महाकाली अपने रौद्र रूप में है। उच्च हिमालय से निकलने वाली इस नदी की लहरें धारचूला पहुंचते ही 2013 की तबाही की यादें ताजा करती हैं। करीब 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से किनारों से टकराते मटमैले पानी की आवाज सिहरन पैदा करती है। यह खौफ सिर्फ इस तरफ (भारत) है, उस पार (नेपाल) जाने पर खिलखिलाते चेहरे नजर आते हैं।
यह सुकून लाजिमी है। क्योंकि नेपाल ने सबक लिया है अतीत की तबाही से। उसने अपने दार्चुला को बचाने के लिए नदी के किनारे इतना मजबूत किला खड़ा कर दिया है कि महाकाली की लहरें अब इस किले से टकराने के बाद नतमस्तक होकर वापस लौट आती हैं और फिर अपना क्रोध निकालती हैं भारतीय किनारों पर। करीब सात हजार की आबादी वाले धारचूला की सुरक्षा अब भी रामभरोसे है। नदी अपना तट चौड़ा कर रही है। मिट्टी निगल रही है, पत्थरों को बहा रही है और हमारी सीमा के प्रहरी बेबस हैं।
गरीब देश कहा जाने वाला नेपाल अपनी अर्थव्यवस्था से निर्धन हो सकता है, लेकिन विजन के मामले में वह आगे है और इस पर महाकाली का किनारा मुहर लगाता है। किले की तरह दिखने वाली भारी भरकम दीवार के सहारे उसने दार्चुला के लिए बड़ा कवच बनाकर खतरे को खुद की सरहद से दूर कर दिया है। भारतीय अभी दहशत के बीच इंतजार कर रहे हैं। ऐसा ही मजबूत किला बनने का इंतजार। एक और जल प्रलय का इंतजार।
ढाई करोड़ में दो किमी लंबी दीवार
महाकाली भारत और नेपाल सीमा की विभाजक नदी है। धारचूला व दार्चुला के बीच से यह निकलती है। नेपाल का दार्चुला जिला है। इसका मुख्यालय यहीं है। इस मुख्यालय की आबादी पांच हजार है, जबकि धारचूला में करीब सात हजार लोग रहते हैं। 2013 में महकाली के अथाह जल ने दोनों तरफ प्रलय मचाया था। कई मकान इसकी लहरों की भेंट चढ़े। इसके बाद ही नेपाल सरकार ने सुरक्षा के लिए तानाबाना तैयार किया।
दार्चुला के महेंद्र हाईस्कूल से लाचकू तक दो किलोमीटर की दीवार पर करीब ढाई करोड़ रुपये का खर्च आया है। इसकी लंबाई दस मीटर तो चौड़ाई डेढ़ मीटर के आसपास है। 2015 से निर्माण शुरू किया गया था और इस साल बरसात शुरू होने से पहले काम पूरा कर लिया गया। जिस बेतरतीबी से तब नदी किनारे को काट रही थी, उससे दार्चुला का वजूद ही खतरे में पड़ गया था, लेकिन नेपाल की योजना के आगे महाकाली को हार माननी पड़ी है।
ऐलागाड़ तक दस हजार की आबादी पर खतरा
धारचूला में उत्तराखंड सरकार ने भी हनुमानगढ़ी की ओर करीब 700 मीटर तटबंध बनाया है, लेकिन इन तटबंधों में इतनी ताकत नहीं है कि पानी की मार झेल सकें। इसके बाद कहीं भी तटबंध नहीं। जबकि भारतीय क्षेत्र में धारचूला के अलावा काली किनारे बसने वाली आबादी ऐलागाड़ तक है। 13 किलोमीटर के इस एरिया में आबादी का आंकड़ा दस हजार तक पहुंचता है। महाकाली इस समय भी खतरे के निशान के करीब है। उच्च हिमालय से निकलने के बाद इस नदी में सैकड़ों नाले गिरते हैं और धारचूला पहुंचने तक इसका वेग पूरी ताकत के साथ किनारों पर वार करता है।
झूलापुल के नीचे भी कट रहा किनारा
जिस झूलापुल को दोनों देशों का मित्र कहा जाता है, उसके ठीक नीचे भारतीय सीमा में भी नदी का कटाव जारी है। मिट्टी लहरों के आगे पिघलकर नदी में समा रही है। इस झूलापुल से रोजाना करीब दस हजार लोग दार्चुला से धारचूला और धारचूला से दार्चुला जाते हैं। नेपाल ने अपनी तरफ जिस दीवार को बनाया है, उसके पीछे एक और मकसद है लिंक मार्ग का। दीवार नदी से भी लड़ेगी और लिंक मार्ग को भी सपोर्ट करेगी। यह मार्ग सिर्फ दार्चुला नगर के लिए