इंसान की ज़िन्दगी में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। ऐसा ही एक वक्त आया बॉलीवुड की इस मशहूर एक्ट्रेस की जिंदगी में, जिसे याद करके वे रो पड़ती हैं। आज इनका बर्थडे हैं, आईए जानते हैं, इन्ही से इनके जीवन का संघर्ष…ऐश्वर्या राय इस ड्रेस को देख फैंस हंस पड़े, और शाहरुख की भी छूटी हंसी
बात हो रही है अभिनेत्री दिव्या दत्ता की। वे अब लेखिका भी बन गई हैं। अपनी किताब ‘मी एंड मां’ की प्रमोशन के सिलसिले में वे चंडीगढ़ आईं थीं। यहां पत्रकारों के साथ चिट चैट करते हुए उन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा राज साझा किया। दिव्या दत्ता ने बताया कि पिछले साल एक सर्जरी के बाद पैदा हुई स्वाथ्य संबंधी परेशानियों के चलते उनकी मां का निधन हो गया था। मां के चले जाने के बाद दिव्या डिप्रेशन में चली गईं थीं।
दिव्या कहती हैं कि मां के बिना मेरी जिंदगी कुछ नहीं, जब से होश संभाला मां हरदम साथ रहीं। मां के जाने के बाद उनको अपने अंदर से निकाल नहीं पाई हूं, न ही निकालना चाहती हूं। यही कारण रहा कि उनके जाने के बाद मैं डिप्रेशन में भी चली गई थी। इससे बाहर निकलने के लिए मैंने इलाज करवाया। मुझे हिप्नॉथैरेपी भी करवानी पड़ी। इस बीच किताब लिखने का आइडिया आया। इससे मेरे लिए एक बड़ी थेरेपी का काम किया।
दिव्या ने बताया कि मेरी मां अपनी जिंदगी का हर पल खूब सेलिब्रेट करतीं थी। यह ध्यान में रखते हुए उन्होंने मां के साथ जुड़ी अपनी यादों को एक किताब के रूप में संजोने का काम शुरू किया। यह किताब पूरी करने वे कामयाब भी रहीं। नाम रखा मी एंड मां और अब यह किताब दुनिया के सामने है। इस किताब में एक बेटी का नजरिया है अपनी मां को देखने का। इस किताब की भूमिका बॉलीवुड अभिनेत्री शबाना आजमी ने लिखी है।
दिव्या कहती हैं कि मुझे इसे लिखने में दो माह का समय लगा। बचपन से लेकर जब तक मेरी मां मेरे साथ रही। उनकी सारी यादों और बातों को इस किताब के जरिए लोगों तक पहुंचाने की यह मेरी पहल हैं। वैसे भी लेखन और अभिनय ऐसे दो काम हैं जिसके जरिए मुझे लगता है कि खुद को काफी अच्छे से व्यक्त किया जा सकता हैं। अब लिखने की आदत बन गई है तो इस अच्छी आदत को आगे जारी रखूंगी और आगे भी किताब लिखूंगी।
दिव्या बताती हैं कि इस किताब में मैंने वह लम्हा भी लिखा है जब मेरी मां ने मुझे पहला और आखिरी थप्पड़ मारा।’ दिव्या के अनुसार वो हर बार अच्छे नंबराें से पास होती थी, लेकिन एक बार गणित के पेपर में अच्छे नंबर नहीं ला पाने पर मां ने थप्पड़ जड़ दिया था। यह दिव्या के लिए अभी तक की जिदंगी का पहला और आखिरी थप्पड़ था जो आज भी उन्हें अपनी मां का अहसास दिलाता है।
दिव्या बताती हैं कि मां उन्हें जरा सा भी खाना बर्बाद करने नहीं देती थी। उन्होंने विभाजन का समय देखा था। जब वो पांच साल की थी और स्टेशन में चार दिन से दादा-दादी के साथ भूखी ट्रेन का इंतजार कर रही थी। उन्होंने देखा कि स्टेशन में एक मट्ठी गिरी हुई है। उन्होंने उसे उठा के खाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही वह उठी, ट्रेन चल चुकी थी। दादा ने उन्हें पकड़कर फटाफट ट्रेन में बिठाया और वो मट्ठी का टुकड़ा वहीं रह गया। इस वाकिये को मां कभी नहीं भूल पाई थी।