वर्तमान में इनके पास एक हाथी, चार घोड़े, दो ऊंट, चार टर्की, छह तीतर, आठ एमू, आठ बतख, छह चाइनीज बतख, आठ हंस, 12 खरगोश और सात-आठ प्रजाति के 24 कबूतर हैं। बिहार के समस्तीपुर जिला निवासी महेंद्र प्रधान ने घर में ही यह चिडिय़ाघर बना रखा है। हाथी को पालने का अधिकार वन विभाग ने उन्हें दे रखा है। बेजुबानों से इस कदर स्नेह भाव के चलते राज्य सरकार महेंद्र को ‘पशु प्रेमी’ का तमगा दे चुकी है।
मित्र ने भेंट में दी हथिनी, नाम रखा माला
पुराने जमींदार रहे महेंद्र को साल 2010 में असम निवासी एक मित्र ने हथिनी भेंट की थी। वन विभाग से इसे पालने की अनुमति ले नाम रखा माला। 2011 में माला ने एक मादा बच्चे को जन्म दिया। इसका नाम रानी रखा गया।
मरने पर किया अंतिम संस्कार, बनाई प्रतिमा
बाद में माला बीमार पड़ गई, इलाज के लिए थाइलैंड के मशहूर हाथी विशेषज्ञ डॉक्टर थापा को बुलाया गया, मगर बचा नहीं पाए। प्रधान ने वैदिक रीति से अंतिम संस्कार कराया। आदमकद प्रतिमा भी बनवाई। वन विभाग के सीसीए ने पटना से आकर लोकार्पण किया।
बिन मां की बच्ची को गाय का दूध पिला पाला
बिना मां की रानी को इन्होंने प्रतिदिन 40 लीटर गाय का दूध पिलाकर पाला। रानी सात साल की हो चुकी है। बिना मां के चार माह के बच्चे के पालन-पोषण पर डिस्कवरी चैनल की टीम डॉक्युमेंट्री बना चुकी है। रानी का जन्म चूंकि इनके घर पर हुआ, इसलिए वन विभाग इसे रखने की इजाजत दे चुका है।