सऊदी में सुषमा स्वराज ने दिया बड़ा बयान, कहा- हज कोटा बढ़ाने के लिए ‘हुकूमत’ को शुक्रिया
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चीफ जस्टिस एचएल दत्तू से अपनी शिकायत में शिकायतकर्ताओं का कहना है कि जम्मू और कश्मीर जैसे इलाकों में जहां स्थानीय नागरिकों के अधिकारों का ध्यान रखा जाता है वहीं पत्थरबाजों की वजह से सेना के जवानों को होने वाले जान के खतरे की तरफ आंखें मूंदी जाती हैं। याचिका में कहा गया है कि सेना को जम्मू और कश्मीर में इसलिए तैनात किया गया है क्योंकि राज्य मशीनरी कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने में असमर्थ है। मगर विडंबना यह है कि जिस प्रशासन को सेना की सहायता करनी चाहिए वह उनके मानवाधिकारों की रक्षा करने में असफल रहा है।
याचिकाकर्ताओं ने शोपियां मामले का हवाला देते हुए सवाल पूछा कि अपनी आत्म रक्षा में फायरिंग करने वाली सेना पर यदि एफआईआर दर्ज हो सकती है तो पत्थर फेंकने वालों पर क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि शोपियां अकेला ऐसा मामला नहीं हैं। इससे पहले भी पांच मामलों में सेना पर केस दर्ज किया गया है जब वो राज्य को आतंकियों और पत्थरबाजों से सुरक्षित करने के लिए कार्रवाई कर रहे थे। ना तो केंद्र और ना ही राज्य सरकार ने उन्हें (सेना) बचाने के लिए कुछ किया।