अगर नहीं सुधरा पाकिस्‍तान तो इतने टुकड़ोंं में बंट जाएगा की…..

राष्ट्रनीति, राजनीति, समाजशास्त्र तथा युद्धशास्त्र का एक अकाट्य सिद्धान्त है कि यदि आप गलत पेड़ों को तथा जड़ों को पानी देंगे तो अच्छे फल कैसे मिलेंगे? पाकिस्‍तान ने दुर्भाग्य से हमेशा गलत चीजों को ही सराहा है इसीलिए उसे परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं तथा भविष्य में भी भुगतने होंगे।  जन्म से ही पाकिस्तान ने भारत को शत्रु ही माना है। इसी कारण 1947  में कश्मीर पर आक्रमण किया। 1965 में भारत पर आक्रमण किया, 1977 में कारगिल में आक्रमण किया, 1987 से कश्मीर में आतंकवादी युद्ध को प्रोत्साहन दिया व अब उसे ‘जेहाद’ का नाम दिया है। गिलगिट-बाल्टिस्तान जो चीन की सीमा के निकट हैं तथा बलोचिस्तान जो पश्चिमी पाकिस्तान में ईरान तथा अफगानिस्तान की सीमा से लगा हुआ प्रांत है, गृहयुद्ध से ग्रसित है और इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि निकट भविष्य में पाकिस्तान अधिकृत दोनों क्षेत्र एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरेंगे।

अगर नहीं सुधरा पाकिस्‍तान तो इतने टुकड़ोंं में बंट जाएगा की.....

15 अगस्त 2016 को लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए पाकिस्तान स्थित बलोचिस्तान प्रांत तथा पाकिस्तान अधिकृत गिलगिट तथा बाल्टिस्तान क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर हो रहे अत्याचार तथा मानव अधिकार के उल्लंघनों की ओर भारतीय जनमानस तथा पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया। वहां के लोगों की अपेक्षा, अभिलाषा की भी चर्चा की। दोनों क्षेत्रों के निवासी अनेक वर्षों से पाकिस्तान के चंगुल से स्वतंत्रता प्राप्ति का प्रयास कर रहे हैं। पूरे विश्व में मानव अधिकारों की दलील देने वाले, मानव अधिकारों की रक्षा का ढिंढ़ोरा पीटने वाले पाश्चात्य जगत के प्रायः सभी राष्ट्रों ने, मानवाधिकार के नाम पर अरबों रुपये कमाने वाली संस्थाओं ने कोई भी ध्यान नहीं दिया। पूर्ण विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जिसके प्रधानमंत्री ने पूरे विश्व का ध्यान बलोचिस्तान तथा बाल्टिस्तान में लोगों पर होने वाले राजकीय अत्याचारों की ओर आकर्षित किया है। अब आशा है कि भारतीय जनमानस तथा भारतीय शासन पाकिस्तान के इन क्षेत्रों में रहने वाले कुशासित, दुःशासित लोगों को सुशासन व स्वतंत्रता दिलाने में विश्व शक्तियों को आमंत्रित करेगा, प्रेरित करेगा।

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ऐतिहासिक अध्ययन तथा विश्लेषण यदि किया जाए तो पता चलता है कि, पाकिस्तान के जन्म के समय बलोचिस्तान स्वतंत्र राज्य था। मार्च 1945 में पाकिस्तान ने सैन्य शक्ति के माध्यम से बलोचिस्तान को जबरदस्ती पाकिस्तान के आधीन कर लिया। तत्कालीन शासक अहमदयार खान को शासन से निकाल फेंका। पिछले ७० वर्षों में बलोचिस्तान के निवासियों ने कई बार स्वतंत्रता प्राप्ति का अभियान छेड़ा। 1945, 1958-59, 1962-63 एवं 1973-1977 के समय में पाकिस्तान के शासन तथा पाकिस्तान की सेना ने बलोचिस्तान के लोगों द्वारा किए गए मुक्ति आंदोलन को सैन्य शक्ति के आधार पर कुचल दिया। हजारों लोगों की जाने गई हैं। इस आंदोलन में बलोचिस्तान के आंदोलन को चलाने वाले अनेक नेता पाश्चात्य देशों में राजनैतिक शरण लिए हुए हैं। २००६ में बलोचिस्तान के सम्मानित नेता अकबर बुगती की हत्या कर दी गई। इस हत्या के कारण पुनः बलोचिस्तान के निवासियों ने आंदोलन चलाया जिसे पुनः सैन्य शक्ति के आधार पर दबाया गया। इस समय पाकिस्तान के शासन व सेना ने युद्ध हवाई जहाज, वायु आक्रमण करने वाले हेलिकॉप्टर, टेंक तथा अन्य बड़े युद्ध हथियारों का प्रयोग किया। फिर भी आंदोलन किसी न किसी रूप में आज भी चल रहा है।

