अहमदाबाद के इस दलाल ने राज्यपाल-पुलिस कमिश्नर के नाम पर ठगे सवा करोड़ रुपये…

जिस ठग ने फर्जी इंटरनेशनल काल सेंटर के जरिये अमेरिकी नागरिकों से 100 करोड़ ठगे, वह खुद ठगी का शिकार हो गया। अहमदाबाद के एक दलाल ने राज्यपाल और पुलिस कमिश्नर के नाम पर सवा करोड़ रुपये ऐंठ लिए।

आरोपित करण भट्ट को क्राइम ब्रांच ने देहरादून (उत्तराखंड) से गिरफ्तार किया था। आरोपित निपानिया में फर्जी काल सेंटर खोलकर अमेरिकी नागरिकों को डराकर रुपये वसूल रहा था। करण ने बयानों में बताया कि वह दो साल से पुलिस और दलालों की मदद से फरारी काट रहा था। चंडीगढ़ में भी उसने फरारी में काल सेंटर खोल लिया था। अहमदाबाद के शैलेष पंड्या ने उसे पुलिसवालों से बचाने का आश्वासन दिया था। पंड्या एक राज्यपाल की बेटी से दोस्ती बताता था।

उसने कहा था कि राज्यपाल की पुलिस कमिश्नर से बात हो गई है। जांच और मदद के नाम पर शैलेष सवा करोड़ रुपये से ज्यादा ले चुका था। कुछ पुलिसवालों से भी सांठगांठ थी जो छापे की सूचना लीक कर देते थे। राजफाश के बाद कमिश्नर हरिनारायणाचारी मिश्र ने पंड्या सहित रवि दाजी, तुषार, वात्सल्य मेहता और देव त्रिवेदी के नाम भी एफआइआर में जोड़ दिए। क्राइम ब्रांच अब आरोपितों की अहमदाबाद में तलाश कर रही है।

केस डायरी गायब की, फरारी में फोन लगाए

जांच में राजफाश हुआ कि करण और उसके पार्टनर हर्ष भावसार की लसूड़िया थाना के पुलिसकर्मियों से भी मिलीभगत थी। वर्ष 2018 में भी उसका फर्जी काल सेंटर पकड़ा, लेकिन दो साल बाद दोबारा चालू करवा दिया। पुरानी केस डायरी थाने से गायब कर दी और चालान तक पेश नहीं किया। करण की गिरफ्तारी के बाद डीसीपी जोन-2 संपत उपाध्याय ने जांच करवाई तो तत्कालीन एसआइ देवेंद्र मरकाम के पास डायरी मिल गई।

अमेरिकी नागरिकों को बनाता था निशाना

करण भट्ट कर्मचारी जोशी वट्टपरबिल फ्रांसिस, जयराज पटेल, मेहुल, संदीप, यश प्रजापति, हिमांशु अक्षत, चंचल, रोहित, विशाल, विश्व दवे, रोशन गोस्वामी, जितेंद्र, अर्चित, राहुल, करण, कुलदीप, चिंतन, महिमा, आकृति, हर्ष के साथ निपानिया में काल सेंटर खोला था। आरोपित इंटरनेट कालिंग के जरिये अमेरिकी नागरिकों को काल कर ड्रग ट्रैफिकिंग, चेक फ्राड, आइडेंटिट थैप्ट, बैंक फ्राड जैसे केस में फंसाने की धमकी देकर डालर में रुपये वसूलता था। कर्मचारी खुद को सोशल सिक्युरिटी नंबर (एसएसएन) अधिकारी बताते थे। रुपये भी हांगकांग और चीन के खातों में जमा करवाए जाते थे। सूचना के बाद अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआइ भी जांच में शामिल हुई और पीड़ितों के कथन दर्ज करवाए।

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