चीन ने सोमवार को कहा कि सदस्य देशों की चिंताओं के मद्देनजर ब्रिक्स संयुक्त घोषणापत्र में जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा और हक्कानी नेटवर्क जैसे संगठनों को आतंकी करार दिया गया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने ब्रिक्स के संयुक्त घोषणापत्र में पहली बार इन समूहों को आतंकी बताने का बचाव करते हुए कहा कि ब्रिक्स देशों ने इन संगठनों की हिंसक गतिविधियों को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर कीं।
उन्होंने इन आतंकी समूहों को लेकर ब्रिक्स देशों के एक मजबूत संदर्भ को लेकर एक लिखित जवाब में कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है और वे अफगानिस्तान मुद्दे को लेकर महत्त्वपूर्ण असर रखते हैं।’ हालांकि गेंग ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या ब्रिक्स घोषणापत्र में आतंकी समूह के तौर पर जैश का नाम लेना समूह के प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध का विरोध करने के चीन के रुख में बदलाव का प्रतीक है।
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चीन ने पिछले साल उड़ी हमले के बाद गोवा में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में अपने पुरजोर प्रयासों से यह सुनिश्चित किया था कि जैश ए मुहम्मद व लश्कर ए तैयबा का नाम आतंकी संगठनों के तौर पर नहीं लिया जाए। लेकिन इस बार चीनी शहर श्यामेन में हुए सोमवार को जारी हुए ब्रिक्स घोषणापत्र में इन दोनों संगठनों को आतंकवाद में संलिप्त करार दिया गया है।
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वह भी तब जबकि शिखर सम्मेलन से पहले चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था, ‘हमने इसका संज्ञान लिया है कि जब पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी कदम की बात आती है जो भारत की कुछ चिंताएं हैं। मुझे नहीं लगता है कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में चर्चा के लिए यह उचित विषय है।’ यह पहली बार है जब चीन ब्रिक्स घोषणापत्र में पाकिस्तानी आतंकी समूहों को शामिल करने पर सहमत हुआ है। पिछले दो सालों में चीन यह कहते हुए जैश सरगना मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने की भारत की और फिर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की कोशिशों को बाधित करता रहा है कि मुद्दे पर आम सहमति नहीं है।
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