भौगोलिक रूप से बलोचिस्तान पाकिस्तान का पश्चिमी प्रांत है। बलोचिस्तान की सीमा ईरान तथा अफगानिस्तान के लोगों में ऐतिहासिक सम्बन्ध हैं। संस्कृति, भाषा की समानता है। बलोचिस्तान के मूल निवासी बलोची, शिया, हजारा समाज के हैं। बलोचिस्तान के लोग पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में निवासी पंजाबी मुसलमानों को, जो ज्यादातर सुन्नी हैं, अपना मित्र व हितैषी नहीं मानते हैं। पाकिस्तान की सेना में बलोची समाज के सैनिकों की संख्या बहुत कम है। बलोची युवक अच्छे सैनिक बनते हैं परन्तु पाकिस्तान की सेना में उन्हें संदेहात्मक दृष्टि से देखा जाता है। 1965  के युद्ध में मुझे बलोची सैनिकों से मुकाबला करने का अवसर मिला। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण तथा कड़ी मेहनत से जीवन निर्वाह करने वाले बलोची युवक अच्छे सैनिक बनते हैं। इसके विपरीत पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से आने वाले सैनिक तथा अधिकारी ऐशो-आराम की जिंदगी बसर करते हैं। महत्वपूर्ण बड़े पदों पर कार्य करने वाले अधिकारी पंजाब के मुस्लिम समाज के ही होते हैं।

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बलोचिस्तान के पश्चिम में व दक्षिण पश्चिम में अरब सागर है। यहीं पर चीन एक बहुत बड़ा बंदरगाह ग्वादार नामक स्थान पर बना रहा है। ग्वादार शहर से रेल्वे लाइन, थल महामार्ग, गैस व पेट्रोल की पाइप लाइन बलोचिस्तान से पाकिस्तान पंजाब से पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र से जाकर गिलगिट बाल्टिस्तान क्षेत्र में जाएगी और वहां से चीन के बड़े शहरों तक जाएगी। चीन ने पाकिस्तान शासन से दीर्घकालीन अनुबंध किया है। पाकिस्तान शासन को बहुत बड़ी राशि दी गई है तथा भविष्य में पाकिस्तान को प्रति वर्ष आर्थिक सहायता मिलेगी। परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि योजना का फायदा बलोचिस्तान के स्थानीय व मूल निवासियों को नहीं हो रहा है और न होगा। इसका ज्यादा फायदा पंजाब के मुस्लिम व्यवसायी, उद्योगपति, व्यापारी, सैन्य व शासकीय अधिकारी पा रहे हैं। यही कारण है कि पंजाब प्रांत के प्रति बलोची समाज में क्रोध है। बलोचिस्तान के स्थानीय लोगों की जमीनों पर कम से कम कीमत पर जबरदस्ती कब्जा किया जा रहा है। स्थानीय लोगों को केवल स्थानीय मजदूर की दृष्टि से ही देखा जा रहा है।

बलोचिस्तान में पहाड़ी क्षेत्र ज्यादा है। कोयला, प्राकृतिक गैस तथा अन्य खनिज पदार्थों का पर्याप्त भंडार है। इन प्राकृतिक साधनों का दोहन पंजाबी मुस्लिम समाज के व्यापारी, उद्योगपति व व्यवसायी करते हैं। समुद्री व्यापार भी पंजाबी मुस्लिम उद्योगपतियों के हाथ में है। इन तमाम कारणों से स्थानीय बलोची समुदाय में असंतोष तथा क्रोध है तथा इसीलिए अपने विकास के लिए पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं। बलोची समुदाय को पिछले ७० वर्षों के अनुभव के आधार पर यह वास्तविकता मालूम है कि आने वाले अगले ७० वर्षों तक भी पाकिस्तान के शासन तथा पाकिस्तान की सेना के गुलाम बन कर ही बलोचियों को रहना पड़ेगा। स्वतंत्रता के सिवाय दूसरा विकल्प ही नहीं है।

