शादी में आ रही है रुकावट तो जल्द बजेगी शहनाई, बस करे ये उपाय !! कार्तिक एकादशी (11 नवंबर 2016) को देवोत्थान या देवउठान मनाने का प्रचलन पौराणिक काल से ही चला आ रहा है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल की एकादशी को ही भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस को मारकर भारी थकावट से शयन कर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे थे।
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देवोत्थनी (देवउठनी) एकादशी के बाद से सभी मांगलिक विवाहादि कार्य आरम्भ होने का विधान है। दीपोत्सव के बाद आने वाली इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं।
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। चार माह के बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। भागवतपुराण के अनुसार विष्णु के शयन काल के चार माह में मांगलिक कार्यों का आयोजन पूरी तरह से निषेध है।
श्रीहरि की कृपा से जन्म-चक्र से मुक्ति
अग्नि पुराण के अनुसार एकादशी तिथि का उपवास बुद्धिमान, शांति प्रदाता व संततिदायक है। विष्णु पुराण के अनुसार किसी भी कारण से चाहे लोभ या मोह के वशीभूत होकर एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का अभिवंदन करते हैं। वे समस्त दु:खों से मुक्त होकर जन्म-मरण के चक्र से भी मुक्त हो जाते हैं। सनत् कुमार ने लिखा है कि जो व्यक्ति एकादशी व्रत या स्तुति नहीं करता वह नरक का भागी होता है।
महर्षि कात्यायन के अनुसार जो व्यक्ति संतति, सुख सम्पदा, धन धान्य व मुक्ति चाहता है तो उसे देवोत्थनी एकादशी के दिन विष्णु स्तुति, शालिग्राम व तुलसी महिमा के पाठ व व्रत अवश्य रखना चाहिए।
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तुलसी विवाह का महत्त्व
पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष में देव प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी शालिग्राम के विवाह को पर्व के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह के संकल्प और उसे पूरा करने सेे व्यक्ति सुखी तथा समृद्ध होता है।
संकल्प पूर्ण करने में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। विवाह योग्य जिन बच्चों की जन्म कुंडली में मांगलिक दोष के कारण विघ्न आ रहा हो उनके द्वारा तुलसी शालिग्राम विवाह करने से मांगलिक दोष का परिहार होता है।
इसी प्रकार जिन दम्पत्तियों को कन्या सुख प्राप्त नहीं हो रहा है, उन्हें तुलसी विवाह करने से कन्या दान का फल मिलता है। तुलसी विवाह का संकल्प तीन माह पूर्व लेकर उस पौधे को रोजाना सींचते एवं पूजा करते रहें।
– डॉ. शंकरलाल शास्त्री