्व वाली महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाओं एमपी कृषक इंटर कालेज व एमपीपीजी कालेज जंगल धूसड़ और गोरखनाथ मंदिर की तरफ से संचालित गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पताल की मोबाइल मेडिकल सेवा को। जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन वनटांगिया गांव में 2003 से शुरू ये प्रयास 2007 तक आते आते मूर्त रूप लेने लगे। इस गांव के रामगणेश कहते है कि महराज जी (योगी आदित्यनाथ को वनटांगिया समुदाय के लोग इसी संबोधन से बुलाते हैं) हम लोगों के लिए उस राम की भूमिका में आये जिन्होंने अहिल्या का उद्धार किया था।

जब योगी आदित्यनाथ पर हुआ मुकदमा
वनटांगिया लोगों के बीच शिक्षा की रोशनी पहुंचाने के योगी आदित्यनाथ के प्रयासों के खास सहयोगी एमपीपीजी कालेज जंगल धूसड़ के प्राचार्य डॉ प्रदीप रॉव बताते हैं कि वन्यग्रामों के लोगों को जीवन की मुख्यधारा में जोड़ने के दौरान 2009 में योगी जी को मुकदमा तक झेलना पड़ा। वनटांगिया बच्चों के लिए एस्बेस्टस शीट डाल एक अस्थायी स्कूल का निर्माण योगी के निर्देश पर उनके कार्यकर्ता कर रहे थे, इस पर वन विभाग ने इस कार्य को अवैध बताकर एफआईआर दर्ज कर दी। योगी ने अपने तर्कों से विभाग को निरुत्तर किया और अस्थायी स्कूल बन सका।

2009 में शुरू की वनटांगियों के साथ दिवाली मनाने की परंपरा
वनटांगियों को सामान्य नागरिक जैसा हक दिलाने की लड़ाई शुरू करने वाले योगी ने वर्ष 2009 से वनटांगिया समुदाय के साथ दिवाली मनाने की परंपरा शुरू की तो पहली बार इस समुदाय को जंगल से इतर भी जीवन के रंगों का अहसास हुआ। फिर तो यह सिलसिला बन पड़ा। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी इस परंपरा का निर्वाह करना नहीं भूलते हैं। इस दौरान बच्चों को मिठाई, कापी-किताब और आतिशबाजी का उपहार देकर पढ़ने को प्रेरित करत…

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