बलोचिस्तान के दक्षिण में सिंध प्रांत हैं। यहां के मूल निवासी सिंधी समाज के हैं। भारत से जो लोग पाकिस्तान चले गये, तथा वहां के नागरिक बन गये उन्हें मुहाजिर कहा जाता है। ये ज्यादातर भारतीय मूल के लोग ही हैं। भारत में जन्मे मुहम्मद अली जिन्ना, जुल्फिकार अली भुट्टो, उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो, जो प्रधान मंत्री रही थीं, बेनजीर के पति जरदारी जो राष्ट्रपति बने, ये पाकिस्तान के मूल निवासी नहीं माने जाते हैं। इन्हें मुहाजिर कहा जाता है।

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कराची, जो मुंबई की तरह पाकिस्तान की आर्थिक व औद्योगिक राजधानी है, एक बड़ा बंदरगाह है। मुंबई में २००८ में २६/११ को आतंकवादी हमला करने के लिए आए हुए आतंकवादियों ने समुद्री प्रशिक्षण कराची में ही प्राप्त किया था। उनकी मुंबई तक की समुद्री यात्रा कराची से ही शुरू हुई थी। बलोचियों की तरह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का मुस्लिम समुदाय पाकिस्तान का मूल निवासी नहीं मानता, उन्हें मुहाजिर अर्थात बाहर से आए हुए विस्थापित व शरणार्थी माना जाता है। पाकिस्तानी शासन तथा सेना ने सिंध प्रांत के निवासियों पर असहनीय अत्याचार किए हैं तथा अब भी जारी है। पिछले ७० वर्षों के इतिहास में अनेक बार सिंध प्रांत तथा कराची की शासन, न्याय तथा व्यवस्था सेना के हाथों में रही है। पाकिस्तानी सेना में बलोचिस्तान की तरह सिंध प्रांत के सैनिकों की संख्या बहुत कम है। हालांकि कराची पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी है परन्तु आर्थिक, शासकीय, औद्योगिक, व्यावसायिक व्यवस्था पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुस्लिम समुदाय के हाथों में है।

इन तमाम कारणों से बलोचिस्तान प्रांत की तरह सिंध प्रांत में व सिंधी समाज में पाकिस्तान में पंजाबी मुस्लिम समाज तथा पंजाबी मुस्लिम शासकों प्रति संतोष तथा सम्मान नहीं है। सिंध प्रांत में भी विद्रोहात्मक विचारधारा है। सिंध को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की मांग बार-बार उठती है। ‘‘जिये सिंध’’ नामक संगठन कार्यरत है। इस संगठन के अनेक सदस्य पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं। ‘‘मुहाजिर कौमी एकता’’ मुहिम के अनेक पदाधिकारी पाश्चात्य देशों में राजनैतिक शरण लिए हैं। वहीं से अपना स्वतंत्रता आन्दोलन चलाते हैं।

यही कारण है कि पाकिस्तानी शासन ने, जिसमें सेना का वर्चस्व है, कराची का महत्व कम करने के लिए, बलोचिस्तान में ईरान की सीमा के समीप स्थित ग्वादार बंदरगाह का निर्माण चीन के हाथों में सौंप दिया है। सिंध प्रांत के लोगों को आर्थिक रूप से दंडित करने का एक सरल मार्ग अपनाया है।

2009 में अफगानिस्तान में सैन्य आक्रमण के समय से आजतक अमेरिका तथा नाटो संगठनों के सैनिकों के लिए युद्ध सामग्री, उपकरण, यंत्र, सयंत्र सभी कराची बंदरगाह के माध्यम से ही अफगानिस्तान तक जाते रहे हैं।

