अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ आ जाने के बाद शिवपाल यादव के सियासी भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जाने लगी हैं।अब भी अखिलेश व शिवपाल के बीच दूरियां बनी हुई हैं। दोनों के बीच एक साल से ज्यादा वक्त से तल्खी चली आ रही है। दोनों के समर्थक भी आमने-सामने आ चुके हैं।
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गत एक जनवरी को शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद अखिलेश से उनके रिश्ते बहुत सहज नहीं हैं। बेटे को आशीर्वाद देने वाले मुलायम 12 अक्तूबर को डॉ. लोहिया की पुण्यतिथि पर अखिलेश के साथ लोहिया पार्क में थे।वह एक साल बाद किसी कार्यक्रम में अखिलेश के साथ नजर आए, लेकिन इस आयोजन से शिवपाल नदारद थे। दरअसल, शिवपाल लंबे समय से मुलायम का सम्मान वापस दिलाने की लड़ाई लड़ रहे थे।
मुलायम और अखिलेश के साथ आ जाने के बाद उनका यह मुद्दा खत्म हो गया है। मुलायम परिवार में एकता के पक्षधर हैं। वह सपा में शिवपाल का सम्मानजनक समायोजन चाहते हैं।चूंकि परिवार में विवाद के खात्मे की पहल मुलायम ने की है, इसलिए शिवपाल का रुख सकारात्मक है। पुराने अनुभवों को देखते हुए वह उतावलापन नहीं दिखा रहे।
सपा के राष्ट्रीय सम्मेलन से एक दिन पहले उन्होंने अखिलेश को टेलीफोन पर आशीर्वाद दिया। अध्यक्ष चुने जाने के बाद भी सबसे पहले ट्वीट करके बधाई दी।हालांकि सपा के कुछ नेताओं का मानना है कि शिवपाल के सामने अब सीमित विकल्प हैं। मुलायम के रुख के बाद अखिलेश के प्रति नरमी उनकी मजबूरी भी है।
आगरा सम्मेलन में दूसरी बार सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए अखिलेश जल्द ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन करेंगे। इसमें रामगोपाल यादव को प्रमुख महासचिव बनाए जाने की संभावना है। मुलायम की चली तो शिवपाल भी राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाएंगे।
यदि शिवपाल पार्टी की मुख्य धारा में लौटे तो परिवार के विवाद पर विराम लग जाएगा। उन्हें राष्ट्रीय टीम में सम्मानजनक जगह नहीं मिली तो उनकी सियासी राह अलग हो सकती है। फिलहाल सपा के नेता परिवार में एकता की उम्मीद लगाए हुए हैं।