गुजरात, हिमाचल में जीत के बाद अब मिशन 2019 की तैयारी में जुटी BJP

गुजरात, हिमाचल में जीत के बाद अब मिशन 2019 की तैयारी में जुटी BJP

गुजरात के बाद भाजपा के अब उत्तर प्रदेश में मिशन 2019 की तैयारी में जुटने की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है। पार्टी रणनीतिकारों ने संगठन से लेकर सरकार तक पुनर्गठन में की तैयारी शुरू कर दी है। इनाम और पद पाने के बावजूद प्रभाव न छोड़ पाने वाले लोगों को विश्राम या उनके पर कतरने की संभावना है। मकर संक्रांति के बाद नए मिशन पर काम शुरू हो जाएगा। जिससे कार्यकर्ताओं को समायोजित कर उन्हें संतुष्ट किया जा सके और आगे की लड़ाई के लिए तैयार कर लिया जाए।गुजरात, हिमाचल में जीत के बाद अब मिशन 2019 की तैयारी में जुटी BJP
गुजरात चुनाव कई कारणों से भाजपा के लिए नाक का सवाल बन गया था। पार्टी के रणनीतिकार जानते थे कि ये सिर्फ गुजरात में जीत-हार नहीं तय करेंगे बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के गृह प्रदेश होने के नाते पूरे देश में भगवा टोली की राजनीति को प्रभावित करेंगे और माहौल बनाएंगे। इसलिए भाजपा ने वहां पूरी ताकत झोंक दी। किसी दूसरे राज्य पर फोकस नहीं किया। 

उस उत्तर प्रदेश में भी नहीं जो लोकसभा चुनाव की 80 सीटों के नाते महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर, वहां के चुनाव के बाद भाजपा के रणनीतिकारों के लिए मिशन 2019 में जुटना लाजिमी हो गया है। जिससे आगे की चुनौतियों से पार पाने और 2014 के परिणामों को दोहराने या उन्हें और बेहतर बनाने के एजेंडे पर काम किया जा सके। कई कारणों से इस एजेंडे का प्रमुख केंद्र उत्तर प्रदेश होना अनिवार्य है।

यह है वजह

एक तो उत्तर प्रदेश में देश की लोकसभा की सर्वाधिक सीटें हैं साथ ही यह कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी का गृह प्रदेश है। यही नहीं केंद्र में तीसरे मोर्चे या अन्य किसी नए राजनीतिक फ्रंट के प्रयोग के सूत्रधार मुलायम सिंह यादव और मायावती जैसे नेताओं का रणस्थल होने के नाते उत्तर प्रदेश की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इन नेताओं की मौजूदगी होने के नाते इन पार्टियों के नतीजे सिर्फ जीत-हार ही नहीं तय करते बल्कि देश की राजनीति की दिशा व दशा भी तय करते हैं। 

भाजपा को जिन परिस्थितियों में गुजरात में जीत मिली है उसको देखते हुए पार्टी के रणनीतिकारों के दिमाग में कहीं न कहीं उत्तर प्रदेश में वैसी परिस्थितियां न बनने देने की चिंता जरूर होगी। भले ही भाजपा की तरफ से जीत में संख्या का कोई मतलब न होने के तर्क दिए जा रहे हों लेकिन यह तो इस पार्टी के नेता भी जानते हैं कि संख्या की अनदेखी नहीं की जा सकती। संख्या जब बहुमत के आंकड़े के पार पहुंचती है तभी जीत होती है। 

ऐसे में 115 की जगह सिर्फ 99 सीटों पर जीत के संदेश को देखते हुए भाजपा के रणनीतिकारों का आगे के लिए यूपी के समीकरणों को साधने में जुटना जरूरी हो जाता है। कारण, गुजरात में इस बार हुए चुनाव में लोकसभा चुनाव की तुलना में भाजपा का मत प्रतिशत लगभग 11 प्रतिशत घटा है। भगवा टोली के रणनीतिकार उत्तर प्रदेश में इसकी पुनरावृत्ति नहीं चाहेंगे।

कारण यह भी

भले ही उत्तर प्रदेश में हुए निकाय चुनाव में जीत के शोर में किसी का ध्यान इस पक्ष की ओर न जाने दिया हो कि बड़े शहरों को छोड़कर छोटे नगरों में तुलनात्मक रूप से उसकी जीत की राह बहुत आसान नहीं रही है। प्रदेश के 16 नगर निगमों में से 14 में भाजपा के महापौर भले ही जीत गए हों लेकिन जिन दो स्थानों अलीगढ़ और  मेरठ में पार्टी की महापौर की सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा वहां पार्टी अपने बुरे दिनों में भी जीतती रही है। इसी तरह नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद की सीटों में भाजपा को 70 जगह जीत मिली हो लेकिन रणनीतिकारों को ध्यान होगा कि सत्ता से बाहर रहने पर भी भाजपा 42 पर जीत चुकी थी। 

प्रदेश के 438 नगर पंचायतों के अध्यक्ष में पार्टी सिर्फ 100 जगह जीत सकी। अगर इन नतीजों की तुलना नौ महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों से करें तो हकीकत समझ में आ जाती है। निश्चित रूप से भाजपा के रणनीतिकारों को भी इसका अंदाज होगा। तभी तो उनकी तरफ से 2019 की चुनौतियों से निपटने की तैयारी शुरू कर दी गई हैं।

यह है तैयारी

सत्ता में आने के नौ महीने से बोर्डों, आयोगों और अन्य सरकारी संस्थानों में समायोजन का इंतजार कर रहे भाजपाइयों की प्रतीक्षा को खत्म करने का फैसला किया है। इसके लिए कार्यकर्ताओं की कद और काठी के लिहाज से उनके अनुकूल समायोजित होने वाले पदों का प्रस्ताव तैयार करने का काम भी शुरू हो गया है। इसी के साथ सरकारी वकीलों वाली सूची को लेकर कार्यकर्ताओं में व्याप्त गुस्से को भी थामने का प्रयास शुरू हो गया है। 

लोगों को अलग-अलग विभागों और स्थानों पर समायोजित करने पर विचार किया जा रहा है। यह नहीं, पार्टी की तैयारी संगठन और प्रदेश मंत्रिमंडल में पुनर्गठन करके भी जनाधार और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सामाजिक समीकरणों पर फिट बैठने वालों चेहरों को आगे लाने की है।

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