अमेरिका के लिए अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए कम दूरी का एकमात्र थल मार्ग पाकिस्तान से ही जाता है। यह यातायात सिंध तथा बलोचिस्तान के लोगों से ही होता है। इसके लिए स्वयं को अमेरिका तथा नाटो संगठन का मित्र कहलाने वाले पाकिस्तान ने २००१ से आज तक अरबों डॉलर की राशि यातायात शुल्क के रूप में वसूल की है। परन्तु इस आय का ज्यादा फायदा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में निवेश किया जाता है। यह भी असंतोष का एक प्रमुख कारण है। पाकिस्तान के शासकों को शंका तथा चिंता हमेशा सताती है कि यदि सिंध तथा बलोचिस्तान में अशांतता व विद्रोहात्मक स्थिति प्रबल होती है तो पूरे पाकिस्तान का समुद्री किनारा पाकिस्तान के हाथों से निकल जाएगा। यदि पाकिस्तान समुद्री किनारे से वंचित हो गया तो पाकिस्तान की कीमत ना तो अमेरिका को होगी और ना चीन को। यदि पाकिस्तान को अमेरिका तथा चीन का आशीर्वाद तथा आर्थिक, औद्योगिक, सामरिक संरक्षण नही रहा तो पाकिस्तान का विघटन हो जाएगा। पाकिस्तान का राजनैतिक अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। समुद्र विहीन पाकिस्तान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

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यदि विश्व में आतंकवाद समाप्त करना है तो पाकिस्तान को समुद्री किनारों से वंचित कर दिया जाए। पाकिस्तान के समुद्री किनारे सिंध तथा बलोचिस्तान प्रांतों में है। पाश्चात्य देश जब एक बार कोई विचारधारा बना लेते हैं तो उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। सोवियत संघ का विघटन, इराक, लीबिया, मिश्र, सीरिया की तबाही, ईरान की आर्थिक तबाही, अनेक राष्ट्रों में सत्ता परिवर्तन, सैन्य विद्रोह ये आज दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण हैं। पाकिस्तान में शासन किस पक्ष का होगा, कौन प्रधान मंत्री होगा, कौन राष्ट्रपति होगा, कौन सैनिक तानाशाह होगा यह पाकिस्तान की जनता निर्धारित नहीं करती। इसका निर्णय पाश्चात्य जगत में होता है। ओसामा बिन लादेन को शासकीय शरण, सैन्य संरक्षण देकर पाकिस्तान की राष्ट्रीय राजधानी तथा सैन्य मुख्यालय के पास अनेक वर्षों तक सुरिक्षत व संरक्षित रखा। इतना ही नहीं उसी ओसामा बिन लादेन को खोजने के लिए अमेरिका तथा पाश्चात्य देशों से अरबों डॉलर की सहायता प्राप्त की। अंततः अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में खोज कर मार डाला। इस दुर्भाग्य पूर्ण अनुभव के बाद ही अमेरिका की विचारधारा पाकिस्तान के प्रति बदली है। आज की वास्तविकता क्या है? पाकिस्तान में जन्मे, पाकिस्तान में पले, बड़े हुए आस्तीन के सांप पाकिस्तान के बेगुनाह लोगों को शिया तथा ईसाई समुदाय के लोगों को, सैनिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को, महिलाओं को बेरहमी से मार रहे हैं, तबाह कर रहे हैं। पुलिस कर्मचारियों को मार रहे हैं।

