अभी अभी: सहारनपुर हिंसा में मुस्लिम नेताओं ने फायदा उठाने की कोशिश, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

अभी अभी: सहारनपुर हिंसा में मुस्लिम नेताओं ने फायदा उठाने की कोशिश, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

सहारनपुर हिंसा के पीछे डेढ़ साल से पनप रही राजपूतों और दलितों के बीच बढ़ रही खाई के साथ-साथ मुस्लिम नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। प्रदेश सरकार की ओर से केंद्र को भेजी गई रिपोर्ट में खुलासा है कि कटुता बढ़ाने की साजिश भीम आर्मी का संस्‍थापक चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण रच रहा था। हिंसा भी उसी के लोगों ने फैलाई।
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रिश्तों की इस कड़वाहट का लाभ ऐसे मुस्लिम नेताओं ने उठाया जो विधानसभा चुनाव के नतीजों से हताश थे। ये नेता अपना खोया जनसमर्थन हासिल करने के लिए दोनों समुदायों को लड़ाकर दलित समाज को मुसलमानो की ओर मोड़ने के प्रयास में लगे हुए हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय को पिछले दिनों भेजी गई पांच पेज की रिपोर्ट में यूपी सरकार ने भाजपा सांसद राघव लखनपाल की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। इस मामले में दर्ज केस में सांसद लखनपाल का नाम भी है।

बिना अनुमति शोभायात्रा निकालने पर अड़ गए थे सांसद
सहारनपुर हिंसा पर राज्य सरकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क दुधली में 20 अप्रैल को अनुमति न मिलने के बाद भी स्थानीय सांसद राघव लखनपाल के नेतृत्व में शोभायात्रा निकालने की जिद की गई।

प्रशासन ने सांसद को वैकल्पिक मार्ग से शोभा यात्रा निकालने की अनुमति दी लेकिन तय शर्तों के विपरीत यात्रा दूसरे कस्बे में घुस गई। मुसलमानों ने इसका विरोध किया और स्थिति बिगड़ गई। इस बीच, जिला प्रशासन और सांसद सहित शोभायात्रा में शामिल लोगों के बीच तीखा विवाद हुआ। एक दलित कार्यकर्ता अशोक भारती पर सांसद को उकसाने का आरोप है।

रिपोर्ट के मुताबिक 13-14 सालों से यह शोभायात्रा निकालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन प्रशासन इसकी अनुमति नहीं देता। 2003 में बसपा राज में भी इसकी कोशिश की गई थी। इस घटना के बाद सांसद अपने समर्थकों के साथ एसएसपी आवास में घुस गए, जहां भीड़ ने आपत्तिजनक और वैधानिक कार्य किया।

इसके बाद, पांच मई को शब्बीरपुर गांव में राजपूत समाज की ओर से महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन किया गया था, जहा डीजे बजाने को लेकर स्‍थानीय ग्राम प्रधान समेत पूरे दलित समाज ने इसका विरोध किया। जिसके बाद हिंसक स्थिति उत्पन्न हो गई और हिंसा में सुमित राणा नाम के व्यक्ति की मौत हो गई।

अधिकारियों की लापरवाही का भी जिक्र
सरकार की रिपोर्ट में बताया गया है कि सहारनपुर के जिलाधिकारी और एसएसपी के बीच समन्वय का अभाव था। पुलिस प्रशासन ने स्थिति का आकलन करने में चूक की। घटनाओं का सामना करने के लिए पर्याप्त पुलिस बल का इंतजाम नहीं किया।

घटनाओं पर तत्काल काबू तो पा लिया गया लेकिन बाद में निगरानी रखने का कोई प्रबंध नहीं किया गया। इससे अराजक तत्वों को संगठित होकर हिंसक वारदातें करने का मौका मिल गया।

5 मई को महाराणा प्रताप जयंती के कार्यक्रम की अनुमति तहसील के उप जिलाधिकारी ने दी थी जबकि पुलिस से इस बारे में कोई रिपोर्ट नहीं ली गई। रिपोर्ट में स्थानीय खुफिया तंत्र और प्रशासन के बीच भी सूचनाओं के आदान-प्रदान और सामंजस्य का अभाव बताया गया है।

चंद्रशेखर ने डाला आग में घी
रिपोर्ट में बताया गया है कि 9 मई को भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर ने गांधी पार्क में एक बड़ी जनसभा की अनुमति मांगी थी जिसे जिला प्रशासन ने ठुकरा दिया। इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग जुटे। पुलिस ने हटाने की कोशिश की तो वे शहर के विभिन्न हिस्सों में जाकर हिंसक प्रदर्शन करने लगे।

दलित बस्ती में बने राजपूत भवन की दीवार गिरा दी गई और यहां आग लगा दी गई। यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ। जिला पुलिस असहाय नजर आई। सरकार ने माना है कि इस उग्र प्रदर्शन में पूर्व बसपा विधायक रवींद्र उर्फ मोलू की भूमिका अहम रही।

मायावती के पहुंचने से बिगड़ा माहौल
22 मई को राजपूत और दलित समाज के लोगों ने सर्वदलीय बैठक की। इसमें शांति बहाली में सहयोग देने की बात हुई। 23 मई को मायावती ने शब्बीरपुर गांव का दौरा किया।

दलितों ने राजपूत समाज पर बेहद आपत्तिजनक नारे लगाते हुए मायावती की सभा में हिस्सा लिया। महिलाओं को इंगित करते हुए भी नारे लगे। इसका असर यह हुआ कि मायावती की सभा खत्म होने के बाद वापस जा रहे लोगों पर अराजकतत्वों ने हमला बोल दिया। इसमें आशीष नाम के एक व्यक्ति की मौत हो गई।

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