महाराष्ट्र में किसानों को कर्जमाफी की रकम नहीं मिलने पर शिवसेना ने एक बार फिर देवेंद्र फडणवीस सरकार पर निशाना साधा है. अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में शिवसेना ने मुख्यमंत्री पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि किसान अब भी अपने खाली पासबुक लेकर हताश खड़े हैं. कर्जमाफी पर लगा समस्या का ग्रहण दूर होने का नाम नहीं ले रहा है.अभी-अभी: अभिनेता पृथ्वी जुत्शी ने दिया बड़ा बयान, कहा- ‘कैसे मान लूं कि अयोध्या में ही राम का जन्म हुआ”
लेख कहता है कि श्रेय लेने की जल्दबाजी किस तरह घातक होती है और उसका खामियाजा आम जनता को किस तरह भुगतना पड़ता है. इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण के लिए कर्जमाफी के गड़बड़ झाले की ओर देखना चाहिए.
संपादकीय कहता है कि मुख्यमंत्री फडणवीस के निर्देश के बावजूद पहले चरण में जिन किसानों की कर्जमाफी मंजूर हुई. उनके खाते में कर्जमाफी की रकम ही जमा नहीं हुई. राज्य सरकार द्वारा पैसा देने के बावजूद किसानों के हाथों में अब तक कुछ नहीं आया है, जिन किसानों की सूची को सूचना और तकनीकी विभाग ने हरी झंडी दिखाई है, उसमें भी तकनीकी खामियां होने की वजह बताई जा रही है.
अखबार के मुताबिक इन गलतियों का जिम्मा जिस विभाग को लेना चाहिए वह अपने हाथ ऊपर उठा रहा है और कर्जमाफी की आशा में किसान पिसा जा रहा है. शिवसेना ने लेख में कहा है कि कर्जमाफी नहीं, लेकिन ऑनलाइन गड़बड़ी को संभालो, ऐसी उसकी अवस्था हो गई है, एक बार ऑनलाइन आवेदन सभी स्तरों पर मंजूर होने के बाद उन आवेदन पत्रों में गलतियां कैसे मिली, किसानों के बैंक खाते में कर्जमाफी की रकम जमा करने का निर्देश सरकार द्वारा दिए जाने के बाद तकनीकी गलती का भूत बाहर कैसे आता है.
लेख में कहा गया है कि दीवाली के मूर्हुत पर कर्जमाफी का सम्मान समारोह आयोजित कर श्रेय के पटाखे फोड़ने की जल्दबाजी सत्ताधारियों ने की, जिसका पासा पलट गया है. राज्य में बीजेपी के साथ सत्ता में साझीदार शिवसेना का कहना है कि किसानों को कर्जमाफी का प्रमाण दिए जाने के बाद भी कर्जमाफी का घोड़ा कहां अटका हुआ है?
अखबार लिखता है कि कर्जमाफी डेढ़ लाख की और प्रमाण पत्र दिया जाता है 10 हजार का, यह किसानों के साथ क्रूर मजाक है! साढ़े नौ लाख किसानों के बैंक में पैसे जमा करने का मुख्यमंत्री का आदेश तकनीकी गलती के गर्त में क्यों लटका हुआ है?
लेख के मुताबिक कर्जमाफी की घोषणा करते समय भी यही हुआ, उसका श्रेय आन्दोलन करने वाले किसान संगठनों को दिया जाना चाहिए लेकिन इसका श्रेय 15 वर्षों से एकाकी आंदोलन करने वाली शिवसेना को ना मिले, इसलिए जल्दबाजी की गई.
अखबार कहता है कि कर्ज माफी लाखों किसानों की जिंदगी और मौत से जुड़ा हुआ सवाल है. फिर भी यह सत्ताधारियों के लिए श्रेय लेने का मामला बन गया है. सरकार रोज कर्जमाफी का नया-नया वादा कर रही है. आश्वासन का बुलबुला हवा में उड़ा रही है.
बीजेपी की सहयोगी पार्टी का कहना है कि मुख्यमंत्री का दिया हुआ कर्जमाफी का प्रमाणपत्र हाथ में है, लेकिन किसान कर्जमाफी के इस वादा बाजार में भरी गई सातबारा और कोरे बैंक पासबुक देखते हुए हताश खड़ा है, उसकी अवस्था कर्जग्रस्त की आग से कर्जमाफी की खाई में गिरने जैसी हो गई है.