अमेरिका तथा पाश्चात्य देशों की नाराजगी तथा अविश्वास के कारण अब पाकिस्तान का झुकाव व आकर्षण चीन की तरफ बढ़ रहा है। चीन अपने क्षणभंगुर सूक्ष्म स्वार्थ सिद्धि के लिए भारत के विरूद्ध, पाकिस्तान का दुरुपयोग कर रहा है। संभवतः चीन को क्षणिक सुख प्राप्त होगा, परन्तु दीर्घ काल में, भविष्य में चीन को भी अमेरिका की तरह कटु अनुभव होगा। जो पाकिस्तान, पिछले ६० वर्षों के संरक्षक अमेरिका तथा पाश्चात्य देशों का न हुआ वह अचानक मित्र बने चीन का क्या होगा? पाकिस्तान में पलने वाले आस्तीन के सांप, छेप डींरींश अलींेीी अमेरिका की अपेक्षा चीन के ज्यादा पास हैं। चीन की चारदिवारी से लगे हुए हैं। इन आतंकवादियों का प्रभाव धीरे- धीरे पाकिस्तान से लगे सिकियांग प्रांत में पूर्व नियोजित तरीके से बढ़ रहा है। कारगिल युद्ध के समय तत्कालीन सेना अध्यक्ष मुशर्रफ चीन में ही थे। युद्ध सहायता लेने तथा चीन का समर्थन लेने गए थे। कारगिल युद्ध के समय पूरे अरूणाचल प्रदेश की सीमा क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था का मैं प्रमुख था। मुझे पूरी तरह जानकारी है कि कारगिल युद्ध के समय चीन ने किस प्रकार से सैन्य सहायता की। आभारी हैं हम हमारे सैनिकों के जिन्होंने १७००० फुट की ऊंचाई पर चीन की चाल को सफल नहीं होने दिया। उन्हें उचित मुंहतोड़ जवाब हमारे सैनिकों ने व सैन्य अधिकारियों ने दिया।

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पिछले ४-५ वर्षों से चीन के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री तथा सेना अध्यक्ष चीन पाकिस्तान की मित्रता को कैलाश पर्वत, माउंट एवरेस्ट से ऊंची, अरब सागर से गहरी तथा शहद या शक्कर से मीठी बताते हैं। चीन को यह वास्तविकता तथा आयुर्वेद की जानकारी होना चाहिये कि यदि किसी मरीज या राष्ट्र को मधुमेह की बीमारी है तो ना तो वह हिमालय पर जीवित रहेगा, न ही समुद्र की गहराई तक जा पाएगा तथा शहद या शक्कर का तो उपयोग ही नहीं कर पाएगा। पाकिस्तान का भी यही हाल होगा।

गिलगिट तथा बाल्टिस्तान का क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर तथा चीन के बीच स्थित है। यहां के मूल निवासी शिया सम्प्रदाय के हैं। ये अपने आपको आर्य सभ्यता के समीप बताते हैं। अत्यंत मेहनती, कष्ट सहन करने वाले, ईमानदार, सहनशील तथा उत्तम सैनिक होते हैं। श्री मोदी जी ने लाल किले से गिलगिट, बाल्टिस्तान का भी उल्लेख किया था। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से कश्मीर राज्य का हिस्सा था। १९४७ के बाद एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी मेजर विलियम ब्राऊन ने, जो इस क्षेत्र का सैन्य अधिकारी था, अंग्रेजों की सोची-समझी चाल के तहत, इस क्षेत्र को पाकिस्तान को सौंप दिया। अभी भी २०१६ तक यह क्षेत्र पाकिस्तान का अधिकृत हिस्सा नहीं है। सैन्य शक्ति के आधार पर पाकिस्तान इस क्षेत्र पर अनधिकृत कब्जा किए बैठा है। वास्तव में यह क्षेत्र भारत का है। यहां १९८० से अलगाववाद तथा स्वतंत्रता प्राप्ति का अभियान चल रहा है। पाकिस्तान यहां सैन्य शासन चला रहा है। सामरिक दृष्टि से भारत तथा चीन दोनों के लिए यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। भारत का दुर्भाग्य है कि, पिछले ६० वर्षों तक भारतीय शासकों ने, सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र का महत्व नहीं समझा और यही कारण है कि इस क्षेत्र के प्रति हम उदासीन थे, अनभिज्ञ थे। वर्तमान केन्द्र शासन को यह महत्व समझ में आया है। गिलगिट, सकार्दू महत्वपूर्ण शहर हैं। यहां से अफगानिस्तान की सीमा केवल १०६ किलोमीटर दूर है, याने मुंबई से लोनावला या पुणे से लोनावला!!

