ऑल वेदर रोड परियोजना: गंगोत्री,यमुनोत्री हाईवे का सफर होगा आसान, पढ़े पूरी खबर

ऑल वेदर रोड परियोजना के तहत अब गंगोत्री और यमुनोत्री का सफर आसान हो जाएगा। परियोजना के तहत जिन क्षेत्रों में काम अटका हुआ था उसका मुख्य हिस्सा इन दोनों ही धामों को जोड़ने वाली सड़कों के तहत आता है। ऐसे में अब सड़क पर काम शुरू होने से स्थानीय लोगों के साथ ही इन धामों की यात्रा पर आने वालों को बड़ी राहत मिल जाएगी।

ऑल वेदर रोड परियोजना के तहत आने वाला उत्तरकाशी से गंगोत्री का तकरीबन 89 किमी क्षेत्र ईको सेंसेटिव जोन में आता है। इस क्षेत्र में सड़क निर्माण से ही परियोजना का विरोध शुरू हुआ था। उसके बाद कई हिस्सों में निर्माण का विरोध होता गया और परियोजना के कई हिस्से इससे प्रभावित हो गए। पिछले पांच सालों से इस परियोजना में नोडल अफसर के रूप में काम कर चुके लोनिवि के पूर्व प्रमुख अभियंता हरिओम शर्मा ने बताया कि ऑल वेदर रोड के तहत होने वाले अधिकांश काम गंगोत्री और यमुनोत्री रूट पर हैं।

कुल बचे कार्यों में से 111 किमी का कार्य इन दोनों ही सड़कों पर होना है। इससे अब होने वाले सड़क चौड़ीकरण के कार्य से सबसे अधिक फायदा गंगोत्री और यमुनोत्री धाम जाने वाले यात्रियों व स्थानीय लोगों को मिलना है। साथ ही पर्यटकों की संख्या में भी इजाफा होगा।

सिंगल लेन सड़क से परेशानी 
गंगोत्री जाने वाली सड़क अभी तक उत्तरकाशी से गंगोत्री तक सिंगल लेन है। इस वजह से यात्रा पर आने वाले लोगों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। सिंगल लेन की वजह से यात्राकाल में दिनभर जाम की स्थिति बनी रहती थी। जबकि दुर्घटनाओं का भी खतरा बना रहता था। लेकिन अब सड़कों के चौड़ा हो जाने के बाद बड़ी राहत मिल जाएगी। परियोजना के तहत उत्तरकाशी से गंगोत्री तक 89 किमी और पालीगाड़ से यमुनोत्री तक 21 किमी सड़क परियोजना पर काम शुरू हो पाएगा।

पर्यावरण मानकों का पालन करना जरूरी 
वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विक्रम गुप्ता भी सुप्रीम कोर्ट की हाईपावर कमेटी के सदस्य रहे। डॉ. विक्रम गुप्ता के अनुसार, जहां पर कटाव किया जा रहा है, तुरंत उस कटाव को रिपेयर करने का काम शुरू हो जाना चाहिए। हमें स्लोप के गिरने का इंतजार नहीं करना चाहिए। पहाड़ों में प्राकृतिक मानवीय गतिविधि और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले कुछ वर्षों में कई सारे भूस्खलन जोन विकसित हुए हैं। सिर्फ विकास कार्य से ही भूस्खलन जोन बने हों, ऐसा नहीं है।

उत्तराखंड के अलावा हिमाचल में भी नए भूस्खलन जोन विकसित हुए हैं। विकास कार्य की कीमत इंसान को ही चुकानी पड़ती है। स्थानीय लोगों पर इसका बहुत ज्यादा असर पड़ता है, जबकि सुविधाओं का लाभ हर कोई उठा सकता है। स्थानीय परिवेश को ध्यान में रखते हुए पूरी शक्ति से पर्यावरण मानकों का पालन किया जाना बहुत जरूरी है। आखिर यही पर्यावरण उत्तराखंड की विशेषता है। यहीं खत्म हो जाएगी तो हमें साफ पर्यावरण और साफ पानी कहां से मिलेगा।

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