ईद-उल-अधा देश भर में 1-2 सितंबर को मनाया जाएगा। इसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार को अल्लाह की मांग पर हजरत इब्राहम (अब्राहम) के अपने बेटे का बलिदान करने को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।

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इस त्योहार को लेकर लोगों में मान्यता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को सपने में अपनी प्रिय चीज की कुर्बानी देने का आदेश दिया। माना जाता है कि हजरत को अपने बेटे से बेहद लगाव था। इसलिए उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने की तैयारी कर ली। लेकिन कुर्बानी देने के बाद भी उनका बेटे को खुदा ने जिंदा कर दिया।
इसलिए बकरीद मनाने के लिए लोग कम से कम 2 या 3 पहले बकरे या ऊंट को पालते है। फिर बकरीद वाले दिन उसका बलिदान करते है। इसका गोश्त तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा गरीबों के लिए, एक हिस्सा रिश्तेदारों और मिलने-जुलने वालो के लिए और एक हिस्सा अपने लिए होता है।
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इस प्रथा को निभाते हुए इस दिन जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। इस त्योहार से पहले देशभर के बाजारों में बकरे के बाजार सजाए जाते हैं। हालांकि नवजात बकरे की कुर्बानी नहीं दी जाती है, बकरे को डेढ-दो साल का होना जरूरी होता है।
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