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इस क्षेत्र के मार्फत भारत का सम्बन्ध – व्यापार मध्य एशिया से हो सकता है। चीन के लिए यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन तथा पाकिस्तान ग्वादार तक का काराकोरम महामार्ग इसी क्षेत्र से जाता है। जब मैं भारत-चीन सीमा विवाद सम्बन्धी ‘‘संयुक्त कार्यदल’’ में भारतीय दल का सदस्य था तथा चीन-भारत शांति समझौता १९९३ में होने के बाद विशेषज्ञ समूह का भी सदस्य था, चीन के प्रतिनिधि मंडल के समक्ष इस क्षेत्र के बारे में भारत का दावा रखने का सुझाव दिया था, परन्तु रक्षा मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय मेरे सुझाव पर ध्यान तो दिया ही नहीं, उल्टा मेरा मजाक उड़ाया व मुझ में दूरगामी समझ की कमी होने का आरोप भी लगाया। हालांकि तत्कालीन भारतीय सेना अध्यक्ष ने मेरे सुझाव का समर्थन भी किया था। ये दस्तावेज संभवतः कहीं ना कहीं दबे पड़े होंगे। यदि उस समय १९९३-१९९४-१९९५ में भारतीय पक्ष अपनी मांग रखता तो संभवतः आज स्थिति कुछ और ही होती तथा चीन अपना पैसा इस विवादित क्षेत्र में नहीं लगाता।!! इन्हीं वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रधान मंत्री जी ने सरल व स्पष्ट शब्दों में भारतीय मुद्दा विश्व के सामने रखा है। इसका हमें स्वागत करना चाहिए। अर्थात चीन इस बात से सहमत नहीं होगा। परन्तु वह चीन का दृष्टिकोण है। हमें भारतीय दृष्टिकोण तथा भारतीय दूरगामी हितों का ध्यान रखना आवश्यक है।

जैसा मैंने पहले लिखा है, आने वाले समय में पाकिस्तान का विघटन होने की सम्भावना से इनकार नही किया जा सकता है। पाश्चात्य देश अपने उद्देश्यों की प्राप्ति येन-केन-प्रकारेण कर लेते हैं। २००१ से विश्व में होने वाला घटनाक्रम तथा सोवियत संघ का विघटन इस बात का साक्षी है। पाकिस्तान चार भागों में विघटित हो सकता है – स्वतंत्र सिंध, बलोचिस्तान, खैबर प्रदेश तथा पाकिस्तान का पंजाब। पाक अधिकृत काश्मीर का विलय, भारत में अवश्य होगा। गिलगिट-बाल्टिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बनेगा। परन्तु भारतीय दूरगामी हितों की दृष्टि से पाकिस्तान का छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजन भारत के हित में होगा यह संदेहास्पद है। यदि भारत एक पाकिस्तान को नहीं सम्हाल सकता, नहीं सुधार सकता, तो चार को कैसे सम्हालेगा? मैं पूरे विश्वास, अभ्यास तथा अनुभव के आधार पर स्पष्ट, दावे के साथ कह सकता हूं कि आज तक अधिकृत रूप से किसी भी भारतीय शासन ने चाहे वह किसी भी दल का हो पाकिस्तान का विघटन नहीं चाहा और न चाहेगा। १९७१ में पाकिस्तान के विघटन की आधारशिला, ब्रिटिश शासन ने १९४७ में ही रखी थी। भारत में इस वास्तविकता के दस्तावेज मौजूद हैं। पश्चिमी पाकिस्तान के शासकों ने ही पाकिस्तान का विघटन किया व बांग्लादेश बनाया। पाकिस्तान का विघटन भारत के लिए मजबूरी बन गई थी। इसके लिए पाकिस्तान शासन ही जिम्मेदार था व रहेगा। मैंने १९७१ के युद्ध में भाग लिया है। उसके पश्चात सेना मुख्यालय दिल्ली में मिल्ट्री ऑपरेशन विभाग में उपमहानिदेशक तथा अतिरिक्त महानिदेशक के पदों पर कार्य किया है। महानिदेशक का भी तत्कालिक कार्य सम्हाला है। सत्य तथा वास्तविकता की मुझे पूरी जानकारी है। भारत हमेशा पाकिस्तान का हित चाहता है व चाहता रहेगा। पाकिस्तानी नागरिक हमारे ही भाई-बहन हैं।

भविष्य में एक दिन मजबूरन पाकिस्तान को अमेरिका तथा चीन की गिद्ध दृष्टि तथा क्रोध से बचाव के लिए भारत के पास ही आना पड़ेगा। दूसरा कोई पाकिस्तान की सहायता, संरक्षण नहीं कर पाएगा।

 
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