दरिया ने अपना दायरा लांघा तो दर्द दे गई। विनाशलीला करती जलधारा बंधों से फूटी तो खेत लील लिए। राह में आए कई मकान जलप्रवाह में खो गए। गांव के गांव टापू बन गए और हजारों लोग ‘कैद’ हो गए। सैलाब की ये ‘कैद’ अपने साथ कई दर्द लेकर आई। अपनी जिजीविषा के दम पर लोग दर्द के इस सैलाब से उबरने की जद्दोजहद में जुट गए, लेकिन जो बीमार थे वो सेहत के साथ प्रकृति की ये दोहरी मार झेल न सके। दरिया से मिले दर्द के बीच दो मरीजों को दवा तक मयस्सर न हो सकी। बाढ़ में फंसे ये मरीज इलाज के बिना दम तोड़ गए।
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घुनघुनकोठा बांध टूटने से जलमग्न हुए उतरासोत गांव में फंसे मरीजों को अगर इलाज मिल गया होता तो शायद रविवार को गांव में दो चिताएं न जलतीं। 65 वर्षीय रामानंद को सांस संबंधी परेशानी थी। इसकी दवा चल रही थी। रविवार सुबह छह बजे बंधा टूटने से पूरा इलाका जलमग्न हो गया। इसके कुछ देर बाद रामानंद की तबियत बिगड़ने लगी। परिवारवाले उन्हें शहर लाने के लिए बेचैन हो उठे। जवान बेटे बालकिशुन के सामने रामानंद तड़प रहे थे, लेकिन वह अथाह पानी के आगे असहाय था। उसके सामने 12 बजे पिता की मौत हुई तो उसकी आंखों में आंसुओं की बाढ़ आ गई। रामदास और मुन्नीलाल जब बाढ़ के बीच गृहस्थी बचाने में जुटे थे तभी मां बगड़हिया देवी की तबियत बिगड़ने लगी। दोनों सब कुछ छोड़कर मां की तीमारदारी में जुट गए। इलाज के लिए उन्हें शहर लाने का प्रयास शुरू किया। बालकिशुन की तरह इन दोनों ने भी इधर-उधर फोन करके नाव भेजने की गुहार की पर नाव नहीं आई और उनकी मां गुजर गईं।
चिता की चिंता में हो गई शाम
अपनों को इस तरह अपने सामने मरते देखने वाले इन परिवारों की त्रासदी यहीं नहीं थमीं। अपनों की अंत्येष्टि करना भी इन परिवारों के लिए बड़ी चुनौती थी। हर ओर पानी था, ऐसे में दाह संस्कार करने के लिए भी मदद की दरकार थी। काफी प्रयास के बाद शाम को एक नाव पहुंची तो पीड़ित परिवारवाले इन शवों का अंतिम संस्कार कर सके।
बुखार में तपता रहा बेटा, तड़पती रही पत्नी
उतरासोत के बाढ़ पीड़ित अपनी दयनीय दशा से डरे हुए हैं। बनारसी अपने छह वर्षीय बेटे अभिषेक को पूरे दिन बुखार से तपता देखते रहे, लेकिन कुछ कर नहीं सके। सुबह वह बेटे को इलाज के लिए गोरखपुर लाने की तैयारी में थे तभी पूरा गांव बाढ़ के पानी से घिर गया। ऐसी ही कहानी गेलही की भी है। पत्नी की हालत काफी खराब है, मगर इलाज कराएं तो कैसे?
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