कई सभ्यताओं को नया अर्थ दिया है इस पेड़ ने

तक़रीबन 2,000 साल पहले भारत के तत्कालीन सम्राट अशोक ने एक ख़ास पेड़ की एक शाखा कटवाने का आदेश दिया.

कई सभ्यताओं को नया अर्थ दिया है इस पेड़ ने

कहा जाता है कि इसी पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान मिला था और वे गौतम बुद्ध बन गए थे.

सम्राट अशोक ने इस शाखा को राजसी मान-सम्मान दिया और इसे मोटे किनारे वाले सोने के एक बर्तन में रखवा दिया.

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इस कहानी का आधार ऐतिहासिक महाकाव्य ‘महावंश’ है. यह कहानी बोधि वृक्ष (अंजीर प्रजाति का पेड़) के इर्द-गिर्द बुनी गई है.

हालांकि अंजीर की कई प्रजातियां हैं. दुनिया भर में कुल 750 प्रकार के अंजीर के पेड़ पाए जाते हैं. लेकिन किसी और पेड़ के बारे में इतिहास में इस तरह की कहानी नहीं मिलती है.

हवा में लटकती जड़ें

अंजीर के अधिकांश प्रजातियों के पेड़ों की जड़ें धरती के नीचे होती हैं. लेकिन जंगली अंजीर की जड़ें हवा में लटकती दिखती हैं.

जंगली अंजीर एक असाधारण पेड़ है. यह बीज से उगता है. इस पर तरह तरह के पक्षी आकर बसते हैं.

शाखाओं से निकलती जड़ें गहरी और मोटी होती हुई पूरे पेड़ को ढक लेती हैं.

कई बार ये जड़ें इस कदर पेड़ पर छा जाती है कि मूल पेड़ ही ख़त्म हो जाता है.

दो देशों में जंगली अंजीर के पेड़ राज्य चिह्न का हिस्सा भी हैं.

यह गूलर जाति का एक विशाल वृक्ष है.

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एक इंडोनेशिया में है. यहां यह पेड़ ‘अनेकता में एकता’ का प्रतीक है. इसकी शाखाओं से झूल रही जड़ें बताती हैं कि यह देश कई द्वीपों से मिलकर बना है.

दूसरा प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से में स्थित बारबडोस द्वीप है.

कहा जाता है कि जब यूरोप से आने वाले समुद्री नाविक इस टापू पर पंहुचे तो उन्होंने देखा कि पेड़ों से जड़ें इस तरह लटक रही हैं मानो किसी साधु के बिखरे बालों की जटाएं हैं.

पुर्तगाल के खोजी नाविक पेड्रो कांपोज़ ने इस टापू को लॉस बारबडोस यानी ‘दाढियों वाला कहा’ और यही उसका नाम पड़ गया.

इतिहास के साक्षी

हालांकि जंगली अंजीर ने इन्सानों की सोच को सदियों पहले से प्रभावित कर रखा है.

बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म के लोग लगभग दो हज़ार साल से भी अधिक समय से जंगली अंजीर की पूजा करते आए हैं.

भारत में इसे बोधि वृक्ष कहते हैं. इसे बहुत पवित्र माना गया है.

अशोक की बेटी संघमित्रा इस पवित्र पेड़ की एक शाखा श्रीलंका ले गई थी. इस डाल को वहां लगाया गया और उससे उगा पेड़ वहां अब तक है.

दूसरी ओर, 3,500 साल पहले वैदिक स्तुति में भी इसी पेड़ का गुणगान मिलता है. यही नहीं, 1,500 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता की कला और मिथकों में भी इसका उल्लेख मिलता है.

इन पेड़ों का जिक्र लोकगीतों, कहानियों और बच्चा पैदा होने से जुड़े संस्कारों में पाया गया है.

भारत में इसी प्रजाति का पेड़ बरगद सबसे लोकप्रिय और और लोग इसे पवित्र मानते हैं. इसका एक पेड़ इतना घना होता है मानों कोई जंगल खड़ा हो.

उत्तर प्रदेश में बरगद को अमर माना जाता है.

दक्षिण में अंजीर की प्रजाति का एक और पेड़ है. कहा जाता है कि एक बार एक महिला अपने पति की मौत के बाद उसकी जलती चिता में कूद कर मर गई थी और उसी जगह यह पेड़ उग आया था.

आंध्र प्रदेश में इस पेड़ के नीचे क़रीब 20,000 लोगों को आसरा मिल सकता है.

जीवन रक्षक भोजन

सिकंदर और उसके सैनिक बरगद के पेड़ का सुख लेने वाले यूरोप के पहले लोगों में थे. वे भारत 326 ईसा पूर्व आए थे.

सिकंदर ने बरगद के पेड़ के बारे में आधुनिक वनस्पति विज्ञान के संस्थापक और यूनानी दार्शनिक थियोफ्रेस्टस को बताया तो वे इससे बहुत प्रभावित हुए.

थियोफ्रेस्टस खाने वाले अंजीर पर शोध कर रहे थे. शोध के दौरान उन्होंने पाया कि छोटे छोटे कीड़े इन पेड़ों पर आते हैं और वही रहते हैं.

तक़रीबन 2,000 साल से भी पहले वैज्ञानिकों ने पाया कि अंजीर की जितनी भी प्रजाति के पेड़ हैं, उन सब पर किसी ख़ास किस्म के कीट या ततैये होते हैं.

इसी तरह हर अंजीर पर रहने वाले कीट अपने ही पसंद के अंजीर के फूलों में अंडे देते हैं.

यह रिश्ता 8 करोड़ साल पहले शुरू हुआ और इसी ने दुनिया को अपने सांचे में ढाला.

सालों भर फल

अंजीर के इन प्रजातियों के पेड़ों साल भर फल उगाने की ज़रूरत पड़ी ताकि उन पर रहने वाले और परागण करने वाले ततैया जिंदा रह सकें.

ये बात फल पर जिंदा रहने वाले जानवरों के लिए वरदान है. इन जानवरों को साल के अधिकांश समय भोजन पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है.

हक़ीक़त तो यह है कि किसी भी दूसरे फल की तुलना में अंजीर के सहारे जंगल की अधिक प्रजातियां जीवित रहीं.

अंजीर खाने वाली ऐसी लगभग 1,200 प्रजातियां हैं. इनमें दुनिया भर के पक्षी और चमगादड़ों का दसवां हिस्सा शामिल है.

इसीलिए पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि ये प्रजातियां लुप्त हो गईं तो सब कुछ ख़त्म हो जाएगा.

अंजीर से केवल जंगली जानवरों की ही पेट नहीं भरता है, साल भर फलने वाले इस रसीले फल ने हमारे पूर्वजों को भी जिंदा रखने में मदद की होगी.

पर्यावरण के जानकारों का तो यह भी कहना है कि ऊर्जा और ताकत से भरपूर इन फलों ने पूर्वजों के मस्तिष्क का अच्छा विकास किया.

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