सरकार ने दवाइयों की कीमतों में कमी लाने के लिए तैयारी पूरी कर ली है. नेशनल फार्मासूटिकल पॉलिसी ड्राफ्ट के मुताबिक दवाओं को सस्ता करने के लिए सरकार ट्रेड मार्जिन की सीमा तय कर सकती है. साथ ही, जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए बैंड्स के बदले सॉल्ट नाम लिखने की व्यवस्था होगी. दवा कंपनियों और डॉक्टरों की मिलीभगत रोकने के लए मार्केटिंग प्रैक्टिस के नियम बदले जाएंगे. सरकार ने इसके लिए ड्रॉफ्ट पॉलिसी तैयार कर ली है, जिसे पब्लिक ओपिनियन के लिए रखा गया है.सरकार का कहना है कि फार्मा को लेकर नए नियम लाने का उद्देश्य है कि देश भर में अच्छी क्वालिटी की दवाएं कम कीमत पर उपलब्ध हो सके.अभी अभी: इन्फोसिस को एक और लगा बड़ा झटका, US में केस फाइल करने की शुरू हुई तैयारी
बनेगी नई एजेंसी
ड्रॉफ्ट पॉलिसी में कहा गया है कि अभी मार्केटिंग प्रैक्टिस पर रेग्युलेशन वॉलंटियरी है. लेकिन, नए नियम के मुताबिक यह मैनेडेटरी हो जाएगा. इसे लागू करवाने के लिए अलग से एजेंसी भी बनाई जाएगी जो मार्केटिंग प्रैक्टिस पर कंट्रोल रखेगी.
दवा कंपनियों की मनमानी पर लगेगी रोक!
दवा कंपनियां फिलहाल डिस्ट्रीब्यूटर्स और रिटेलर्स के साथ मिलकर ट्रेड मार्जिन ऊंचा रखते हैं, जिससे कंज्यूमर्स तक पहुंचते-पहुंचते दवाओं की कीमत बहुत ज्यादा हो जाती है. वहीं, दवा कंपनियां अपने ब्रॉन्ड प्रमोशन के लिए गलत मार्केटिंग प्रैक्टिस में लगी हुई हैं. साथ ही, ये कंपनियां अपने ब्रांड को प्रमोट करने के लिए डॉक्टरों पर रेवेन्यू का औसतन 5 फीसदी सालाना खर्च कर देती हैं. ऐसे में अगर नया रूल लागू होता है तो इन सब पर रोक लग जाएगी.
डॉक्टर्स को गिफ्ट देने पर लगेगी रोक
गलत मार्केटिंग प्रैक्टिस भी दवा की कीमतें बढ़ाने का कारण है. दवा कंपनियां अपने ब्रॉन्ड को प्रमोट करने के लिए डॉक्टरों पर गिफ्ट के रूप में हर साल अच्छा-खासा खर्च करती हैं. जिसके बदले डॉक्टर सस्ती दवा के बदले उस कंपनी की दवाएं लिखते हैं. एक स्टडी के अनुसार दवा कंपनियां अपने रेवेन्यू का 5 फीसदी डॉक्टरों को गिफ्ट देने पर खर्च करती हैं. वहीं, प्रमोशन पर खर्च किए जाने वाला पैसा भी दवा की कीमत में जोड़ दिया जाता है. नए नियम में फॉर्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस के लिए नए सिरे से कोड ऑफ कंडक्ट लाया जाएगा. इसे तोड़ने पर दवा कंपनियां और डॉक्टर दोनों ही जिम्मेदार होंगे.