निर्जला एकादशी के दिन शनिवार को शहर में जगह जगह स्टॉल लगाकर लोगों को तरह-तरह का पानी पिलाया गया। इतना ही नहीं कई जगहों पर पकवान भी बांटे गए। इसके अलावा महिलाओं ने व्रत रख पूजा भी की। बता दें कि पखवाड़े के ग्यारहवे दिन को एकादशी कहते हैं। हिंदू पंचाग के अनुसार साल में 24 एकादशी आती हैं, लेकिन निर्जला एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र एकादशी माना जाता है। निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को कहा जाता है। इस वर्ष यह एकादशी 23 जून यानि आज मनाई गई। ज्योतिष विद पंडित देवऋषि शास्त्री के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अराधना का विशेष महत्व है। साथ ही एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक निर्जल (बिना पानी के) व्रत रखने का महत्व है। कहते हैं कि निर्जला एकादशी पर उपवास रखकर आप पूरे वर्ष में आने वाली सभी 24 एकादशी का फल प्राप्त कर सकते हैं। आइए निर्जला एकादशी से जुड़ी कुछ अहम बातें जानते हैं। 1. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी पर व्रत रखने से चंद्रमा द्वारा उत्पन्न हुआ नकारात्मक प्रभाव समाप्त होता है। उपवास रखने से ध्यान लगाने की क्षमता बढ़ती है। 2. भक्त पूरी रात जागकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। निर्जला एकादशी की रात को सोना वर्जित होता है, क्योंकि इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 3. भक्त इस दिन ओम नमो: भगवते वासुदेवाय के मंत्र का जाप करते हैं। 4. ब्राह्मणों को कपड़े, छाता, दूध, फल, तुलसी पत्तिया आदि दान करना शुभ माना जाता है। 5. चावल खाना इस दिन सख्त मना होता है। निर्जला एकादशी का पौराणिक और भौतिक महत्व मान्यता है कि यदि हम ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में एक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना पानी के उपवास करें तो बिना बताए ही हमें जल की आवश्यकता, अपरिहार्यता, विशेषता पता लग जाएगी- जीवन बिना भोजन, वस्त्र के कई दिन संभाला जा सकता है, परंतु जल और वायु के बगैर नहीं। शायद उन दूरदर्शी महापुरुषों को काल के साथ ही शुद्ध पेयजल के भीषण अभाव और त्रासदी का भी अनुमान होगा ही- इसीलिए केवल प्रवचनों, वक्तव्यों से जल की महत्ता बताने के बजाए उन्होंने उसे व्रत श्रेष्ठ एकादशी जैसे सर्वकालिक सर्वजन हिताय व्रतोपवास से जोड़ दिया। निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व और आख्यान भी कम रोचक नहीं है। जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पाडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शात रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाउंगा। पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अत: आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पाडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है।

