मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के त्यागपत्र से खाली हुईं सीटों पर हो रहे उपचुनाव में पार्टी ने भले ही प्रत्याशी घोषित न किए हो, पर राजनीतिक समीकरण दुरुस्त करने की तैयारी पहले से ही शुरू कर दी थी। इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने दोनों स्थानों पर संगठन और विधायकों की टीम लगा रखी है।
फूलपुर में पार्टी के प्रदेश मंत्री अमरपाल मौर्य, प्रदेश मंत्री गोविंद शुक्ल, और विधायक भूपेश चौबे तथा गोरखपुर में प्रदेश मंत्री कौशलेंद्र सिंह, प्रदेश मंत्री अनूप गुप्त और विधायक श्रीराम चौहान को प्रभारी नियुक्त किया है। ये लोग लगभग एक पखवाड़े से दोनों स्थानों पर डेरा डाले हैं।
संभावनाओं के समीकरण और संदेश
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व सपा गठबंधन तथा बसपा को मिले वोटों का योग भाजपा से आगे रहा है पर, विपक्षी दलों में एका के कोई संकेत नहीं हैं। इनमें बिखराव की स्थिति के मद्देनजर भाजपा भारी है। बसपा काफी दिनों से आमतौर पर उपचुनाव से दूर रहती है। लोकसभा के आम चुनाव में समीकरण दुरुस्त रखने के लिए वह अपने परंपरागत वोटरों को विकल्पहीनता में नहीं रखना चाहती। यह भी देखने वाला होगा कि बसपा दोनों सीटों पर प्रत्याशी लड़ाती है या अटकलों के अनुसार सिर्फ एक सीट पर। अगर एक ही सीट पर प्रत्याशी उतारती है तो संदेश साफ हो जाएगा कि दोनों में आपसी सहमति है।
लोकसभा के आम चुनाव में भाजपा को विपक्षी दलों के संयुक्त गठबंधन से भी मुकाबला करना पड़ सकता है। यह स्थित भाजपा के लिए थोड़ी कठिन हो सकती है क्योंकि विधानसभा में विपक्ष का संयुक्त वोट भाजपा से अधिक रहा है। यही नहीं बसपा अगर परंपरा पर कायम रहते हुए उम्मीदवार नहीं उतारती है तो उसके समर्थक मतदाताओं का रुख भी राजनीति की भावी कहानी कहेगा। साथ ही विधानसभा के आम चुनाव और इस उपचुनाव में क्षेत्र विशेष में समीकरणों में बदलाव भी भावी सियासी संदेश देने वाले होंगे। कांग्रेस का फैसला भी बहुत कुछ बताएगा।
इसलिए भाजपा भारी
भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक का दावा है कि विधानसभा की सिकंदरा सीट की तरह लोकसभा की इन दोनों सीटों पर भी कमल ही खिलेगा। पार्टी का संसदीय बोर्डकिसी को भी उम्मीदवार बनाए , उनकी जीत सुनिश्चित है। पार्टी जीत के अंतर को भी बरकरार रखेगी। भले ही पाठक के दावे को राजनीतिक माना जाए लेकिन स्थितियां और गणित भी भाजपा को ही भारी बता रही है। गोरखपुर और फूलपुर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से जुड़े होने के कारण इन सीटों के मतदाता अपना रुतबा गंवाना शायद ही पसंद करें।
गोरखपुर सीट तो काफी वक्त से गोरखनाथ मंदिर के खाते में ही जाती रही है। योगी खुद यहां से पांच बार सांसद रहे। उससे पहले यहां से उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ सांसद हुआ करते थे। फूलपुर सीट जरूर लंबे समय तक भाजपा के लिए बंजर साबित रही है। पर, अब परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। भाजपा की केंद्रीय राजनीति में मोदी के पदार्पण के बाद पिछड़ों व दलितों को लामबंद करके उनका अगड़ों के साथ समीकरण बनाकर राजनीति शुरू हुई है।
साथ ही केशव मौर्य के रूप में पिछड़े वर्ग का एक चेहरा आज भाजपा की राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है, उसे देखकर नहीं लगता कि इस इलाके की अति पिछड़ी जातियां भाजपा के अलावा किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में लामबंद होना पसंद करेंगी। इसलिए विधानसभा चुनाव में भले ही विपक्ष के कुल वोटों की संख्या भाजपा से ज्यादा बैठती हो लेकिन उपचुनाव में वैसी परिस्थितियां नजर नहीं आती।
यह है गणित
लोकसभा चुनाव में गोरखपुर सीट पर योगी आदित्यनाथ को सपा, बसपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के कुल वोट के मुकाबले लगभग एक लाख वोट ज्यादा मिले थे। विधानसभा चुनाव में गोरखपुर संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली सभी सीटों पर भाजपा के ही उम्मीदवार जीते। लोकसभा के पिछले चुनाव में फूलपुर सीट की स्थिति भी कमोबेश गोरखपुर जैसी ही रही।
केशव प्रसाद मौर्य को सपा, बसपा और कांग्रेस के कुल वोट से लगभग एक लाख वोट ज्यादा मिले थे। वह भी तब जब यहां से कांग्रेस ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी और मुस्लिम चेहरे मो. कैफ को मैदान में उतारा था। समाजवादी पार्टी ने यहां से कुर्मी उम्मीदवार धर्मसिंह पटेल को उतारा था। साथ ही बहुजन समाज पार्टी से इस संसदीय सीट की दो सीटों इलाहाबाद उत्तरी और पश्चिमी पर खासा प्रभाव रखने वाले ब्राह्मण चेहरे कपिल मुनि करवरिया चुनाव लड़े थे। विधानसभा चुनाव में फूलपुर संसदीय सीट के अंतर्गत विधानसभा की फाफामऊ, सोरांव, फूलपुर, इलाहाबाद उत्तरी और पश्चिमी सभी पांच सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे।