एक बार फिर से मीडिया की सूर्खियों में छाया हुआ है नागोर्नो कराबाख, जानें- इस बार बनी क्‍या वजह

नागोर्नो कराबाख एक बार फिर से मीडिया की सूर्खियों में छाया हुआ है। इस बार इसकी दो बड़ी वजह हैं। इनमें से पहली वजह अर्मेनिया में रविवार को होने वाला चुनाव है और दूसरी वजह अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो कराबाख को लेकर किया गया शांति समझौता है। इस समझौते को कुछ लोग जीत के तौर पर देखते हुए जश्‍न मना रहे हैं तो कुछ इसको राष्‍ट्रीय हितों को ताक पर रखकर किया गया बता रहे हैं। ऐसा मानने वाले लोग सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और कार्यवाहक प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान के इस्‍तीफे की मांग कर रहे हैं। इसी वजह से इस चुनाव में कार्यवाहक पीएम पशिनयान की हार की आशंका अधिक लग रही है। नागोर्नो कराबाख का असर इस चुनाव पर साफ दिखाई दे रहा है।

जहां तक चुनाव की बात है तो आपको बता दें कि इसके लिए 2,000 से ज्यादा मतदान केंद्र बनाए गए हैं। इसमें 26 लाख मतदाता वोट डालेंगे और 21 राजनीतिक दल और चार गठबंधन इस चुनाव में हिस्‍सा ले रहे हैं। इस चुनाव में मुख्‍य रूप से पशिनयान के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ सिविक कॉन्ट्रैक्ट पार्टी और पूर्व राष्ट्रपति रॉबर्ट कोचरयान के बीच कड़ा मुकाबला है। कोचरयान ने इसके लिए अर्मेनिया से समझौता किया है। वो 1998 और 2008 के बीच देश के राष्ट्रपति रह चुके हैं। कोचरयान खुद नागोर्नो-काराबाख के ही रहने वाले है। इस चुनाव में जीतने वाले को संसद की 54 फीसद सीटें पाना जरूरी है। पशिनयान को नागोर्नो-कराबाख में काफी समर्थन मिल रहा है। वहीं येरेवन में उनको लेकर विरोध प्रदर्शन भी तेज हुए हैं।

आपको बता दें कि नागोर्नो कराबाख एक ऐसा क्षेत्र है जो वर्षों से विवादित है। 4400 वर्ग किमी के दायरे में फैले इस क्षेत्र में अर्मेनियाई ईसाई और मुस्लिम तुर्क रहते हैं, लेकिन इस पर अजरबैजान का नियंत्रण है। सोवियत संघ के समय से ही यहां का माहौल अशांत है और सोवियत संघ के विघटन के बाद इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई है। 1991 में एक लड़ाई के बाद इस क्षेत्र को आजाद क्षेत्र घोषित कर दिया था, हालांकि अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर किसी ने इसको मान्‍यता नहीं दी। सितंबर 2020 में भी इस क्षेत्र में जबरदस्‍त लड़ाई छिड़ी थी, जिसको रुकवाने में रूस ने सफल प्रयास किए थे। रूस की पहल के बाद ही इस क्षेत्र में सीजफायर भी संभव हो सका और शांति बहाली दोनों के बीच नवंबर 2020 में समझौता हुआ था। अब यही समझौता पशिनयान के लिए परेशानी का सबब बन गया है। वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट, 2020 के अनुसार यहां पर हक जमाने को लेकर छिड़ी 2020 की लड़ाई के चलते करीब 72 हजार लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। वहीं पूरी दुनिया में ऐसे लोगों का आंकड़ा 4.13 करोड़ से अधिक है।

इसमें स्थित येरेवन में जातीय अर्मेनियाई बलों का नियंत्रण था। इसको सरकार का समर्थन हासिल था। 1994 में छिड़ी लड़ाई के बाद इस पर अर्मेनिया ने कब्‍जा कर लिया था। 2020 की लड़ाई में अजरबैजान ने इस इलाके को अपने कब्‍जे में लेने के लिए अर्मेनिया पर जो हमला बोला था उसमें करीब 6 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। यहां के रीजनल रिसर्च सेंटर के डायरेक्‍टर रिचर्ड गिरगोसियन का कहना है कि मौजूदा चुनाव किसी जनमत संग्रह की तरह है। उनका कहना है कि अजरबैजान ने जिस तरह से तुर्की के सहयोग से अर्मेनिया पर हमला किया उससे यहां की राजनीति को एक अलग तरह से परिभाषित किया है।

 

आपको बता दें कि पशिनयान वर्ष 2018 में सत्ता पाने में सफल हुए थे। हालांकि जनमानस की भावनाओं को देखते हुए उन्‍होंने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया था और कार्यवाहक पीएम बन गए थे। ये क्षेत्र प्राकृतिक रूप से भी काफी अहम है। यहां खनिज समेत तेल और प्राकृतिक गैस की मौजूदगी काफी है। वहीं दोनों देशों पर यदि नजर डालें तो पता चलता है कि अजरबैजान ने खुद को यूरोप और मध्य एशिया में तेल के निर्यातक के रूप में स्थापित किया है, वहीं अर्मेनिया की अर्थव्‍यवस्‍था कृषि, खनिज संसाधनों, दूरसंचार और पन-बिजली पर आधारित है।

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