अभी-अभी: योगी के सीएम बनते ही हुए ये 11 बड़े फैसले, यूपी में मचा हाहाकार

मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ के नाम का ऐलान होने के बाद से अब तक यूपी की सत्ता में ये 11 बदलाव आ चुके हैं। एक नजर इन पर।

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– 2012 में अखिलेश के कार्यकाल में यूपी में कोई उपमुख्यमंत्री नहीं थे, जबकि योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में यूपी में दो उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मोर्य बनाए गए हैं।

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2-  पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश के साथ 19 मंत्रियों ने भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली थी। इसके अलावा 29 राज्यमंत्री बनाए गए थे, जबकि योगी आदित्यनाथ के साथ मंत्रिपरिषद में 22 कैबिनेट मंत्री, 9 राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभर, 13 राज्यमंत्री शामिल क‌िए गए हैं।

3- अखिलेश के पहले मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों में से कोई महिलामंत्री नहीं थीं, जबकि योगी मंत्रिमंडल में रीता बहुगुणा को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। वहीं, अनुपमा जायसवाल और स्वाति सिंह को राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया है। गुलाबो देवी और अर्चाना पांडेय को राज्यमंत्री बनाया गया है।

4- अखिलेश के पहले मंत्रिमंडल में शामिल सभी मंत्री चुनाव जीतकर ही सदन में पहुंचे थे, जबकि अखिलेश पहले से एमएलसी थे। वहीं, योगी मंत्रिमंडल में खुद सीएम समेत पांच मंत्री किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। इनमें मुख्यमंत्री महंत आदित्यनाथ योगी, दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य व दिनेश शर्मा तथा मंत्री स्वतंत्र देव सिंह व मोहसिन रजा किसी सदन के सदस्य नहीं है। इन्हें 6 माह में विधानमंडल का सदस्य बनना होगा।

5- पिछली अखिलेश यादव सरकार में राजधानी से तीन मंत्री बनाए गए थे। इनमें दो कैबिनेट और एक राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार थे। हालांकि इन सभी को पहले राज्यमंत्री ही बनाया गया था बाद में तरक्की देकर कैबिनेट किया गया। संभवत: यह पहला मौका है, जब योगी की कैबिनेट में राजधानी से सात मंत्रियों को शामिल किया गया है। 

6- मंत्रिपरिषद में 31 जिलों को ही प्रतिनिध‌ित्व मिला है। 44 जिलों को प्रतिनिधित्व नहीं‌ मिल पाया है। गोरखपुर की नुमाइंदगी अकेले सीएम आदित्यनाथ कर रहे हैं। उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य समेत इलाहाबाद से तीन को प्रतिनिधित्व मिला है। कानपुर, बरेली, मथुरा, बहराइच, वाराणसी, इलाहाबाद, मुरादाबाद और फतेहपुर से दो-दो मंत्री बनाए गए हैं। वहीं, शाहजहांपुर, जौनपुर, कन्नौज, अलीगढ़, अमेठी, आगरा, मऊ, कुशीनगर, गोंडा, गाजीपुर, प्रतापगढ़, ललितपुर, रामपुर से एक-एक मंत्री बनाया गया है।

7- कहीं अगर कुछ असंतुलन दिख रहा है तो उसके लिए मंत्रिपरिषद में 13 स्थान खाली रखकर यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि प्रतिनिधित्व से बची रह गई जातियों व इलाकों के लोगों को बैठाकर आने वाले दिनों में इसे दुरुस्त करने की कोशिश करेंगे। माना जा रहा है कि इन स्थानों पर कुछ विधायकों को लेकर उनका भी प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाएगा। 

8- क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए मंत्रिपरिषद में पूर्वी यूपी से 15 तो मध्य यूपी से 16 और पश्चिम से 14 चेहरों को भागीदारी दी गई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश से जिन 15 चेहरों को लिया गया है उनमें मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, केशव प्रसाद मौर्य को छोड़कर बाकी सभी विधायक हैं। योगी और मौर्य इस समय सांसद हैं। पश्चिम से शामिल किए गए 14 लोगों में एक एमएलसी भूपेंद्र चौधरी को छोड़कर बाकी 13 विधायक हैं। मध्य यूपी से जिन 16 चेहरों को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है, उनमें उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा अभी किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। महेंद्र सिंह एमएलसी हैं। इन दो को छोड़कर बाकी 14 चेहरे विधायक हैं।

9- बुंदेलखंड से शामिल किए गए दो मंत्रियों में एक ललितपुर की महरौनी सीट से मनोहर लाल उर्फ मन्नू कोरी ही विधायक हैं। दूसरे चेहरे स्वतंत्रदेव सिंह पार्टी के प्रदेश महामंत्री हैं और विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। पिछली सरकार में एक अदद मंत्री पद के लिए तरस रहे बुंदेलखंड को दो मंत्री देकर संतुष्ट करने की कोशिश की गई है। साथ ही पूरब से पश्चिम तक क्षेत्रीय गणित साधने का भी प्रयास किया गया है।

10- चौदह साल के वनवास के बाद सूबे की सत्ता में लौटी भाजपा ने मंत्रिपरिषद के जरिए लोकसभा चुनाव 2019 के गणित को भी दुरुस्त करने की कोशिश की है। यूपी की सत्ता में वापसी कराने वाली अगड़ी, पिछड़ी और दलित वर्ग की भाजपा समर्थक जातियों को यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि पार्टी को उनका योगदान याद है। वहीं संकेत दिए गए हैं कि भगवा टोली के रणनीतिकारों ने अगड़ों के अपने आधार वोट के साथ अति पिछड़ों व अति दलितों के सहारे लोकसभा के अगले चुनाव के समीकरण भी साधने की तैयारी कर ली है। 

11- अल्पसंख्यक समुदाय के दो लोगों को शामिल किया गया है। इनमें बलदेव सिंह औलख सिख तो मोहसिन रजा मुस्लिम हैं। औलख विधायक हैं लेकिन रजा किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। उन्हें मंत्रिपरिषद में शामिल कर इन आरोपों का जवाब देने की कोशिश की गई है कि आदित्यनाथ मुस्लिम विरोधी हैं। साथ ही चुनाव प्रचार के दौरान लगने वाले उन आरोपों को भी धोने की कोशिश की गई है कि भाजपा का 403 सीटों में एक  पर भी किसी मुस्लिम को टिकट न देने का मतलब यह नहीं है कि वह मुसलमानों के साथ दोहरा व्यवहार करती है। 

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