नई दिल्ली। निर्भया गैंगरेप के दोषियों को हाई कोर्ट से मिली सजा-ए-मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी है। शुक्रवार को कोर्ट से मिले इस न्याय का हर किसी ने खुले दिल से स्वागत किया है।
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पर इन सब के बीच हर किसी के दिल में बस एक सवाल घूम रहा है कि “क्या सच में इन दोषियों को सजा-ए-मौत की सजा मिल पाएगी..? और मिलेगी तो कितना वक़्त लगेगा..? ये सवाल पैदा होना लाजमी भी है।
क्योंकि इसकी वजह बेहद मजबूत है। दरअसल, संविधान में कुछ ऐसे भी क़ानून हैं जिसका सहारा लेकर ये दरिन्दे देश के सर्वोच्च अदालत के फैसले के खिलाफ जा सकते हैं। कुछ ऐसे दांव हैं जिसके बल पर ये आरोपी फांसी की सजा से बरी हो सकते हैं।
भारत में सजा-ए-मौत की सजा का इतिहास इस बात का गवाह है कि सर्वोच्च अदालत से मौत की सजा पाने वाले ज्यादातर अपराधी फांसी के फंदे तक नहीं जा पाते। जिसकी वजह है कानून में दोषियों को मिलने वाले विकल्प और मानव अधिकार संरक्षण संबंधी प्रावधान।
सबसे बड़ी बात ये है कि भारत में बमुश्किल किसी को सजा-ए-मौत की सजा देने का प्रावधान है। अगर अपराध बहुत संगीन हो तो दोषी को उम्रकैद बामुशक्कत की सजा दी जाती है। अदालतें भी सजा-ए-मौत कम ही मामलों में सुनाती हैं।
वर्ष 2014 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में पिछले 10 सालों में 1300 से ज्यादा अपराधियों को फांसी की सजा सुनाई गई। लेकिन उनमें से महज पांच लोगों को ही फांसी के फंदे पर लटकाया गया। ये आंकड़ा भी लोगों के सवाल को मजबूत करता है।
22 सालों में सिर्फ इन्हें मिली फांसी
पिछले 22 वर्षों के दौरान सिर्फ पांच लोगों को फांसी के फंदे पर लटकाया गया। जिसमें 1999 में ऑटो शंकर, 2004 में धनंजय चटर्जी, 2012 में आमिर अजमल कसाब और 2013 में अफजल गुरु और 2015 में याकूब मेमन को फांसी पर लटकाया गया। एक अनुमान के अनुसार भारत में हर साल तकरीबन सवा सौ लोगों को फांसी की सजा मिलती हैं, मगर वो अमल में नहीं लाई जाती। जिसके चलते प्रक्रिया में अपराधी अपनी पूरी ज़िन्दगी जी चुका होता है।
सजा से बचने के ये तीन विकल्प हैं महत्वपूर्ण
सुप्रीम कोर्ट से सजा पा चुके अपराधी “पुनर्विचार याचिका, राष्ट्रपति के यहां दया याचिका और क्यूरेटिव याचिका” जैसे हथकंडे अपना सकते हैं। इस दावे के लिए सविधान उन्हें छूट देता है।
पुनर्विचार याचिका
निर्भया गैंगरेप और हत्या के चारों दोषियों को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने फांसी की सजा सुनाई है। लेकिन ये तीनों अभी मौत से बचने के लिए बड़ी खंडपीठ के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं. बड़ी खंठपीठ से आशय है, तीन जजों से ज्यादा जजों वाली खंडपीठ। जिसमें इस मामले पर पुनः सुनवाई की जा सकती है।
राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका
अगर दोषियों की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो जाती है, तो ये चारों राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल कर सकते हैं। इसके बाद यह फैसला पूरी तरह से राष्ट्रपति के ऊपर है कि वह इनकी फांसी की सजा को बरकरार रहने दें या फिर उसे उम्रकैद में तब्दील कर दें। राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह पर इस बारे में फैसला लेते हैं।
क्यूरेटिव याचिका
क्यूरेटिव याचिका तब दाखिल की जाती है, जब किसी दोषी की राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में डाली गई पुनर्विचार याचिका दोनों खारिज हो जाएं। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसलों पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन याचिकाकर्ता को यह बताना होता है कि वह किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे रहा है।