रूस की आस्या और अर्जेटीना के पाब्लो ग्रेस नौ साल पहले भारत आए और इसके बाद यहीं के होकर रह गए। दोनों यहां भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने आए थे। उनको भारत की संस्‍कृति व संगीत इतना भाया की फिर यहीं के होकर रह गए। आज वे हैलो नहीं नमस्ते कहते हैं। वे हिंदी फर्टाते से हिंदी बोलते हैं तो सामना वाला अचंभित रह जाता है। दोनों विवाह के बंधन में बंध चुके हैं। भगवान शिव शंकर की भक्‍त आस्‍या ने अपने नाम के साथ शिवा जोड़ लिया है। रूस की आस्या और अर्जेटीना के पाब्लो ग्रेस को भायी भारतीय संस्‍कृति तो यहीं के होकर रह गए आस्या और पाब्लो ग्रेस बिल्‍कुल भारतीय अंदाज में मिलते हैं। उनके मुंह से नमस्ते सुनकर लोग अचरज मेें पड़ जाते हैं। कई बार मिलने वाले उन्‍हें हैलो कहते हैं और प्रत्‍युतर में वे उन्‍हें नमस्‍ते बोलते हैं तो लोग अचरज में पड़ जेाते हैं। आस्या बांसुरी और पाब्लो तबला वादन में कई वर्ष से देशभर में प्रस्तुति दे रहे हैं। यहां भी शनिवार को दोनों सेक्‍टर 35 स्थित प्राचीन कला केंद्र में प्रस्तुति देने पहुंचे थे। इस दौरान उन्‍होंने खास बातचीत में उन्होंने भारत से अपने प्यार को साझा किया। जाखड़ बोले- वित्तीय घोटालों को छुपाने के लिए सरकार नहीं चलने दे रही है संसद यह भी पढ़ें यह भी पढ़ें: लता जी का गीत इस परिवार की अांखों में भर देता है पानी, जानें कुर्बानी की दास्‍तां आस्‍या को पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की बांसुरी रूस से खींच लाई भारत में रेलवे ट्रैक हाई स्पीड हुआ तो 78 मिनट में पहुंच जाएंगे चंडीगढ़ से दिल्ली यह भी पढ़ें आस्या बताती हैं कि उन्हें बांसुरी शुरू से ही पसंद थी। आस्‍या ने कहा, पहले मैं अंग्रेजी गीत ज्यादा सुनती थीं। एक दिन एक गीत में बांसुरी वादन सुना। यह बांसुरी वादन पंडित हरि प्रसाद चौरसिया का था। मैंने पहली बार ऐसी धुन सुनी। इस धुन ने ऐसा सम्‍मोहित किया कि मैं खुद को रोक नहीं पाई और भारत चली आई।

हम भूल रहे और इन्‍हें खींच लाया भारतीय संगीत व संस्‍कृति, जानें यह अनोखी प्रेम कहानी

रूस की आस्या और अर्जेटीना के पाब्लो ग्रेस नौ साल पहले भारत आए और इसके बाद यहीं के होकर रह गए। दोनों यहां भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने आए थे। उनको भारत की संस्‍कृति व संगीत इतना भाया की फिर यहीं के होकर रह गए। आज वे हैलो नहीं नमस्ते कहते हैं। वे हिंदी फर्टाते से हिंदी बोलते हैं तो सामना वाला अचंभित रह जाता है। दोनों विवाह के बंधन में बंध चुके हैं। भगवान शिव शंकर की भक्‍त आस्‍या ने अपने नाम के साथ शिवा जोड़ लिया है।रूस की आस्या और अर्जेटीना के पाब्लो ग्रेस नौ साल पहले भारत आए और इसके बाद यहीं के होकर रह गए। दोनों यहां भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने आए थे। उनको भारत की संस्‍कृति व संगीत इतना भाया की फिर यहीं के होकर रह गए। आज वे हैलो नहीं नमस्ते कहते हैं। वे हिंदी फर्टाते से हिंदी बोलते हैं तो सामना वाला अचंभित रह जाता है। दोनों विवाह के बंधन में बंध चुके हैं। भगवान शिव शंकर की भक्‍त आस्‍या ने अपने नाम के साथ शिवा जोड़ लिया है।   रूस की आस्या और अर्जेटीना के पाब्लो ग्रेस को भायी भारतीय संस्‍कृति तो यहीं के होकर रह गए  आस्या और पाब्लो ग्रेस बिल्‍कुल भारतीय अंदाज में मिलते हैं। उनके मुंह से नमस्ते सुनकर लोग अचरज मेें पड़ जाते हैं। कई बार मिलने वाले उन्‍हें हैलो कहते हैं और प्रत्‍युतर में वे उन्‍हें नमस्‍ते बोलते हैं तो लोग अचरज में पड़ जेाते हैं। आस्या बांसुरी और पाब्लो तबला वादन में कई वर्ष से देशभर में प्रस्तुति दे रहे हैं। यहां भी शनिवार को दोनों सेक्‍टर 35 स्थित प्राचीन कला केंद्र में प्रस्तुति देने पहुंचे थे। इस दौरान उन्‍होंने खास बातचीत में उन्होंने भारत से अपने प्यार को साझा किया।   जाखड़ बोले- वित्तीय घोटालों को छुपाने के लिए सरकार नहीं चलने दे रही है संसद यह भी पढ़ें यह भी पढ़ें: लता जी का गीत इस परिवार की अांखों में भर देता है पानी, जानें कुर्बानी की दास्‍तां  आस्‍या को पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की बांसुरी रूस से खींच लाई भारत में   रेलवे ट्रैक हाई स्पीड हुआ तो 78 मिनट में पहुंच जाएंगे चंडीगढ़ से दिल्ली यह भी पढ़ें आस्या बताती हैं कि उन्हें बांसुरी शुरू से ही पसंद थी। आस्‍या ने कहा, पहले मैं अंग्रेजी गीत ज्यादा सुनती थीं। एक दिन एक गीत में बांसुरी वादन सुना। यह बांसुरी वादन पंडित हरि प्रसाद चौरसिया का था। मैंने पहली बार ऐसी धुन सुनी। इस धुन ने ऐसा सम्‍मोहित किया कि मैं खुद को रोक नहीं पाई और भारत चली आई।

रूस की आस्या और अर्जेटीना के पाब्लो ग्रेस को भायी भारतीय संस्‍कृति तो यहीं के होकर रह गए

आस्या और पाब्लो ग्रेस बिल्‍कुल भारतीय अंदाज में मिलते हैं। उनके मुंह से नमस्ते सुनकर लोग अचरज मेें पड़ जाते हैं। कई बार मिलने वाले उन्‍हें हैलो कहते हैं और प्रत्‍युतर में वे उन्‍हें नमस्‍ते बोलते हैं तो लोग अचरज में पड़ जेाते हैं। आस्या बांसुरी और पाब्लो तबला वादन में कई वर्ष से देशभर में प्रस्तुति दे रहे हैं। यहां भी शनिवार को दोनों सेक्‍टर 35 स्थित प्राचीन कला केंद्र में प्रस्तुति देने पहुंचे थे। इस दौरान उन्‍होंने खास बातचीत में उन्होंने भारत से अपने प्यार को साझा किया।

आस्‍या को पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की बांसुरी रूस से खींच लाई भारत में

आस्या बताती हैं कि उन्हें बांसुरी शुरू से ही पसंद थी। आस्‍या ने कहा, पहले मैं अंग्रेजी गीत ज्यादा सुनती थीं। एक दिन एक गीत में बांसुरी वादन सुना। यह बांसुरी वादन पंडित हरि प्रसाद चौरसिया का था। मैंने पहली बार ऐसी धुन सुनी। इस धुन ने ऐसा सम्‍मोहित किया कि मैं खुद को रोक नहीं पाई और भारत चली आई।

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