ऐसे समय में कृषि कानून वापस लेने से इस तरह के विरोधों की प्रवृति बढ़ेगी

 

ऐसा लगता है, आंदोलनकारियों ने बातचीत के सभी दरवाजे बंद कर दिए हैं। यह किसी भी लोकतांत्रिक देश में नहीं होता है। यदि इस मोड़ पर कानून को वापस ले लिया जाता है तो यह निश्चित रूप से सर्वसम्मति से संसद द्वारा पारित कानूनों के विरोध की प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा और इच्छुक लॉबी आंदोलन की ऐसी ही प्रक्रिया को अपनाकर सुधार और विकास के रास्ते में अड़ंगा डाल सकती हैं। केंद्र सरकार के कृषि मंत्री कई प्रस्तावों के साथ सामने आए, लेकिन इन प्रयासों को सफलता नहीं मिली।

कृषि विपणन क्षेत्र में सुधारों का लंबा इतिहास है। 1992 में उच्च स्तरीय समिति के साथ शुरू होता है। यूपीए सरकार में 12वीं योजना का कार्य समूह, 2003 का मॉडल एपीएमसी अधिनियम और 2007 में संशोधित, 2011 में राज्यों के कृषि मंत्रियों की समिति, गोकुल पटनायक रिपोर्ट 2011 और अंत में मुख्यमंत्रियों की उच्चस्तरीय समिति ने इसी तरह के सुधारों की सिफारिश की थी। मुख्यमंत्रियों की समिति में कमलनाथ और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी भाग लिया था। र्मींटग में उन्होंने अपनी किसी भी असहमति को नहीं दर्शाया था।

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