आम बजट 2021-22 के जरिए वित्‍तमंत्री ने साधे दूरगामी रूप से कई निशाने, जानें- एक्‍सपर्ट व्‍यू

नियादी ढांचा ग्रोथ बढ़ाने में सहायक होता है। प्रति रुपये के आधार पर किसी अन्य क्षेत्र की तुलना में कहीं ज्यादा अधिक रोजगार और उद्यमशीलता के मौके सृजित करता है। बड़े कारपोरेट की कुशलता में इससे वृद्धि होती है, सहायक कारोबारी क्षेत्रों को खुराक मिलती है, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उपक्रम पोषित होते हैं। और अंतत: समावेशी विकास को गति मिलती है। इसके अप्रत्यक्ष लाभ भी कई हैं। बुनियादी ढांचा प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है। यह मौके सृजित करता है। कारोबारी सुगमता के लिए मददगार होता है। जिंदगी को बेहतर करता है। ग्रामीण क्षेत्र में बुनियादी ढांचा समावेशी विकास के साथ गरीबी उन्मूलन में भी मददगार है।

पिछले दो दशक से अधिक समय से हमारी अर्थव्यवस्था कम उत्पादकता का शिखर छूती दिख रही है। इसमें नवोन्मेष किए जाने के साथ ऐसे मॉडल को अपनाए जाने की जरूरत है जिससे हम समय से पहले परिपक्व होते दिख रहे औद्योगिक चरण से हम बाहर निकल सकें। जिन अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढांचे की कमी होती है उनका विकास बौनेपन का शिकार हो जाता है और वे पिछड़ जाते हैं। अपनी पूरी क्षमता से कम पर काम करने वाली अर्थव्यवस्था कई विसंगितयों की जननी बनती है। कई अन्य सामाजिक संकेतक मुश्किल में आते हैं। जिनका समग्र असर वहां के कमजोर इकोसिस्टम के रूप में नजर आता है। मजबूत बुनियादी ढांचा किसी उत्प्रेरक की तरह काम करता है। ग्रोथ को तेज करता है। संसाधनों का पुनर्आवंटन तेज ग्रोथ वाले क्षेत्रों में करता है। इसी तरह तैयार परिसंपत्तियां फार्म टू फैक्टरी सिद्धांत को फलीभूत करती हैं। संसाधन सघन से उच्च आय, उच्च पैदावार और उच्च क्षमतावान क्षेत्रों की तरफ ले जाता है।

भारतीय विकासगाथा के लिए बुनियादी ढांचा बेहद अहम है। इसलिए अपने समकक्ष देशों से प्रतिस्पर्धा के लिए इनका उनके समतुल्य होना बहुत जरूरी है। हालांकि हमारे नीति-नियंताओं ने डिजिटल फ्रेमवर्क तैयार किया है। आंत्रप्रन्योरों ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (मोबाइल टेलीफोन, सॉफ्टवेयर) का विकास किया है। इसके बावजूद भौतिक बुनियादी ढांचे को लंबे समय से उपेक्षित रखा गया। हम अपने सकल घरेलू उत्पाद के चार फीसद से भी कम बुनियादी ढांचे पर खर्च करते हैं। आज का चीन इस मद में 50 फीसद खर्च करता है।

अब जब हम बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहे हैं तो सरकार को जटिल और असमान इकोसिस्टम पर भी ध्यान देना होगा। उसके शिल्प में बदलाव के साथ सुधार जरूरी होगा। बजट में इन जरूरतों के प्रति संकल्प दिखता है, साथ ही संसाधनों की भी व्यवस्था की गई है। लेकिन सबसे मुश्किल काम क्रियान्वयन की है, जिसे भी दुरुस्त करने की दरकार है। एनआइपी (नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन) के खांचे में निजी क्षेत्र की भागीदारी सिर्फ 21 फीसद है। साथ ही केंद्र और राज्यों में संतुलन साधने की भी जरूरत है। इस मायने में पेश किया बजट बुनियादी ढांचे की सबसे अहम चुनौती को पूरी करता दिखता है जिसमें इस क्षेत्र के वित्त पोषण के लिए वित्तीय संस्था के गठन का प्रविधान किया गया है।

