श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के भूमि पूजन के बाद निर्माण शुरू होने की बारी है। इसके लिए प्रस्तावित मंदिर की डिजाइन फाइनल होने की प्रतीक्षा की जा रही है। यहां पर मंदिर तो उसी मॉडल के अनुरूप होगा, जिसके लिए पत्थरों की तराशी तीन दशक पहले से ही यहां के रामघाट, कार्यशाला में चल रही है। अब प्रस्तावित मंदिर के आकार में वृद्धि के चलते डिजाइन को नए सिरे से अंतिम स्पर्श दिया जाना है।
अयोध्या में इस दिशा में 1990 से ही मंदिर मॉडल के मुख्य शिल्पी एवं गुजरात निवासी मशहूर वास्तुविद् चंद्रकांत सोमपुरा दो वास्तुविद् बेटों निखिल और आशीष सोमपुरा के साथ युद्धस्तर पर सक्रिय हैं। आकृति वृद्धि के बाद प्रस्तावित मंदिर का खाका पखवारे भर पहले ही खींच लिया गया है और अब उसे तकनीकी और वैज्ञानिक तथ्यों की कसौटी पर कस कर अंतिम स्वरूप दिया जा रहा है।
डिजाइन फाइनल होने के बाद तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से उसे स्वीकृत कराने के लिए अयोध्या विकास प्राधिकरण में प्रस्तुत करने की तैयारी भी है। इस बीच मंदिर की नींव मजबूत करने की संभावनाएं खंगालने के लिए विशेषज्ञ सिविल इंजीनियरिंग का दल सक्रिय रहेगा और विशुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से तैयार अपनी रिपोर्ट मंदिर निर्माण समिति को सौंपेगा। कालजयी मंदिर निर्माण में नींव पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके लिए नोएडा स्थित सेंजर्स नामक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लैब में जन्मभूमि की मिट्टी की जांच करायी जा चुकी है।
रामलला के गर्भगृह सहित पांच एकड़ में विस्तृत प्रस्तावित मंदिर के 14 स्थलों से परीक्षण के लिए 20 से 60 मीटर नीचे तक की मिट्टी का परीक्षण किया जा चुका है और इस परीक्षण में रामजन्मभूमि की मिट्टी निर्माण की सभी कसौटी पर खरी उतर चुकी है।
भव्यतम मंदिर निर्माण से पूर्व सबसे बड़ी आशंका यही थी कि मंदिर में लगने वाले लाखों टन पत्थर क्या रामजन्मभूमि की मिट्टी बर्दाश्त कर पाएगी। मिट्टी का परीक्षण होने के साथ अब यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि राम मंदिर की नींव बहुत मजबूत हो और इसके लिए पाइलिंग सिस्टम का प्रयोग किया जाएगा। इस सिस्टम के तहत नींव में बेहद हैवी फोर्स के साथ कंक्रीट या पत्थर डाले जाते हैं। राम मंदिर के लिए जिस सतह पर पाइलिंग होगी, वह सतह से दो सौ फीट नीचे है। निर्माण से जुड़े सूत्रों के अनुसार इसी माह के अंत तक मंदिर निर्माण का कार्य गति पकड़ सकता है।