कार्बी शांति समझौते के बाद असम सरकार इतिहास में शांति स्थापना के लिहाज से बनाएगी एक स्वर्णिम अध्याय

Karbi Anglong Agreement पिछले दिनों केंद्र, असम सरकार और राज्य के छह उग्रवादी समूहों के बीच कार्बी शांति समझौता हुआ। इससे असम राज्य के कार्बी आंगलोंग क्षेत्र में पिछले चार दशकों से चली आ रही अलगाववादी हिंसा को समाप्त करने में मदद मिलेगी। इस समझौते के बाद क्षेत्र के सभी छह कार्बी सशस्त्र समूह हिंसा को त्यागने व देश के कानून द्वारा स्थापित शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए सहमत हुए हैं।

हथियार डालने वाले इन संगठनों के नाम हैं-कार्बी लोंगरी नार्थ कछार हिल्स लिबरेशन फ्रंट, पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल आफ कार्बी लोंगरी, यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स, कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स (आर) और कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स (एम। समझौते में इनके कैडरों के पुनर्वास का प्रविधान किया गया है। पिछले दो वर्षो में पूवरेत्तर में विभिन्न जनजातीय समूहों को साथ लेकर किया गया यह चौथा शांति समझौता है। इसके पहले नेशनल लिबरेशन फ्रंट आफ त्रिपुरा, ब्रू जनजातीय परिवारों के पुनर्वास और बोडो अलगाववादी संगठनों के साथ समझौते हो चुके हैं।

 

असम सरकार कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद क्षेत्र से बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के विकास के लिए भी कदम उठाने पर सहमत हुई है। इसके लिए वह कार्बी कल्याण परिषद की स्थापना करेगी। कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद के संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि को बढ़ाया जाएगा। क्षेत्र में विकास परियोजनाओं को गति देने के लिए अगले पांच वर्षो में 1000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को और अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां देने का भी प्रस्ताव है।

दरअसल स्वतंत्रता के बाद से ही केंद्र के स्तर से पूवरेत्तर को लेकर एक स्पष्ट, समावेशी और दूरदर्शी दृष्टिकोण का अभाव देखने को मिला। क्षेत्र के असंतुलित विकास और केंद्र एवं राज्यों के लचर प्रशासनिक तौर-तरीकों से इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा हुई। इस अस्थिरता का फायदा विदेशी मिशनरियों ने खूब उठाया। उन्होंने सेवा की आड़ में स्थानीय जनजातियों का मतांतरण करवाया और उनमें अलगाववाद की भावना को बढ़ावा दिया।

 

बांग्लादेशियों के घुसपैठ ने स्थिति को और विध्वंसक बना दिया। अनियंत्रित घुसपैठ से अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए यहां के कई राज्यों में हथियारबंद उग्रवादी संगठनों का जन्म हुआ। समय के साथ इन संगठनों से जुड़े सदस्य बाहरियों से जबरन उगाही, अपहरण और हत्या जैसे अपराध में भी संलग्न हो गए।

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