भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का सिलसिला जारी है जो जुलाई की 14 तारीख से शुरू हुआ है. सालों से चली आ रही है ये परंपरा आज भी जारी है. इस यात्रा को शुरू हुए 3 दिन बीत चुके हैं. कहा जाता है इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर जाते हैं और वहीँ कुछ दिन रुकते हैं. आज हम इस मंदिर से कुछ और रहस्य बताने जा रहे हैं जिनके बारे में आप नहीं जानते होंगे. इसके पहले बता दें, इस रथ यात्रा में सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं और रथ खींचने का सौभगाय प्राप्त करते हैं जिसके लिए ये कहा जाता है जो इस रथ को खींचता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. जानकारी के लिए बता दें, भगवान जगन्नाथ का मंदिर 1108 ई. में बनकर पूर्ण हुआ था जिसकी ऊंचाई 58 मीटर है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की मूर्तियां हैं. कहा ये भी जाता है कि इस मंदिर में आने वाला कभी भूखा नहीं रहता क्योंकि इस मंदिर की रसोई विश्व प्रसिद्ध है, जहां निरंतर भोजन बनता रहता है. इस मंदिर में भगवान की मूर्तियां लकड़ी की बनी हुई है जिसके पीछे एक कथा प्रचलित है. राजा इंद्रद्युम्न के मन में नीलांचल पर्वत पर स्थित नीलामाधव देव के दर्शन पर्वत पर गए. वो चाहते थे वहीं उन्हें देव दर्शन हो जहां पर ये आकाशवाणी हुई कि उस राजा को लकड़ी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन होंगे. इसी के लिए समुद्र से प्राप्त लकड़ी के एक बहुत बड़े टुकड़े से देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी को विग्रह निर्माण के लिए नियुक्त किया गया. विश्वकर्मा जी ने ये बात रखी कि जब वो निर्माण करेंगे उस दौरान उन्हें कोई नहीं देखेगा. लेकिन राजा ही इस नियम को तोड़कर मूर्ति निर्माण को देखने चले गए. जब विश्वकर्मा जी को ये पता चला तो उन्होंने काम अधूरा छोड़ दिया और चले गए. इसी के कारण इस मंदिर की मूर्तियां अधूरी ही पूजी जाती हैं.

इस कारण लकड़ी से बनी है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का सिलसिला जारी है जो जुलाई की 14 तारीख से शुरू हुआ है. सालों से चली आ रही है ये परंपरा आज भी जारी है. इस यात्रा को शुरू हुए 3 दिन बीत चुके हैं. कहा जाता है इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर जाते हैं और वहीँ कुछ दिन रुकते हैं. आज हम इस मंदिर से कुछ और रहस्य बताने जा रहे हैं जिनके बारे में आप नहीं जानते होंगे. इसके पहले बता दें, इस रथ यात्रा में सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं और रथ खींचने का सौभगाय प्राप्त करते हैं जिसके लिए ये कहा जाता है जो इस रथ को खींचता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का सिलसिला जारी है जो जुलाई की 14 तारीख से शुरू हुआ है. सालों से चली आ रही है ये परंपरा आज भी जारी है. इस यात्रा को शुरू हुए 3 दिन बीत चुके हैं. कहा जाता है इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर जाते हैं और वहीँ कुछ दिन रुकते हैं. आज हम इस मंदिर से कुछ और रहस्य बताने जा रहे हैं जिनके बारे में आप नहीं जानते होंगे. इसके पहले बता दें, इस रथ यात्रा में सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं और रथ खींचने का सौभगाय प्राप्त करते हैं जिसके लिए ये कहा जाता है जो इस रथ को खींचता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.  जानकारी के लिए बता दें, भगवान जगन्नाथ का मंदिर 1108 ई. में बनकर पूर्ण हुआ था जिसकी ऊंचाई 58 मीटर है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की मूर्तियां हैं. कहा ये भी जाता है कि इस मंदिर में आने वाला कभी भूखा नहीं रहता क्योंकि इस मंदिर की रसोई विश्व प्रसिद्ध है, जहां निरंतर भोजन बनता रहता है.     इस मंदिर में भगवान की मूर्तियां लकड़ी की बनी हुई है जिसके पीछे एक कथा प्रचलित है. राजा इंद्रद्युम्न के मन में नीलांचल पर्वत पर स्थित नीलामाधव देव के दर्शन पर्वत पर गए. वो चाहते थे वहीं उन्हें देव दर्शन हो जहां पर ये  आकाशवाणी हुई कि उस राजा को लकड़ी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन होंगे. इसी के लिए समुद्र से प्राप्त लकड़ी के एक बहुत बड़े टुकड़े से देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी को विग्रह निर्माण के लिए नियुक्त किया गया.     विश्वकर्मा जी ने ये बात रखी कि जब वो निर्माण करेंगे उस दौरान उन्हें कोई नहीं देखेगा. लेकिन राजा ही इस नियम को तोड़कर मूर्ति निर्माण को देखने चले गए. जब विश्वकर्मा जी को ये पता चला तो उन्होंने काम अधूरा छोड़ दिया और चले गए. इसी के कारण इस मंदिर की मूर्तियां अधूरी ही पूजी जाती हैं.

जानकारी के लिए बता दें, भगवान जगन्नाथ का मंदिर 1108 ई. में बनकर पूर्ण हुआ था जिसकी ऊंचाई 58 मीटर है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की मूर्तियां हैं. कहा ये भी जाता है कि इस मंदिर में आने वाला कभी भूखा नहीं रहता क्योंकि इस मंदिर की रसोई विश्व प्रसिद्ध है, जहां निरंतर भोजन बनता रहता है.

इस मंदिर में भगवान की मूर्तियां लकड़ी की बनी हुई है जिसके पीछे एक कथा प्रचलित है. राजा इंद्रद्युम्न के मन में नीलांचल पर्वत पर स्थित नीलामाधव देव के दर्शन पर्वत पर गए. वो चाहते थे वहीं उन्हें देव दर्शन हो जहां पर ये  आकाशवाणी हुई कि उस राजा को लकड़ी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन होंगे. इसी के लिए समुद्र से प्राप्त लकड़ी के एक बहुत बड़े टुकड़े से देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी को विग्रह निर्माण के लिए नियुक्त किया गया.

विश्वकर्मा जी ने ये बात रखी कि जब वो निर्माण करेंगे उस दौरान उन्हें कोई नहीं देखेगा. लेकिन राजा ही इस नियम को तोड़कर मूर्ति निर्माण को देखने चले गए. जब विश्वकर्मा जी को ये पता चला तो उन्होंने काम अधूरा छोड़ दिया और चले गए. इसी के कारण इस मंदिर की मूर्तियां अधूरी ही पूजी जाती हैं.

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