अगर हम एक सक्षम माहौल खड़ा करने में सक्षम हुए तो निजी क्षेत्र बुनियादी ढांचे के लिए ज्यादा धन खर्चना शुरू करेगा। अभी बुनियादी क्षेत्र में वित्त पोषण को एक जोखिम की तरह देखा जाता है, यह इसलिए नहीं कि परियोजनाएं वहनीय नहीं हैं बल्कि जो पूरा माहौल है वह डिलीवरी को सुनिश्चित नहीं करा पाता है। निश्चिततौर पर बजट आवंटन विकास को गति देगा लेकिन नई परियोजनाओं को शुरू करने से पहले सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि पहले से ही चालू परियोजनाओं को पूरा कर लिया जाए।

समझौते को लेकर विवाद परियोजनाओं को लागू करने में देरी करते हैं, इससे लागत भी बढ़ती है। पूरी हो चुकी परियोजनाएं परिसंपत्ति की तरह होती हैं। वे आर्थिक विकास को गुणात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। लिहाजा हमें नीतियों का एक त्वरित खांचा खींचना होगा जो उपयुक्त माहौल तैयार करे और विवादों को सुलझाए और उन्हें कम करते हुए डिलीवरी सुनिश्चित करे। एक अध्ययन के अनुसार बुनियादी ढांचे से जुड़ी 1200 बड़ी और मध्यम परियोजनाओं में हर तीसरी अपने समय से पीछे चल रही थीं, हर चौथी परियोजना की लागत बढ़ चुकी थी।

पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए हमें बुनियादी क्षेत्र की हर कड़ी को मजबूत करना होगा।

अध्ययन बताते हैं कि प्रत्येक 25 फीसद टिकाऊ और प्रभावी सार्वजनिक निवेश से वास्तविक ग्रोथ में दस साल तक दो से तीन फीसद की वृद्धि होती है। पड़ोसी देश चीन का तीन दशकीय आर्थिक विकास इंफ्रास्ट्रक्चर में उसके उद्देश्यपूर्ण निवेश की झलक दिखाता है। देश के एनआइपी में हर क्षेत्र से जुड़ी करीब छह हजार परियोजनाएं हैं। कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर और असंगठित अर्थव्यवस्था में अगर एक लाख करोड़ का निवेश किया जाए तो करीब दो करोड़ नए रोजगार सृजित होते हैं। साथ ही अगले पांच साल में दस करोड़ परोक्ष रोजगार का निर्माण होता है।

आर्थिक, सामाजिक मोर्चे पर जिस प्रतिकूल परिस्थिति में वित्त वर्ष 2021-22 का आम बजट पेश किया गया, उसे विशेषज्ञ बिना हिचक वक्त की जरूरत बता रहे हैं। शेयर बाजार बजट के दिन से ही अपनी उछाल के साथ बजटीय प्रविधानों को सलामी दे रहा है। 34.83 लाख करोड़ का यह बजट सरकार के आय-व्यय का वह विवरण है जो कोरोना जैसी महामारी से उपजी ऐतिहासिक घड़ी की टिकटिक को रफ्तार देने का दस्तावेज बन सकता है। पूरे बजट का लब्बोलुआब स्पष्ट था- कोविड महामारी से निपटने के साथ अर्थव्यवस्था को पहुंचे नुकसान की भरपाई करना।

अगले वित्त वर्ष में 11 फीसद की आर्थिक वृद्धि दर की जो सुनहरी तस्वीर दिखाई गई, उसे इस बजट के कदम फलीभूत कर सकने का माद्दा रखते हैं। मानव पूंजी में निवेश बढ़ाना और बुनियादी ढांचे को विकसित करके रोजगार सृजन व अर्थव्यवस्था का चक्र तेज करने के लिए मांग को बढ़ावा देना इसी दूरदर्शिता को झलकाता है। स्वास्थ्य क्षेत्र के आवंटन में 137 फीसद की वृद्धि बताती है कि हमने अपने हेल्थ इज वेल्थ के पारंपरिक जीवनदर्शन पर मुहर लगाई है।

अब हमने मानव संसाधन को तराशने का काम शुरू किया है। इसके लिए यह बजट शिक्षा, सेहत, कौशल सहित तमाम कारकों का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल सुनिश्चित करा सकता है। बजट चूंकि जटिल आंकड़ों का एक बड़ा ग्रंथ होता है, जिसके नफा-नुकसान को तात्कालिक रूप से आम आदमी नहीं समझ सकता। ऐसे में इस बात की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है कि बजट के आगे उसके प्रविधान कैसे राज-काज और समाज को सशक्त-समृद्ध करेंगे।

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