क्यों मनाते हैं निर्जला एकादशी, क्या है व्रत का महत्व, आइए जानें

निर्जला एकादशी के दिन शनिवार को शहर में जगह जगह स्टॉल लगाकर लोगों को तरह-तरह का पानी पिलाया गया। इतना ही नहीं कई जगहों पर पकवान भी बांटे गए। इसके अलावा महिलाओं ने व्रत रख पूजा भी की। बता दें कि पखवाड़े के ग्यारहवे दिन को एकादशी कहते हैं। हिंदू पंचाग के अनुसार साल में 24 एकादशी आती हैं, लेकिन निर्जला एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र एकादशी माना जाता है। निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को कहा जाता है। इस वर्ष यह एकादशी 23 जून यानि आज मनाई गई।निर्जला एकादशी के दिन शनिवार को शहर में जगह जगह स्टॉल लगाकर लोगों को तरह-तरह का पानी पिलाया गया। इतना ही नहीं कई जगहों पर पकवान भी बांटे गए। इसके अलावा महिलाओं ने व्रत रख पूजा भी की। बता दें कि पखवाड़े के ग्यारहवे दिन को एकादशी कहते हैं। हिंदू पंचाग के अनुसार साल में 24 एकादशी आती हैं, लेकिन निर्जला एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र एकादशी माना जाता है। निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को कहा जाता है। इस वर्ष यह एकादशी 23 जून यानि आज मनाई गई।  ज्योतिष विद पंडित देवऋषि शास्त्री के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अराधना का विशेष महत्व है। साथ ही एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक निर्जल (बिना पानी के) व्रत रखने का महत्व है। कहते हैं कि निर्जला एकादशी पर उपवास रखकर आप पूरे वर्ष में आने वाली सभी 24 एकादशी का फल प्राप्त कर सकते हैं।  आइए निर्जला एकादशी से जुड़ी कुछ अहम बातें जानते हैं। 1. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी पर व्रत रखने से चंद्रमा द्वारा उत्पन्न हुआ नकारात्मक प्रभाव समाप्त होता है। उपवास रखने से ध्यान लगाने की क्षमता बढ़ती है। 2. भक्त पूरी रात जागकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। निर्जला एकादशी की रात को सोना वर्जित होता है, क्योंकि इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 3. भक्त इस दिन ओम नमो: भगवते वासुदेवाय के मंत्र का जाप करते हैं। 4. ब्राह्मणों को कपड़े, छाता, दूध, फल, तुलसी पत्तिया आदि दान करना शुभ माना जाता है। 5. चावल खाना इस दिन सख्त मना होता है। निर्जला एकादशी का पौराणिक और भौतिक महत्व  मान्यता है कि यदि हम ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में एक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना पानी के उपवास करें तो बिना बताए ही हमें जल की आवश्यकता, अपरिहार्यता, विशेषता पता लग जाएगी- जीवन बिना भोजन, वस्त्र के कई दिन संभाला जा सकता है, परंतु जल और वायु के बगैर नहीं। शायद उन दूरदर्शी महापुरुषों को काल के साथ ही शुद्ध पेयजल के भीषण अभाव और त्रासदी का भी अनुमान होगा ही- इसीलिए केवल प्रवचनों, वक्तव्यों से जल की महत्ता बताने के बजाए उन्होंने उसे व्रत श्रेष्ठ एकादशी जैसे सर्वकालिक सर्वजन हिताय व्रतोपवास से जोड़ दिया। निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व और आख्यान भी कम रोचक नहीं है। जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पाडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शात रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाउंगा। पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अत: आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पाडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है।

ज्योतिष विद पंडित देवऋषि शास्त्री के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अराधना का विशेष महत्व है। साथ ही एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक निर्जल (बिना पानी के) व्रत रखने का महत्व है। कहते हैं कि निर्जला एकादशी पर उपवास रखकर आप पूरे वर्ष में आने वाली सभी 24 एकादशी का फल प्राप्त कर सकते हैं।

आइए निर्जला एकादशी से जुड़ी कुछ अहम बातें जानते हैं। 1. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी पर व्रत रखने से चंद्रमा द्वारा उत्पन्न हुआ नकारात्मक प्रभाव समाप्त होता है। उपवास रखने से ध्यान लगाने की क्षमता बढ़ती है। 2. भक्त पूरी रात जागकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। निर्जला एकादशी की रात को सोना वर्जित होता है, क्योंकि इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 3. भक्त इस दिन ओम नमो: भगवते वासुदेवाय के मंत्र का जाप करते हैं। 4. ब्राह्मणों को कपड़े, छाता, दूध, फल, तुलसी पत्तिया आदि दान करना शुभ माना जाता है। 5. चावल खाना इस दिन सख्त मना होता है।

निर्जला एकादशी का पौराणिक और भौतिक महत्व

मान्यता है कि यदि हम ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में एक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना पानी के उपवास करें तो बिना बताए ही हमें जल की आवश्यकता, अपरिहार्यता, विशेषता पता लग जाएगी- जीवन बिना भोजन, वस्त्र के कई दिन संभाला जा सकता है, परंतु जल और वायु के बगैर नहीं। शायद उन दूरदर्शी महापुरुषों को काल के साथ ही शुद्ध पेयजल के भीषण अभाव और त्रासदी का भी अनुमान होगा ही- इसीलिए केवल प्रवचनों, वक्तव्यों से जल की महत्ता बताने के बजाए उन्होंने उसे व्रत श्रेष्ठ एकादशी जैसे सर्वकालिक सर्वजन हिताय व्रतोपवास से जोड़ दिया। निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व और आख्यान भी कम रोचक नहीं है। जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पाडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शात रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाउंगा। पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अत: आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पाडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है।

 
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