सुनंदा पुष्कर मौत मामले की जांच को लेकर दायर जनहित याचिका पर भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी को गहरा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि इसे राजनीतिक फायदे के लिए दायर किया गया है। पीआईएल (याचिका) पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन नहीं बल्कि पॉलटिकल इंट्रेस्ट लिटिगेशन है। इस मामले में अदालत का इस्तेमाल किया गया है। इतना ही नहीं अदालत ने स्वामी के भाजपा नेता व सुनंदा पुष्कर के पति कांग्रेस नेता शशि थरूर की प्रतिद्वंदी पार्टी के नेता होने की जानकारी नहीं देने पर भी सवाल उठाए। अदालत ने कहा यह याचिका बिना आधार की है और वे इसे खारिज करते हैं।
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भाजपा नेता स्वामी ने सुनंदा पुष्कर की मौत मामले में कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग की थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर 17 जनवरी 2014 को होटल लीला के कमरा नंबर-345 में मृत पाई गई थीं। जस्टिस एस. मुरलीधर व जस्टिस आईएस मेहता की खंडपीठ ने फैसले में कहा कि यह जनहित याचिका नहीं है, इसे राजनीतिक फायदे के लिए दायर किया गया है। इसमें जो आरोप लगाए गए हैं याची ने उसका कोई आधार नहीं बताया है। इस तरह याची किसी पर कोई आरोप नहीं लगा सकते।
खंडपीठ ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है इस मामले में अदालत का इस्तेमाल किया जा रहा है। राजनीतिक लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। कोर्ट को उम्मीद है कि दिल्ली पुलिस की एसआईटी इस मामले की जांच तार्किक तरीके से पूरी करेगी।
कोर्ट ने कहा कि याची का दावा है कि मामले की जांच को कई प्रभावशाली लोगों ने प्रभावित किया है और साक्ष्य नष्ट किए हैं। लेकिन इन आरोपों के समर्थन में कोई साक्ष्य पेश नहीं किए गए। अगर किसी पर आरोप लगाया जा रहा है तो साक्ष्य भी दिया जाना जरूरी है। इस बात पर विश्वास करने का कोई आधार नहीं है कि किस प्रकार मामले की जांच को दिल्ली पुलिस द्वारा खराब किया जा रहा है। खंडपीठ ने स्वामी से पूछा कि वह किस पर आरोप लगा रहे हैं और उनके आरोपों का क्या आधार है, जो वे कह रहे हैं उसकी जानकारी उन्हें कहां से मिली।
उन्होंने ऐसा कोई आधार अपनी याचिका में नहीं लिखा है। जवाब में स्वामी कुछ देर खामोश रहे। बाद में स्वामी ने कहा कि वह याचिका में लिखी गई हर बात की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं। उन्हें साक्ष्य पेश करने के लिए दूसरा हलफनामा पेश करने का समय दिया जाए। भाजपा नेता के जवाब पर कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब आपके पास साक्ष्य व जानकारी थी जो आपने हलफनामे में नहीं देकर कोर्ट से छिपाया है।
साक्ष्य छिपाने के आरोप पर खंडपीठ व स्वामी में गर्मागर्म जिरह
साक्ष्य छिपाने और पूरी याचिका पर खंडपीठ के रवैये से खफा स्वामी की जजों से गर्मागर्म जिरह भी हुई। स्वामी ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह उनकी पहली जनहित याचिका नहीं है। उनकी याचिकाओं पर अदालतों ने पहले कई बड़े फैसले सुनाए हैं। यह पहली बार है जब उन पर साक्ष्य छिपाने का आरोप लगाया जा रहा है। वह देश के कानून मंत्री रह चुके हैं। वह जानते हैं कि अदालत किस तरह काम करती है।
जांच में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की ले रहे मदद : एएसजी
मामले की जांच को खराब किए जाने के मुद्दे पर एएसजी संजय जैन ने कहा कि जांच में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की मदद ली जा रही है। इसके नतीजे आने के बाद केस में अंतिम रिपोर्ट पेश की जाएगी। कोर्ट ने मामले में स्वामी के सह-याची अधिवक्ता इशकरण भंडारी को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कोर्ट स्वामी से कानूनी औपचारिकताओं की पूरी जानकारी होने की उम्मीद नहीं करती लेकिन वह तो 10 साल से वकालत कर रहे हैं। इसलिए उन्हें याचिका व हलफनामे में कही बातों के कानूनी परिणाम के बारे में सोचना चाहिए था। हलफनामे में यह बताया जाना चाहिए था कि कौन सी बात उनकी जानकारी और उनकी बात उनके विश्वास पर आधारित है।