सावन शिवरात्रि पर करें इस विशेष कथा का पाठ

सावन शिवरात्रि (Sawan Shivratri 2025) पर भगवान शिव की पूजा का बहुत बड़ा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में खुशहाली आती है। आज सावन शिवरात्रि का महापर्व मनाया जा रहा है तो आइए यहां इसकी पावन कथा का पाठ करते हैं जो इस प्रकार है।

साल का सबसे पावन महीना सावन माना गया है। हर साल सावन माह में आने वाली शिवरात्रि शिव भक्त बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं। यह पूरी तरह से भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव व्रत करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में खुशहाली आती है।

वहीं, जो साधक इस दिन कठिन (Sawan Shivratri 2025 Vrat Katha) उपवास का पालन कर रहे हैं, उन्हें इस दिन की व्रत कथा का पाठ भी जरूर करना चाहिए, जो इस प्रकार है।

सावन शिवरात्रि व्रत कथा (Sawan Shivratri 2025 Vrat Katha Path)
एक नगर में अमीर साहूकार रहता था। उस साहूकार के कोई संतान नहीं थी जिस कारण वह बहुत दुखी रहता था। वह साहूकार संतान पाने के लिए हर सोमवार को भोलेनाथ की विधिवत पूजा करता था और शाम के समय मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने दीपक जलाता था। उसकी भक्ति को देखते हुए, एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि, आप अपने इस सच्चे भक्त को संतान प्राप्ति का वरदान क्यों नहीं देते हैं? तब भगवान भोलेनाथ कहते हैं कि साहूकार को पिछले जन्म के कर्मों के संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है।

लेकिन माता पार्वती भगवान शिव से आग्रह करने लगी कि वह साहूकार को संतान प्राप्ति का वर दें। माता पार्वती के इस आग्रह पर भगवान भोलेनाथ ने साहूकार के सपने में आकर उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि तुम्हारे पुत्र का आयु कम होगी और वह केवल 16 साल तक ही जीवित रहेगा।

साहूकार को यह सुनकर बहुत खुशी हुई लेकिन साथ ही संतान को कुछ समय बाद खोने के विचार से चिंतित भी हो गया। उसने पूरी बात अपनी पत्नी को बताई। कुछ समय बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हो गई और उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। उन्होंने अपने पुत्र का नाम अमर रखा। जब अमर 11 साल का हुआ तो साहूकार ने उसे अपने मामा के साथ शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी भेज दिया। साहूकार ने पुत्र को कुछ धन भी दिया और कहा कि रास्ते में ब्राह्मणों को भोजन जरूर कराना।

इसके बाद दोनों मामा-भांजे यात्रा करते हुए विश्राम के लिए एक राज्य में रुके। जिस राज्य में वह रुके वहां पर एक राजकुमार और राजकुमारी का विवाह हो रहा था। लेकिन वह राजकुमार काणा था और यह बात किसी को पता नहीं थी। राजकुमार के पिता को इस बात की चिंता हुई कि अगर राजकुमारी को यह पता बात पता चल गई तो वह विवाह नहीं करेगी। तब उस राजकुमार के पिता ने साहूकार के पुत्र को देखकर उससे राजकुमार की जगह मंडप में बैठने का आग्रह किया।

अमर, ने उस राजा की बात मान ली और मंडप में बैठ गया। इस प्रकार राजकुमारी और अमर से हो गया। विवाह के बाद बालक अपने मामा के साथ काशी के चला गया और जाते-जाते उसने राजकुमारी को सारी बात बता दी। सच जानकार, राजकुमारी ने उस राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया।

कुछ समय बाद वह बालक 16 साल का हो गया। तब उसके मामा ने एक यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के बाद उन्होंने ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान-दक्षिणा दी। इसके बाद बालक की तबीयत खराब होने लगी और वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। इस दौरान उसकी मृत्यु हो गई। यह देखकर मामा जोर-जोर से विलाप करने लगा। उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती उस मार्ग से गुजर रहे थे। तब माता पार्वती ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वो उस व्यक्ति का कष्ट दूर करें।

तब भगवान शिव में देवी पार्वती को सारी बात बतलाई। तब माता पार्वती ने कहा कि इस बालक का पिता पिछले 16 वर्षों से सोमवार का व्रत करता है और आपके समक्ष दीप जलाता है। कृपया आप इसके दुखों को दूर करें। माता पार्वती की बात सुनकर भगवान शिव ने अमर को जीवन का वरदान दिया। यह देखकर उसके मामा को अति प्रसन्नता हुई। जब वह दोनों काशी से वापस घर जाने लगे तो रास्ते में उन्हें वहीं राजकुमारी मिली जिससे अमर का विवाह हुआ था।

राजकुमारी अमर को देखकर तुरंत पहचान गई और राजा ने भी प्रसन्नतापूर्वक अपनी पुत्री को अमर के साथ विदा कर दिया। वहीं, दूसरी ओर साहूकार और उसकी पत्नी यह सोचकर बहुत दुखी थे कि 16 वर्ष के बाद उनके पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनका पुत्र अपनी वधु के साथ सुरक्षित घर आ रहा है, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इस तरह भगवान शिव की निरंतर पूजा से साहूकार को न केवल पुत्र प्राप्ति हुई बल्कि उसे जीवनदान भी मिला।

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