एक ऐसा शख्स, जो खाने में रोटी-सब्जी या चावल नहीं, बल्कि दर्जन भर कील और सुईंयां ले रहा था...

एक ऐसा शख्स, जो खाने में रोटी-सब्जी या चावल नहीं, बल्कि दर्जन भर कील और सुईंयां ले रहा था…

आप खाने में अमूमन रोटी-सब्जी या दाल चावल लेते होंगे, लेकिन अगर हम आपसे कहे कि राजस्थान का एक शख्स खाने में दर्जन भर कीलें और सुईंयां लेता था, तो शायद आपको यकीन ना हो। लेकिन ये सच है। राजस्थान के बूंदी इलाके के रहने वाले 56 साल के बद्रीलाल के पेट से डॉक्टरों ने 150 से ज्यादा कीले और सुईंया निकाली हैं। एक ऐसा शख्स, जो खाने में रोटी-सब्जी या चावल नहीं, बल्कि दर्जन भर कील और सुईंयां ले रहा था...जाकिर मूसा को कश्मीर के नए पोस्टर ब्वॉय बनने की चाह, क्या है जाकिर मूसा का एक्शन प्लान?

असहनीय दर्द की वजह से तीन महीने से बद्रीलाल ने खाना-पीना करीब-करीब छोड़ दिया था। कीलें और सुईंया गले की कोशिकाओं और नलियों को इस तरह से प्रभावित कर रही थी कि खाना तो दूर अब सांस लेना भी दूभर हो रहा था। नलियों और कोशिकाओं के प्रभावित होने से मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह पर असर भी पड़ने लगा था। 

कई अस्पतालों से भटकने के बाद मरीज को फरीदाबाद स्थित एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में इलाज के लिए लाया गया। 56 वर्षीय बद्रीलाल के पूरे शरीर का एक्स-रे किया गया, जिसमें पता चला कि शरीर के अंदर 150 से अधिक कीलें, सुईंया और पीन भरे पड़े हैं। सिर्फ गर्दन की कोशिकाओं और नलियों के आसपास ही 90 से अधिक कीलें थी जिसे 24 जून को दुर्लभ सर्जरी कर निकाली गई। मरीज की अभी तक दो सर्जरी की गई है संभव है कि आगे भी सर्जरी की जाए। अभी भी मरीज के पेट और पैर की मांसपेशियों में कीलें मौजूद हैं।      

अस्पताल के ईएनटी विभाग के निदेशक डॉ.ललित मोहन पाराशर ने बताया कि कीलें शरीर की मुख्य नाड़िय़ों, श्वसन नली, खाने की नली, ईसोफेगस, दिमाग को खून पहुंचाने वाली मुख्य नाड़ी (कैरोटिड आर्टरी) को पूरी तरह से प्रभावित कर चुका था। इसकेबाद ईएनटी, हृदय, जनरल सर्जर और एनेस्थीसिया विभाग के डॉक्टरों की एक टीम बनाई गई।   

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कार्डियोवैस्कुलर सर्जन डॉ.आदिल रिजवी ने बताया कि छह घंटे तक सर्जरी चली। नसों को बिना आघात पहुंचाए कीलों व सुईयों को बाहर निकालना था। ट्रैक्योस्टोमी तकनीक का सहारा लेकर मरीज को बेहोश किया गया और एक-एक करके कीलों व सुईयों को बाहर निकाला गया। मरीज के शरीर के अंदर ये सुईंयां और कीलें छह माह या इससे अधिक समय से मौजूद थीं, जिसकी वजह से कुछ कीलों में जंग भी लगी हुई थी।     

अस्पताल के प्रबंध निदेशक डॉ.एन.के.पांडे ने बताया कि भारत में इससे पहले इस तरह की सर्जरी नहीं हुई है। इस दुर्लभ सर्जरी के लिए अस्पताल का नाम रिप्लेस बिलीव इट और नॉट और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए केस हिस्ट्री भेजी जाएगी। डॉ. पांडे ने बताया कि मरीज को कुछ मनोचिकित्सीय दिक्कत है, इसके लिए मनोचिकित्सक से भी इलाज चल रहा है। 
 
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